May-June 2024_DA | Page 43

नाकारा नहीं जा सकता है कि दलितोतथान से समाज और देश का समग् विकास संभव है । इस शाशवि हकीकत के आलोक में हमारे संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक , आर्थिक , शैक्षणिक एवं राजनीतिक क्षेत् में उनके हित और सशसकिकरण के लिए अनेक नियम , कानून , प्रावधान तथा काय्णरिम एवं योजनाएं बनायीं गयी हैं । बाबा साहेब भीम राव अमबेिकर ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों को संवैधानिक धरातल से सुदृढ़ करने का जो प्रावधान पेश किया , सही मायने में देखा जाये तो उस पर अमलीकरण नहीं हो सका । तनसशचि ही इसका श्रेय कांग्ेस पार्टी को
जाता है । इससे बड़ी विडमबना कया हो सकती है कि कथनी में बाबा साहेब आंबेडकर की छवि को भुनाया गया और करनी में दलित आंदोलन की धार को " गोठिल " करने की भ्रामक चाल किसी से छिपी है । ऐसे दोहरेपन को लक्य कर बाबा साहेब अमबेिकर ने कांग्ेस को जलता हुआ घर बताया था और दलित नेताओं को इसमें शामिल होने के खिलाफ आगाह किया था । अतीत के पृष्ठों पर यह हकीकत दर्ज है कि कांग्ेस ने यशवंत राव चवहाण के माधयम से महाराष्ट् में दलित नेतृतव को हथियाने का कुसतसि खेल खेला । दलित नेता उसके इस चरिवयह में फंसते चले गए । उनका तर्क यह
था कि इससे वह दलित हितों का भला कर सकेंगेI लेकिन दलित समाज के समग् विकास की बजाय दलित समाज के भीतरी जातिवादी पेंच को ऐसा फंसाया गया कि दलितों का विकास इसी में उलझ कर रह गया । अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राज बजाया जाता रहा और दलित चिंतन और दलित विकास महज वोर् बैंक का जरिया बन कर रह गया ।
सविंत्िा के बाद बाबा साहेब अमबेिकर के चिंतन और आंदोलन से लेकर आजतक सामाजिक-राजनीतिक दलित आंदोलन के दृसष्र्पथ में दलितों का अंदुरुनी जातिवाद एक विककृि चुनौती बनकर खड़ा है । यह बात अलग है कि सैकड़ों जातियों में बर्े दलित समाज की कुछ जातियां सामाजिक नयाय के संवैधानिक प्रावधानों के फलसवरूप विकास फलक पर अपनी उपससथति दर्ज कराने में कामयाब हुई है , लेकिन उनका नजरिया भी समाज के वंचित दलितों के प्रति भेदभाव और उपेक्षापूर्ण बना हुआ है । इस परिप्रेक्य में यह कदापि विसमृि नहीं किया जाना चाहिए कि बाबा साहब अमबेिकर ने प्रतयेक पिछड़े और शोतर्ि वर्ग के लिए आजीवन संघर््ण किया था । तवर्मता और असपृसयिा जैसी शर्मनाक कुरीतियों के विरुद उनहोंने जिस बुलंदी के साथ आवाज उठायी , वह युगों-युगों तक इतिहास के पन्नों में अमर हो गयी । दलित समाज का समग् विकास और एक समरस भारत बनाने की उनकी अपनी परिकलपना थी । देश की निर्वाचन वयवसथा में दलित नेतृतव को सुअवसर मुहैया कराने के मद्ेनजर लोक सभा , राजय सभा , विधान सभा और विधान परिर्दों में दलित समाज के सदसयों को आरक्षण की वयवसथा सुनसशचि की गयी । यह महज इसलिए नहीं की गयी थी कि इसका फायदा हासिल करके कोई दलित सांसद , विधायक या मंत्ी बनकर सिर्फ निजी और अपने परिवार का हित साधन करे और अकूत धन समपति हासिल रिीमी लेयर के मद में चूर होकर दलित और महादलित की विकासपरक चिंताओं को विसमृति कर मात् वोर् बैंक के दायरे में सीमित कर दे । आरक्षण की यह वयवसथा लागू
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