May-June 2024_DA | Page 47

पुरुर्ों ने जनम लिया है । उनहोंने अपने जीवन- काल का समपूण्ण समय समाज की ससथति को सुधारने में लगाया । राजा राममोहन रॉय से बाबासाहब डा , आंबेडकर तक सभी राष्ट् पुरुर्ों का यही प्रयास रहा है । अधोगति के आखिरी पायदान पर पहुंची हुई सामाजिक ससथति को सुधारने में अपना सारा जीवन वयिीत किया । सामाजिक मंथन , अपनी श्रेष्ठ इतिहास-परंपरा
जागृति हेतु राष्ट् पुरुर्ों के जीवन कार्य का सतय वर्णन समाज में लाना यह समरसता भाव जगाने हेतु उपयुकि है । रामककृष्ण परमहंस , सवामी विवेकाननद , महातमा जयोतिराव फुले , राजतर््ण शाहू महाराज , बाबासाहब डा . आंबेडकर , नारायण गुरु आदि इनका योगदान अपार है । भारतवर््ण में संतों की भी लमबी परंपरा रही है । सारे संतों ने भी समरसता भाव और वयवहार हेतु अपार योगदान दिया है । इनके विचार समय-समय पर लोगों के सामने लाना यह एक
समरसता प्रसथातपि करने हेतु उपयुकि है I
आज अपने देश में समाज वयवसथा का दृशय कया है ? अभिजन वर्ग बहुजन वर्ग-वंचित वर्ग , पिछड़ा वर्ग , घुमंतु समाज , वनवासी , महिला समाज , इन बहुजन वर्ग के अनेक अंगों पर विशेर् धयान देना जरूरी है । सुदृढ़ समाज वयवसथा की अपेक्षा करते समय इन दुर्बल कड़ियों पर जयादा धयान देना जरूरी है । बहुजन
समाज की उन्नति उपर्युकि समता-बंधुता- सवािंत्िा , समरसता इन ततवों के आधार पर हो सकती है । सवामी विवेकानंद ने बहुजन समाज की उन्नति के लिए दो बातों की आवशयकता प्रतिपादित की है । उनमें से पहली शिक्षा की और दूसरी सेवा की । ‘‘ राष्ट् में साधारण जनता में बुतद का विकास जितना अधिक , उतना राष्ट् का उत्कर्ष अधिक . हिनदुसथान देश विनाश के इतने निकर् पहुंचा , इसका कारण यही है कि विद्ा तथा बुतद का
विकास दीर्घ अवधि तक मुट्ीभर लोगों के हाथ में ही रहा । यह मानो अपने अकेले के हक की बात है । ऐसी जिद लेकर इन मुट्ीभर लोगों ने समूची विद्ा को अपनी कोठी में कैद कर रखा । उनहें इसमें राजाओं का समर्थन भी प्रापि हुआ और उसी के फलसवरूप साधारण जनता निरी गंवार रहकर हिनदुसथान विनाश के रासिे पर बढ़ा । इस ससथति में से हमें अगर फिर से ऊपर उठना है तो शिक्षा का प्रसार साधारण जनता में करने को छोड़कर दूसरा कोई उपाय नहीं I
भारत के गरीब , भूखे-कंगाल , पिछड़े , घुमंतु समाज के लोगों को शिक्षा कैसे दी जाए ? गरीब लोग अगर शिक्षा के निकर् पहुंच न पा रहे हों तो शिक्षा उनके तक पहुंचना चाहिए । दुर्बलों की सेवा यही नारायण की सेवा है । दरिद्र नारायण की सेवा , शिव भावे जीव सेवा यह रामककृष्ण परमहंस तथा सवामी विवेकाननद द्ािा दिखाया हुआ मार्ग है । लोक शिक्षण तथा लोकसेवा के लिए अचछे कार्यकर्ता होना जरूरी हैं । कार्यकर्ता में समपूण्ण निष्कपर्िा , पतवत्िा , सर्वसपशटी बुतद तथा सर्व विजयी इचछा शसकि इस सभी की आवशयकता है । इन गुणों के बल पर मुट्ीभर लोग भी यदि काम करने में जुर् गये , तो सारी दुनिया में रिांति हो जायेगी ।
समरसता सथातपि करने हेतु ‘ सामाजिक नयाय ’ का ततव भी उतना ही जरूरी है । आज की भार्ा में ‘ आरक्षण ’ यह सामाजिक नयाय का एक साधन है साधय नहीं , यह धयान रखना जरूरी है । डा . आंबेडकर धर्म पर गहरा विशवास रखने वाले थे । धर्म के कारण ही सवािंत्र्य , बंधुता और नयाय की प्रतिसथापना होगी , यह उनकी मानयिा थी । धर्म ही वयसकि तथा समाज को नैतिक शिक्षा दे सकता है । धर्म को राजनीतिक हथियार के रूप में उनहोंने कभी इसिेमाल नहीं किया । बौद धर्म ग्हण कर उनहोंने सवािंत्- समता-बंधुता-नयाय समाज में प्रतिसथातपि करने का एक मार्ग प्रसिुि किया । इस पृष्ठभूमि पर ‘ समरसता ’ यह ततव आज के जमाने का प्रमुख धर्म है और उसका उदघोर्ण है ’ बंधुभाव यही धर्म है ’ । �
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