May-June 2024_DA | Page 49

का लक्य बन गया है । पं . दीनदयाल जी के अनुसार आर्थिक विकास के तीन लक्य हैं- राजनीतिक सविंत्िा की रक्षा का सामर्थ्य उतपन्न करना , लोकतंत्ीय पदति के मार्ग में बाधक न होना और वह सांस्कृतिक मूलय जो राष्ट्ीय जीवन के कारण , परिणाम और सूचक हैं , की रक्षा करना होना चाहिये । यदि इनहें गवांकर कर अर्थ कमाया गया तो तनसशचि ही वह अनर्थकारी और निरर्थक होगा । पंडित जी की निगाह में सवयंगीण पुनर्रचना को हासिल करने के लिए सबसे पहले आर्थिक असमानता , भेदभाव एवं तवर्मताओं को समापि करना है ।
पसणिि दीनदयाल जी ने अपने राजनैतिक दर्शन में हमेशा राजनीतिक शुचिता के पालन को प्राथमिकता दी । यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने भ्रष्र्ाचार मुकि शासन के संकलप
को अपनी कार्यपद्ति में जोड़ा । इसी का परिणाम है कि आज विशव में भारत की साख में वृतद् हुई है तथा जनता का शासन में विशवास बढ़ा है । पंडित जी का मानना था कि सामाजिक नयाय के उद्ेशयों को प्रापि करने के लिए सभी वगयो में साधन , वयसकिगत गतिविधि एवं सामाजिक विशेर्ाधिकारों के अवसरों का सममानपूर्ण बंर्वारा होना चाहिए । साथ ही देश में समाज के हर वयसकि के जीवन में समाज के साथ आतमीयता का होना नितानि आवशयक है । इसके लिए उनहोने कर्तवयबोध पर बल दिया । पंडित दीनदयाल जी ने कहा कि भारतीय विचार सहयोग एवं परसपि पूरकता को प्रधानता देती है । हमारी प्रतयेक सामाजिक परिकलपना वयसकि की पूर्णता का विचार करती है ।
अगर विचार किया जाए तो एकातम मानवतावाद वयसकि के विभिन्न रूपों और समाज की अनेक संसथाओं में सथायी संघर््ण या हित विरोध नहीं मानता । समानता न होते हुए भी एकातमिा हो सकती है । पंडित दीनदयाल उपाधयाय का मानना था कि भारतवर््ण विशव में अपनी सांस्कृतिक संसकािों के कारण हमेशा प्रथम रहेगा । उनके द्ािा सथातपि एकातम मानववाद की परिभार्ा वर्तमान परिप्रेक्य में जयादा सामयिक है । उनहोंने कहा था कि वयसकि का शरीर , मन , बुतद और आतमा अगर ठीक रहेंगे तभी वयसकि को सुख और वैभव की प्रासपि हो सकती है । सामानयि : वयसकि शरीर , मन , बुतद और आतमा इन चारों की चिंता करता है । वयसकि की इसी सवाभाविक प्रवृति को पं . दीनदयाल उपाधयाय ने एकातम मानववाद की संज्ा दी । पंडित दीनदयाल उपाधयाय कहते हैं कि विशव को भी यदि हम कुछ सिखा सकते हैं तो उसे अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्तवय-प्रधान जीवन की भावना की ही शिक्षा दे सकते हैं । अर्थ , काम और मोक्ष के विपरीत धर्म की प्रमुख भावना ने भोग के सथान पर तयाग , अधिकार के सथान पर कर्तवय तथा संकुचित असहिष्णुता के सथान पर विशाल एकातमिा प्रकर् की है । ऐसा नहीं कि पं दीनदयाल का ‘ एकातम मानववाद ’ महज एक
वैचारिक अनुष्ठान था । इसमें राजनीति , समाजनीति , अर्थवयवसथा , उद्ोग , उतपादन , शिक्षा , लोक-नीति आदि पर वयापक और वयावहारिक नीति-तनददेश शामिल थे , जिनहें आज केंद्र में शातर्ि भाजपा सरकार अपना मार्ग-दर्शक सिदांि मानती है । प्रधानमंत्ी मोदी द्ािा पेश की गयीं जयादातर योजनाएं- दीनदयाल उपाधयाय ग्ामीण-कौशल योजना , सर्ार््ट-अप व स्टैंड-अप इंडिया , मुद्रा बैंक योजना , दीनदयाल उपाधयाय ग्ाम जयोति योजना , सांसद आदर्श-ग्ाम योजना , मेक-इन-इंडिया आदि एकातम मानववाद के सिदांिों से प्रेरित हैं और ‘ सबका साथ , सबका विकास ’ जैसा नारा भी उनहीं की ‘ अंतयोदय ’ ( समाज के अंतिम वयसकि का उतथान ) की अवधारणा पर आधारित है ।
पंडित जी के चिंतन को धयान में रखकर पूरे साल मनाये गए भारतीय जनता पार्टी पंडित दीनदयाल जनम शताबदी वर््ण का मूल लक्य गरीबों , दलितों , पिछड़ों और वंचितों तक वह सब सुविधाएं पहुंचाना रहा , जिसके लिए वह सालों से इंतजार करते हुए राह देख रहे थे । कांग्ेस एवं सामयवादियों की विचारधारा , देश में नयायपूर्ण शासन की सथापना करने में पूरी तरह विफल रही । इतना ही नहीं , कथनी-करनी के अंतर के कारण देश की जनता ने उनहें नकार दिया । कांग्ेस के लमबे शासनकाल में उपेक्षित एवं वंचित वगयो को आधारभूत सुविधाओं का लाभ पारदशटी तरीके से नही मिला , जिसका परिणाम यह निकला कि ग्ामीण क्षेत् में गरीबी का प्रभाव बढ़ गया तथा शहरी क्षेत् में दलित , पिछड़ा एवं आर्थिक रूप से गरीब वर्ग मलिन बससियों में रहने को मजबूर हुआ । इसके विपरीत देश में आधारभूत सुविधाओं के प्रमुख मानक - सामाजिक सुरक्षा , खाद् सुरक्षा , ऊर्जा , आवास , पेयजल , सवचछिा एवं शौचालय निर्माण , सवास्थय एवं शिक्षा के लक्यों को हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की केनद्र एवं राजय सरकारो ने अभूतपूर्व कदम उठाए है जो भारतीय जनता पार्टी के अनिोदय की नीतियों को संकलप के साथ लागू करने का परिणाम है ।
केनद्र में सत्ारूढ़ प्रधानमंत्ी मोदी के नेतृतव
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