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दलितों की शिक्ा और डा . आंबेडकर

धममेंद्र मिश्र

सं सिद्धांतों पर समाज के पुनर्निर्माण के

विधान निर्माता डा . भमी् राव आंबेडकर ने माना कि समानता और नयाय के
लिए शिक्ा अपरिहार्य शर्त है । भाििमीय समाज में शिक्ा कमी प्रगति कमी स्मीक्ा करते हुए उनहोंने पाया कि वरिव्टश काल से पहले और बाद के कई िषगों तक शिक्ा का अधिकार केवल उच् जातियों तक हमी समीव्ि था । उनहोंने दलित िड़के-िड़वकयों को बिना किसमी भेदभाव के
शिक्ा प्रदान करने के लिए आंदोलन शुरू किया । डा . आंबेडकर ने बज्ट सरि के दौरान अपने विचार रखे और कहा कि शिक्ा ऐसमी चमीज है , जिसे सभमी कमी पहुंच में लाया जाना चाहिए । शिक्ा को हर संभव ििमीके से ससिा किया जाना चाहिए । बलॉमबे यमूवनिवस्ख्टमी एक्ट और प्राइ्िमी एजुकेशन अमेंडमें्ट बिल के सरि में भाग लेते हुए उनहोंने शिक्ा में सुधार लाने के लिए अपने विचार रखे । बाद में उनहोंने पमीपुलस एजुकेशन सोसाइ्टमी कमी सथापना कमी और बलॉमबे और
औरंगाबाद में क्रमशः कालेज आरमभ किए । इसके द्ािा उनहोंने शिक्ा को आम लोगों कमी पहुंच में लाने के लिए एक आंदोलन शुरू किया ।
डा . आंबेडकर ने कहा था कि सामाजिक गुला्मी को खत् करने के लिए शिक्ा सबसे महतिपमूण्ख हथियार है और यह शिक्ा हमी है जो दलित लोगों को आगे आने और सामाजिक कसथवि , आर्थिक , बेहििमी और राजनमीविक सििंरििा प्रापि करने के लिए प्रेरित करेगमी । हालांकि डा . आंबेडकर ने भारत में एक
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