May-June 2024_DA | Page 6

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वह जीवनपययंत दलितों की सामाजिक , आर्थिक और शैक्षिक प्रगति के लिए लडाई लडेंगे । इस कार्य के लिए जयोतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन लगा दिया ।
तब शिक्षा देने का काम ब्ाह्मण ही किया करते थे लेकिन जयोतिबा का मत था कि ज्ान और शिक्षा किसी जाति-विरादरी विशेर् की बपौती नहीं होती है । दलित औरतों को शिक्षित करने के लिए जयोतिबा ने 1848 में पुणे में महिला पाठशाला खोली । भारत में गैर ब्ाह्मण द्ािा संचालित यह पहली महिला पाठशाला थी । पत्ी सावित्ी बाई ने इस पावन पुनित कार्य के लिए उनका पूरा सहयोग किया । इस दौरान जयोतिबा और पत्ी को उच्च जाति के लोगों के विरोध का सामना करना पडा । सावित्ी बाई जब विद्ालय में पढाने जाया करती थी तब लोग उन पर मिट्ी , कूडा-करकर् और पतथि तक फैंक दिया करते थे । उनका न केवल रासिा रोका गया बसलक उनके चरित् पर कई आक्षेप भी लगाए गए I जयोतिबा और पत्ी के कोई फर्क नहीं पडता देख विरोधी उनके घर तक पहुंच गए और पिताजी से शिकायत की गई ।
बार-बार समझाने पर भी जयोतिबा नहीं माने तो पिताजी ने जयोतिबा और पत्ी को घर से निकाल दिया । इतना होने के बाद भी जयोतिबा ने हार नहीं मानी और सकूल में दलित बालिकाओं और औरतों को शिक्षा देना जारी रखा । जयोतिबा इतने ईमानदार थे कि सकूल का एक पैसा भी अपने पर खर्च नहीं किया । अनेक बार तो धन के अभाव में जयोतिबा और उसकी पत्ी को भूखा तक सोना पडा । उनकी ईमानदारी और समाज के प्रति निसवाथ्ण तयाग को देखते हुये समय निकलने के साथ लोग उनके जुड . ते चले गये । अनेक प्रगतिशील ब्ाह्मणों ने भी उनकी मदद की । इससे उतसाही जयोतिबा ने एक और सकूल खोल दी । सत्ी शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने पर सरकार ने 16 नवमबि 1852 को जयोतिबा और उसकी पत्ी का सममान किया ।
मुमबई और पुणे में ईसाई धर्म-प्रचारकों ने
पिछडे एवं दलित वर्ग के हिनदूओं को प्रलोभन देकर ईसाई बनाने का काम युदसिि पर आरंभ कर दिया था । जयोतिबा का साथी बाबा पद्मन ईसाई बन गया जिसका हलला पूरे राजय में हो गया । जयोतिबा समाज में वयापि दोर्ों को दूर
करने के तो पक्षधर थे लेकिन मतांतरण के पक्षधर नहीं थे । उनहोंने ईसाई मिशनरियों को अपने और अपने अनुयायियों पर हावी नहीं होने दिया । यह अनुयायियों से कहा करते थे कि जहां से अचछाई मिले सवीकार करने में
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