Nov 2024_DA | Page 12

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आंबेडकर ने ने अराजकता का वयाकरण ( Grammar of Anarchy ) कहा है । गणेशोतसिों के समय श्रीगणपति विसर्जन कमी शोभायारिाओं पर पथराव तथा उसके बाद बनमी तनावपमूण्ख परिकसथवि कमी घ्टनाएं इसमी वयाकरण का उदाहरण हैं । इसलिए समाज को अपने तथा अपनों के प्राणों एवं समपवत् कमी रक्ा करने के लिए सदैव सतर्क रहने तथा इन कुप्रवृवत्यों को और उनहें प्रश्य देने वालों को पहचानने कमी आवशयकता है ।
व्यक्तिगत एवं राष्ट्री्य चारित्र्य
नि : सिाथ्ख भावना से देश , धर्म , संस्कृति एवं समाज के हित में जमीिन लगा देने वािमी विभमूवियों को स्िण करते हुए सरसंघचालक डा . भागवत ने कहा कि ऐसमी विभमूवियों ने सबके हित में कार्य तो किया हमी , अपितु अपने सियं के जमीिन से अनुकरणमीय जमीिन वयिहार का उत्् उदाहरण सामने रखा । निसपृहता , वनिवैरता एवं निर्भयता उनका सिभाव था । संघर्ष का कर्तवय जब-जब उपकसथि हुआ , तब-तब पमूण्ख शक्ि के साथ , आवशयक कठोरता बरतते हुए उनहोंने उसे निभाया । उज्िि शमीिसंपन्नता उनके जमीिन कमी पहचान थमी । इसलिए उनकमी उपकसथवि दुर्जनों के लिए धाक एवं सज्जनों को आशिसि करने वािमी थमी । आज इसमी प्रकार के जमीिन वयिहार कमी अपेक्ा परिकसथवि कर रहमी है । परिकसथवि अनुकूल हो या प्रतिकूल , वयक्िगत तथा राष्ट्रीय चारित्र्य कमी ऐसमी दृढ़िा हमी मांगलय व सज्जनता कमी विजय के लिए शक्ि का आधार बनिमी है ।
सं्कार एवं सामाजिक व्यवहार
सरसंघचालक डा . मोहन भागवत ने कहा कि संसकािों कमी अभिवयक्ि का िमूसरा पहिमू सामाजिक वयिहार होगा है । समाज में एक साथ और सुखपमूि्खक रहने के लिए कुछ नियम बने होते हैं । देश काल परिकसथविनुसार नियमों में परिवर्तन भमी होता रहता है । इन नियमों के श्द्धापमूि्खक पालन कमी अनिवार्यता रहिमी है । एकजु्ट रहने कमी कसथवि में परसपि वयिहार के प्रति भमी कुछ कर्तवय और अनुशासन बन जाते
हैं । कानमून एवं संविधान ऐसा हमी एक सामाजिक अनुशासन है । संविधान कमी प्रसिािना इस भाव को धयान में रखकर संविधान प्रित् कर्तवयों और कानमून का योगय निर्वहन सभमी को करना होता है । नियम एवं वयिसथा का पालन ठमीक प्रकार से हो सके , इसके लिए संविधान कमी प्रसिािना , मार्गदर्शक तति , नागरिक कर्तवय एवं नागरिक अधिकार का प्रबोधन सि्खरि होते रहना चाहिए । परिवार से प्रापि पारसपरिक वयिहार का अनुशासन , परसपि वयिहार में मांगलय , सद्ािना और भद्रता तथा सामाजिक वयिहार में देशभक्ि एवं समाज के प्रति आत्मीयता के साथ कानमून-संविधान का वनिदोष पालन से वयक्ि का वयक्िगत एवं राष्ट्रीय चारित्र्य बनता है । देश कमी सुरक्ा , एकात्िा , अखणडिा एवं विकास के लिए चारित्र्य के इन पहलुओं का त्रुटिविहमीन एवं सम्पूर्ण होना अतयंि महतिपमूण्ख है ।
शक्त ्यु्त शील ही उन्नति का आधार
सरसंघचालक डा . भागवत ने कहा कि सतय को अपने ्मूलय पर जगत स्वीकार नहीं करता , बकलक जगत शक्ि को स्वीकार करता है । भारत वर्ष बड़ा होने से दुनिया में अंतरराष्ट्रीय वयिहार में सद्ािना एवं संतुलन उतपन्न होकर शाकनि और बंधुता कमी ओर विशि बढ़ेगा , यह विशि में सब राषट्र जानते हैं । फिर भमी अपने संकुचित सिाथ्ख और अहंकार या द्ेष को लेकर शक्िशािमी देशों कमी भारत को एक मर्यादा में बांधकर रखने कमी चेष्टा को सब अनुभव करते हैं । भारत वर्ष कमी शक्ि जितनमी बढ़ेगमी , उतनमी हमी भारत वर्ष कमी स्वीकार्यता रहेगमी । बलहमीनों को नहीं पमूछता , बलवानों को विशि पमूजता-यह आज के जगत कमी िमीवि है । इसलिए सद्ाि एवं संयमपमूण्ख वातावरण कमी सथापना के लिए शक्ि संपन्न होना हमी पड़ेगा । शक्ि जब शमीिसंपन्न होकर आिमी है , तब वह शाकनि का आधार बनािमी है ।
प्या्णवरण अनुकूल विकास
पर्यावरण कमी दु : कसथवि पर दुःख वय्ि करते
हुए सरसंघचालक डा . भागवत ने कहा कि यह एक विशिवयापमी समसया है । ऋतुचक्र अनियमित एवं उग् बन गया है । उपभोगवािमी तथा जड़वािमी अधमूिे वैचारिक आधार पर चिमी मानव कमी तथाकथित विकास यारिा मानवों सहित सम्पूर्ण सृष्टि कमी विनाश यारिाबन गई है । भारतवर्ष कमी परमपिा से प्रापि सम्पूर्ण , स्ग् एवं एकात् दृष्टि के आधार पर विकास पथ को बनाना चाहिए था , परनिु ऐसा नहीं किया । विकास के बहाने विनाश कमी ओर ले जाने वाले अधमूिे विकास पथ के अनधानुसरण के परिणाम सभमी भोग रहे हैं । अपने वैचारिक आधार पर , इस नुकसान को पमूिा कर धारणाक्् , स्ग् एवं एकात् विकास देने वाले पथ का निर्माण करें , इसका कोई पर्याय नहीं है । सम्पूर्ण देश में इसकमी समान वैचारिक भमूव्का बने एवं देश कमी विविधता को धयान में रखते हुए क्रियानियन का विकेकनद्रि विचार हो , यह तब हमी होगा । पर्यावरण के समबनध में नमीविगत प्रश्नों का समाधान के लिए तिरित प्रयास करने होंगे ।
गत िषगों में भारत एक राषट्र के तौर पर विशि में सश्ि और प्रतिकषठि हुआ है । विशि में
12 uoacj 2024