May-June 2024_DA | Page 42

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डा . आंबेडकर और डा . हेडगेवार

दोनों का लक्ष्य था दलित कल्ाण

श जब गुलामी की जंजीर तोड़कर ns

एक लमबी जदोजहद के बाद
सविंत् हुआ था , तब देश के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हुई थीं । उच नीच , भेदभाव , अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी , बेगारी , रोर्ी-कपडा और माकन जैसी कई समसयाएं देश के बेहतर भविष्य निर्माण के पथ पर बाधक बन कर सामने मौजूद थीं । एक और सविंत्िा का जश्न में डूबा परिवेश और दूसरी तरफ समसयाओं सी ग्सि संरिांति काल । यह एक ऐसा विद्रूप सच था , जिससे निजात पाना वयसकि पैमाने की अहम प्राथमिकता थीं । इस उच्च-निम्न भेदभाव के खिलाफ मोहनदास करमचंद गांधी ने न सिर्फ अपनी चिंताओं को वकि के पन्नों पर अंकित किया , बसलक दलितों-वंचितों के सममान और समृतद की दिशा उनहोंने संकलपशील अभियान भी शुरू किया । गांधी जी के अलावा डॉ भीम राव अमबेिकर , डॉ राजेंद्र प्रसाद , लोकमानय तिलक , सरदार बललभ भाई पर्ेल , चिंतक और विचारक पंडित दीन दयाल उपाधयाय , जयोतिबा फूले आपने अनेक विभूतियों ने देश की दीन-दशा मजबूत करने की दिशा में अपनी चिंताओं और अपने प्रयासों को पूरी तशद्ि के साथ मूर्त रूप दिया । यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ साथ दलित समाज महज वोर् बैंक बन कर रह गया ।
समय के पैमाने से इस सच को कदापि
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