May-June 2024_DA | Page 7

कोई बुराई नहीं है लेकिन मतांतरण किसी भी सूरत में सवीकार नहीं है । जयोतिबा फुले चाहते तो मतांतरित होकर न केवल दलित जिनदगी से मुसकि पा सकते थे , बसलक सुख-सुविधायुकि जीवन गुजार सकते थे लेकिन उनके हदय में
हिनदू समाज की वयापकता और विशालता की गहराई वयापि थी । वे पुरोहितों की संकीर्ण विचारधारा के खिलाफ आजीवन संघर््ण करते रहे , पर उंची नौकरी या सुख सुविधाओं के लिए कभी मिशनरियों के बहकावे में नहीं आए ।
महाराष्ट् में 1875 से 77 के बीच अकाल पडा । फुले ने अकाल के दौरान किसानों की मदद की । फुले की मांग पर जांच आयोग का गठन हुआ जिसकी रिपोर््ट के आधार पर सरकार को 1879 में ‘ दक्षिण किसान राहत कानून ’ बनाना पडा । इसके साथ ही मराठी किसानों को कर्ज मुकि किया गया । इधर महाराष्र् में गुजराती और मारवाडी महाजन किसानों का शोर्ण कर रहे थे । महाजनों की कुतर्ल चालों के कारण एक बार ऋणी हो चुका किसान जीवनपययंत ऋणमुकि नहीं हो पाता था । महाजन उनकी न केवल जमीन छीन लेते थे बसलक उनकी महिलाओं के साथ भी अनैतिकतापूर्ण वयवहार करते थे । इस वयवहार के चलते जयोतिबा और किसान बहुत दुखी थे ।
दिसमबि 1884 में पुणे जिले के देह गांव के किसान बाबा साहब देशमुख पर मारवाडी साहूकार ने डिग्ी करा दी जिससे चलते किसान उफन पडे । जयोतिबा फुले भी किसान आंदोलन में कूद पडे । देह गांव में लगी चिंगारी धीरे-धीरे पूरे जिले में फैल गई । किसानों ने महाजनों के घरों पर हमला बोलकर सारे कागज जला दिए । आंदोलन में जयोतिबा फुले को देखकर अंग्ेज सरकार घबरा गई । हालांकि सेना की मदद से विद्रोह को दबा दिया गया लेकिन जयोतिबा के इस प्रयास ने किसान में अपने अधिकार के प्रति सजगता ला दी । जयोतिबा ने दो पुसिकों की रचना की है । पहली ‘ ब्ाहांचे कसब ’ थी जिसमें गेय पदों से भोली-भाली जनता को गुमराह करनेवाले लोगों पर भयंकर प्रहार किया । वीर-रस से ओतप्रोत दूसरी रचना ‘ शिवाजी चा पोवाडा ’ प्रकाशित हुई । इन दोनों रचनाओं में उन लोगों पर प्रहार किया जो दलित उतथान की बात तो करते हैं लेकिन दलित उतथान के लिए वयवहार में कुछ नहीं करते हैं । उनका कहना था कि केवल कागजी और शासबदक बातों से किसी भी दलित — शोतर्ि , वंचित को तनिक भी उंचा नहीं उठाया जा सकता है जिसकी कथनी- करणी एक है वे ही दलितों का उतथान कर सकते हैं ।
( साभार ) ebZ & twu 2024 7