Mummatiya by Dharmendra Rajmangal Mummatiya by Dharmendra Rajmangal | Page 17
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जाइए. हिें अभी िरीज का पोस्त्ििािचि करना है . ”
शोभराज ने पोस्त्ििािचि की बात सुनी तो उसके पैरों से जिीन खखसक गयी. उसे पता था कक पोस्त्ििािचि
िें जहर वाल ी बात का पता चल जायेगा. झि से डॉक्िर से बोला, “डॉक्िर साहब पोस्त्ििािचि की क्या जरूरत
है ? आदिी िर चुका है . कि से कि िरने के बाद तो चैन से रहने दीश्जये . ”
इतना कह शोभराज ने डॉक्िर की जेब िें कुछ रूपये रख टदया. डॉक्िर हडबडा गया. बोला, “अरे अरे आप
ये क्या कर रहे हैं?” शोभराज डॉक्िर की तरफ दे ख बोल पड़ा, “रख लीश्जये डॉक्िर साहब. िैं भी आपके
बबभाग का ही आदिी हूाँ और एक कृपा ये कर दीश्जये कक इस िरीज को श्जतनी जल्दी हो सके बाहर करवा
दीश्जये . हिारा गााँव यहााँ से काफी द र ू है . ” डॉक्िर को ररकवत मिल चुकी थी. उसने झि पि से रणवीर को
अस्त्पताल से बाहर करवा टदया.
शोभराज ने अस्त्पताल से गााँव तक के मलए एम्बुलेंस भाड़े पर ले ली. किला का हाल बेहाल था. उसके
वपता और भाई उसे बहुत सम्हाल रहे थे लेककन आज उसे सम्हलना ही नही था. शोभराज और आटदराज
भी कभी कभी घडडयाली आींसू बहा दे ते थे लेककन जब भी दोनों की नजरें मिलती तो मसफच ख़ुशी हो रही
होती थी. आज इन दोनों की योजना काियाब हो गयी थी. न कोई जान पाया और न ही ककसी को इन
लोगों पर कोई शक ही हुआ था.
किला की मससककयों िें अब वो जोर नही था जो अस्त्पताल िें उसकी दहाड़ो िें था. कोई द ख
ी आदिी
भी भला कब तक रो सकता था. सुबह से मसफच पानी पर जी रही किला नही जानती थी कक आज उसका
पनत उसका साथ छोड़ चला जायेगा.
किला की कोख िें छह सात िहीने का एक नन्हा बच्चा भी पल रहा था. जो अब अपने वपता की शक्ल
तक नही दे ख सकता था. एम्बुलेंस घर की तरफ दौड़ी चली जा रही थी.
***
एम्बुलेंस रणवीर सटहत इन सब लोगों को गााँव िें उतार चली गयी. गााँव की िटहलाओीं की चीख पुकार
से सारा गााँव दहल उिा. लोगों ने रणवीर के अींनति सींस्त्कार की पूरी तैयारी कर उन्हें धचता के हवाले कर
टदया.
िटहलाओीं ने किला के हाथों की चूडड़यााँ तुड़वा दीीं . िाींग का मसन्द र ू तो कब का किला पोंछ चुकी थी. अब
उसे पहले की तरह रहने की इजाजत नही थी. पनत की िौत और चार पाींच बच्चों का भरण पोषण भी
अब किला को ही करना था.
किला के घर िाति पसरा था और आटदराज और शोभराज के घर खुमशयों की लहर दौड़ रही थी. दोनों
भाई मिलकर वही खाते िें तरह तरह के खचे मलखे जा रहे थे जो हुए ही नही थे लेककन उन्हें पता था