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गजानंद गुरू

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हातमा जयोतिबा फुले बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उनकी गिनती देश के प्रखयाि समाज सुधारक , प्रखर विचारक , लेखक एवं समता के संदेशवाहकों में होती है । 11 अप्रैल 1827 को महाराष्र् के पुणे में पिता गोविनदिाव एवं माता चिमनाबाई के घर जनमे जयोतिबा ने सामाजिक समरसता , दलित उतथान एवं नारी शिक्षा के लिए जीवनपययंत संघर््ण किया । वह ही थे , जिनहोंने भारत से दासता को तमर्ाने के लिए पुरजोर प्रयास किए । वह हिनदू समाज में वयापि पाखणि और बनावर्ी सिदांिों के विरोधी थे । उनहोंने विधवा विवाह का समर्थन किया । उनहोंने शादियों में दहेज और पुरोहित की अनिवार्यता खतम कराई जिससे विवाह कम खर्च में होने लगे ।
19 मई 1888 में मुंबई के एक नागरिक अभिनंदन समारोह में इस हिनदू ततव के पुरोधा को ‘ महातमा ’ की उपाधि प्रदान की गई । कर्मयोगी महातमा जयोतिबा फुले ने 63 साल की आयु में नवमबि 1890 को देह तयागी । भारत में समाज सुधार का कोई भी इतिहास तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक उसमें जयोतिबा फुले का तेजसवी अधयाय न जोडा जाये ।
एक बार जयोतिबा फूले के ब्ाह्मण तमत् ने अपने विवाह में जयोतिबा को निमंत्ण दिया । जयोतिबा तमत् के विवाह में पहुंचे लेकिन तथाकथित ब्ाह्मणों ने इसका विरोध किया । ब्ाह्मण ने जयोतिबा को बहुत बुरा-भला कहा । जयोतिबा तब तो अपने गुससे को दबा गये लेकिन इस घर्ना ने उनको अनदि तक हिला दिया । जयोतिबा ने समाज में वयापि छुआछूत को तमर्ाने का निशचय किया । उनहोंने संकलप लिया कि

समरस समाज पुरोधा महात्ा ज्ोपतबा फु ले

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