समतावािमी समाज कमी सथापना के लिए कई प्रयास किए , फिर भमी कई सपष्ट कारणों से उनका सपना पमूिमी तरह साकार नहीं हो पाया । डा . आंबेडकर जानते थे कि समानता और सामाजिक नयाय के सिद्धांतों पर समाज के पुनर्निर्माण के लिए शिक्ा आवशयक शर्त है । भाििमीय समाज में शिक्ा के विकास का अधययन करते हुए उनहोंने पाया कि वरिव्टश राज के शुरुआिमी दौर में शिक्ा का अधिकार केवल उच् जातियों तक हमी समीव्ि था । उनहोंने जाति और लिंग के भेदभाव
के बिना आम लोगों कमी शिक्ा के लिए िड़ाई लड़ी । उनहोंने कहा कि शिक्ा ऐसमी चमीज है जिसे सभमी कमी पहुंच में लाया जाना चाहिए । बलॉमबे यमूवनिवस्ख्टमी एक्ट और प्राइ्िमी एजुकेशन अमेंडमें्ट बिल पर चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए उनहोंने शिक्ा में सुधार लाने में अपने विचार दिए । उनहोंने पमीपुलस एजुकेशन सोसाइ्टमी कमी सथापना कमी और बलॉमबे और औरंगाबाद में कलॉिेज शुरू किए ।
उनहोंने सरकार से बार-बार चर्चा कमी कि
बिना भेदभाव के सभमी को समान शिक्ा के अवसर प्रदान किए जाएँ । निम्न जातियों यानमी अनुसमूवचि जातियों के लोगों को शैवक्क सुविधाओं सहित सभमी विशेषाधिकारों और सुविधाओं से वंचित रखा गया था । वह इतने गिमीब थे कि वह अपने बच्ों को शैक्वणक संसथानों में भेजने के बारे में कभमी नहीं सोच सकते थे । इसलिए शैवक्क रूप से वह बेहद पिछड़े थे । डा . आंबेडकर का मानना था कि शिक्ा अछटूिों के सुधार में बहुत योगदान देगमी ।
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