May-June 2024_DA | Page 46

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सयामयाजिक न्याय के लिए सयामयाजिक समरसतया

डा . सुवर्णा रावल lk

माजिक समरसता हम सब जानते हैं । भारत के संविधान में इसे प्राथमिकता दी गई है । समानतायुकि समाज रचना , तवर्मता निर्मूलन इन तवर्यों पर काफी लिखा जाता है , चर्चा होती है और इसी का आधार लेकर समाज में भेद भी निर्माण किये जाते हैं । समता ततव को लेकर सवामी विवेकाननद के चिंतन में भगवान बुद के उपदेश का आधार मिलता है । वह कहते हैं ‘‘ आजकल जनतंत् और सभी मनुष्यों में समानता इन तवर्यों के संबंध में कुछ सुना जाता है , परंतु हम सब समान हैं , यह किसी को कैसे पता चले ? उसके लिए तीव्र बुतद तथा मूर्खतापूर्ण कलपनाओं से मुकि इस प्रकार का भेदी मन होना चाहिए । मन के ऊपर परतें जमाने वाली भ्रमपूर्ण कलपनाओं का भेद कर अंतःसथ शुद ततव तक उसे पहुंच जाना चाहिए । तब उसे पता चलेगा कि सभी प्रकार की पूर्ण रूप से परिपूर्ण शसकियां ये पहले से ही उसमें हैं । दूसरे किसी से उसे वह मिलने वाली नहीं । उसे जब इसकी प्रतयक्ष अनुभूति प्रापि होगी , तब उसी क्षण वह मुकि होगा तथा वह समतव प्रापि करेगा । उसे इसकी भी अनुभूति मिलेगी कि दूसरा हर वयसकि ही उसी के समान पूर्ण है तथा उसे अपने बंधुओं के ऊपर शारीरिक , मानसिक अथवा नैतिक किसी भी प्रकार का शासन चलाने की आवशयकता नहीं . खुद से निचले सिि का और कोई मनुष्य है , इस कलपना को तब वह तयाग देता है , तब ही वह समानता की भार्ा का उच्चारण कर सकता है , तब तक नहीं .’’ ( भगवान बुद तथा उनका उपदेश सवामी
विवेकाननद , पृष्ठ ‘ 28 )
निसर्ग के इस महान ततव का विसमिण जब वयवहारिक सिि के मनुष्य जीवन में आता है , तब समाज जीवन में भेदभाव युकि समाज रचना अपनी जड़ पकड़ लेती है । समय रहते ही इस ससथति का इलाज नहीं किया गया तो यही रूढ़ि के रूप में प्रतिसथातपि होती है । भारतीय समाज के साथ यही हुआ है । समता का यह सर्वश्रेष्ठ , सर्वमानय ततव हमने सवीकार तो कर लिया , विचार बुतद के सिि पर हमने मानयिा तो दे दी
परंतु इसे वयवहार में परिवर्तित करने में असफल रहे । ‘ समता ’ इस ततव को तसद और साधय करने हेतु ‘ समरसता ’ यह वयवहारिक ततव प्रचलित करना जरूरी है । समरसता यह भावातमक ततव है और इसमें ‘ बंधुभाव ’ के ततव को असाधारण महत्ा दी जाती है । बाबासाहब तो कहा करते थे , ‘‘ बंधुता यही सविनत्िा तथा समता का आशवासन है . सविंत्िा तथा समता की रक्षा कानून से नहीं होती .’’ I
भारतवर््ण में समय-समय पर अनेक राष्ट्
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