May-June 2024_DA | Page 50

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वाली भाजपा सरकार ने देश में आर्थिक सशसकिकरण के इन मानकों को प्रापि करने के लिए जहां एक और आधार कानून के द्ािा वयवसथा की पारदर्शिता को उत्िदायी बनाया । वहीं उज्जवला योजना , दीन दयाल ग्ाम जयोति योजना , सवचछिा अभियान , योग दिवस अभियान जैसे काय्णरिमों में जन सहभागिता द्ािा देश में एक सकारातमक वातावरण का निर्माण किया । प्रधानमंत्ी नरेनद्र भाई मोदी के नेतृतव में गरीब एवं वंचित वर्ग के आर्थिक समावेशन के लिए जन-धन अभियान एवं सभी वगयो के लिए बीमा के माधयम से सामाजिक सुरक्षा की योजनायें , अनिोदय की दिशा में मील का पतथि साबित हो रही है और अब तमाम योजनाओं का लाभ वासिव में दलितों , पिछड़ों और वंचितों तक पहुंच रहा है । सभी के लिए आवास तथा हर हाथ को काम , हर खेत को पानी के लक्य को केंद्र सरकार ने पंडित दीनदयाल जी के विचारों के अनुरूप अपने कार्य की प्राथमिकता में रखा है ।
देखा जाए तो कांग्ेस की नीतियों के कारण आजादी के 70 साल बाद भी भारत अपने सामाजिक लक्यों को पूरा नहीं कर पाया । इसका मुखय कारण लमबे समय तक आर्थिक तवर्मता को समापि न कर पाना रहा । दुर्भागयपूर्ण यह भी है कि दशकों से दलित समाज के साथ घर्ने वाली तवर्मताओं को देश में पूरी तरह से समापि नहीं किया गया है । इसके विपरीत भाजपा समतामूलक समाज की सथापना के लिए , सभी प्रकार की सामाजिक तवर्मताओं को समापि करने के लिए एवं दलितों को विकास की धारा में पूरी तरह से शामिल करने के लिए समरसता के भाव को वयापक बना रही है , जिसका लक्य सामाजिक नयाय को समाज के हाशियें पर खड़े वयसकि के लिए भी हासिल करना है । देश के आर्थिक रूप से कमजोर , पिछड़े किसान , दलित एवं जनजाति वर्ग को विकास से जोड़ने के लिए भाजपा सरकार ने पहली बार जमीनी सिि पर अपने अभिनव प्रयासों के द्ािा देश में लमबे समय से चले आ रहे अवरोधों को तोड़ा है ।
पंडित दीन दयाल जी का धयेय वाकय ’’ चरैवेति-चरैवेति ” था , जो राजनीति में लगातार
देशहित में काम करने का प्रेरणादायी आवहान था । जो देशहित की इचछा में देशभसकि के सकंलप के साथ समाज को एकातमिा के भाव के साथ जोड़कर लगातार काम करने को प्रेरित करता है । 52 वर््ण की उम्र में पंडित दीनदयाल चले गये , पर अपने पीछे इतना कुछ छोड़ गये कि इस देश के राष्ट्वादी उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकेंगे । एकातम मानववाद के मंत्द्रष्र्ा पंडित दीनदयाल उपाधयाय राजनीति में भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के प्रतिनिधि थे । उनका सथान सनातन भारतीय प्रज्ा प्रवाह को आगे बढ़ानेवाले प्रज्ा-पुरुर्ों में अग्गणय है । सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति पंडित उपाधयाय के विचारों में देश की मिट्ी की सुवास को अनुभव किया जा सकता है । वह वासिव में , राजनीति में ऋतर् परंपरा के मनीर्ी थे ।
भारतीय जनसंघ से जुड़े होने के बावजूद वह दलीय संकीर्णताओं से ऊपर थे । राजनीति उनके लिए साधय नहीं , बसलक समाज सेवा का साधन मात् थी । वह राजनीति को सुविधा का सौदा नही समझते थे | सत्ा देश उतथान का माधयम है धयेय नही ? यही उनका जीवन मनत् था | पंडित दीनदयालजी ने 50 साल पूर्व जो दर्शन दुनिया के सामने रखा , उसे तब बेशक लोगों ने नहीं माना पर दुनियाभर के हो रहे बदलावों में उनकी दूरदर्शिता आज दिखाई दे रही है । ब्रिटेन के प्रधानमंत्ी रहे विंस्टन चर्चिल और दुनियाभर के तमाम ऐसे लोग जो भारत को एक कृत्रिम राष्ट् बताते रहे , आज भारत को परम वैभव की तरफ बढ़ते देख ग़लत साबित हो रहे हैं ।
यह माना जा सकता है कि दुनियाभर के घर्नारिम पर दीनदयालजी की पैनी नजर थी । इसी कारण दीनदयालजी की साफ राय थी कि समाजवाद हो , पूंजीवाद हो या सामयवाद से
समसयाओं का समाधान नहीं होना है , भर्काव ही होना है । यह सब भौतिकवाद की तरफ ले जाते हैं । मानव को पूंजीवाद या सामयवाद में बांर् कर एक खुशहाल समाज या राष्ट् नहीं बनाया जा सकता है , इसीलिए उनहोंने मानववाद की अवधारणा दुनिया के सामने रखी । यानी सभी विचारधाराओं और वादों में मानव को केंद्र में रखा जाए । मानव के विकास के लिए एकातम दर्शन की उनहोंने पूरी वयाखया भी की । उनहोंने अपने एक लेख में लिखा था कि भारत का राष्ट् जीवन युग-युग में भिन्न-भिन्न सवरूप में वयकि हुआ है , किंतु उसके मूल में उसकी धर्म भावना रही है , इसीलिए अनेक विद्ानों ने कहा भी है कि भारत धर्मप्राण देश है । आज अपनी इस आतमा की प्रेरणा को अवचेतन से चेतन के क्षेत् में लाने पर ही राष्ट् जीवन में जो विककृति दिखाई
यह माना जा सकता है कि दुनियाभर के घटनाक्म पर दरीनदयालजी की पैनी नजर थी । इसी कारण दरीनदयालजी की साफ राय थी कि समाजवाद हो , पू ंजीवाद हो या साम्यवाद से समस्ाओं का समाधान नहीं होना है , भटकाव ही होना है । यह सब भौतिकवाद की तरफ ले जाते हैं ।
देती है , जो विक्षुबध , संघर््णमय , अतनसशचििा की अवसथा है , वह दूर की जा सकती है । अपनी इसी अवधारणा को विकसित करने के लिए उनहोंने समाजवाद और पूंजीवाद के प्रभाव से दूर रहने का संदेश दिया । फिलहाल देखा जाए तो पंडित दीनदयाल जी का समपूण्ण चिंतन समाज के समग् विकास पर केंद्रित कहा जा सकता है , और इसके लिए उनहोंने दलितों , पिछड़ों और वंचितों पर धयान देने की जरुरत पर जोर दिया । इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर देश के दलितों , पिछड़ों और वंचितों को विकास की मुखय धारा से जोड़ दिया जाए तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत अपने उसी वैभवशाली रूप में नजर आने लगगे , जिस वैभवशाली भारत को किसी समय सोने की चिड़ियां कहा जाता था और जिस दिन ऐसा हो जाएगा , वह दिन भारत भूमि के लिए एक नए सवण्णकाल का पहला दिन होगा । �
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