May-June 2024_DA | Page 35

के लिए आरक्षित की गई है । सरकार ने संविधान संशोधन कर यह राजनीतिक आरक्षण 2026 तक कर दिया है । शुरू में आरक्षण केवल 10 वर््ण के लिए था । यह राजनीतिक आरक्षण इन समूहों का कितना सशकिीकरण कर पाया हैं , यह आज के समय का एक बड़ा सवाल है । अपना जनसमर्थन खो देने के डर से कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा नहीं करना चाहता । देखा जाए , तो दल-बदल कानून के रहते यह संभव ही नहीं है कि कोई दलित-आदिवासी विधायक या संसद अपनी मजटी से वोर् कर सके । हमने देखा है कि कुछ साल पहले लोकसभा में दलित-आदिवासी सांसदों ने एक फोरम बनाया था , इन वगयो के अधिकारों के लिए , पार्टी लाइन से ऊपर उठकर । दल-बदल कानून के कारण वह बेअसर रहा है ।
डा . आंबेडकर दूरदशटी नेता थे उनहें अहसास था कि इन समूहों को बराबरी का दर्जा पाने के लिए बहुत समय लगेगा , वह यह भी जानते थे कि सिर्फ आरक्षण से सामाजिक नयाय सुनिश्रित नहीं किया जा सकता । हमने देखा है कि पूर्व राष्ट्पति ज्ानी जैल सिह , बाबू जगजीवन राम ,
मायावती जी , आदि दलित-पिछड़े नेताओं पर किस तरह के जुमले और फिकरे गढ़े जाते रहे हैं । डा . आंबेडकर का पूरा जोर दलित-वंचित वगषों में शिक्षा के प्रसार और राजनीतिक चेतना पर रहा है । आरक्षण उनके लिए एक सीमाबद् तरकीब थी । दुर्भागय से आज उनके अनुयायी इन बातों को भुला चुके है । बड़ा सवाल यह है कि सविंत्ा के 67 सालों में भी अगर भारतीय समाज इन दलित-आदिवासी समूहों को आतमसात नहीं कर पाया है , तो जरूरत है पूरे संवैधानिक प्रावधानों पर नई सोच के साथ देखने की , तांकि इन वगषों को सामाजिक बराबरी के सिि पर खड़ा किया जा सके ।
डा . आंबेडकर का मत था कि राष्ट् वयसकियों से होता है , वयसकि के सुख और समृतद से राष्ट् सुखी और समृद बनता है । उनके विचार से राष्ट् एक भाव है , एक चेतना है , जिसका सबसे छोर्ा घर्क वयसकि है और वयसकि को सुसंस्कृत तथा राष्ट्ीय जीवन से जुड़ा होना चाहिए । राष्ट् को सवयोपरि मानते हुए डा . आंबेडकर वयसकि को प्रगति का केद्र बनाना चाहते थे । वह वयसकि को साधय और राजय को साधन मानते थे । डा . आंबेडकर ने इस देश की सामाजिक-सांस्कृतिक वसिुगत ससथति का सही और साफ आंकलन किया है । उनहोंने कहा कि भारत में किसी भी आर्थिक-राजनीतिक रिांति से पहले एक सामाजिक-सांस्कृतिक रिांति की दरकार है ।
पंडित दीनदयाल उपाधयाय ने भी अपनी विचारधारा में अंतयोदय की बात कही है । अंतयोदय यानि समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो बैठा हुआ है , सबसे पहले उसका उदय होना चाहिए । राष्ट् को सशकि और सवावलंबी बनाने के लिए समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो लोग है उनका सोशियो इकोनॉमिक डेवलपमेंर् करना होगा । किसी भी राष्ट् का विकास तभी अर्थपूर्ण हो सकता है जब भौतिक प्रगति के साथ साथ आधयासतमक मूलयों का भी संगम हो । जहां तक भारत की विशेर्िा , भारत का कलचर , भारत की संस्कृति का सवाल है तो यह विशव की बेहतर संस्कृति है । भारतीय संस्कृति को समृद् और श्रेष्ठ बनाने में सबसे बड़ा योगदान दलित
समाज के लोगों का है । इस देश में आदि कवि कहलाने का सममान केवल महतर््ण वासलमकी को है , शासत्ों के ज्ािा का सममान वेदवयास को है । भारतीय संविधान के निर्माण का श्रेय अमबेिकर को जाता है ।
वर्तमान में कुछ देशी-विदेशी शसकियां हमारी इन सामाजिक-संस्कृतिक धरोहरों को हिंदृतव से अलग करने की योजनाएं बना रही है । माकस्ण की पूंजीवादी वयवसथा में जहां मुठ्ी भर धनपति शोर्क की भूमिका में उभरता है वहीं जाति और नसलभेद वयवसथा में एक पूरा का पूरा समाज शोर्क तो दूसरा शोतर्ि के रुप में नजर आता है । जिसका समाधान डा . आंबेडकर सशकि हिंदू समाज में बताते है कयोंकि वह जानते थे कि हिंदू धर्म न तो इसे मानने वालों के लिए अफीम है और न ही यह किसी को अपनी जकड़न में लेता है । वसिुिः यह मानव को पूर्ण सविंत्िा देने वाला है । यह चिरसथायी रुप से विकास , संपन्नता तथा वयसकि व समाज को संपूर्णता प्रदान करने का एक साधन है । डा . आंबेडकर के पास भारतीय समाज का आंखों देखा अनुभव था , तीन हजार वर्षों की पीड़ा भी थी । इसलिए डा . आंबेडकर सही अथषों में भारतीय समाज की उन गहरी वसिुतनष्ठ सच्चाइयों को समझ पाते हैं , जिनहें कोई माकस्णवादी नहीं समझ सकता ।
डा . आंबेडकर का सपना था कि एक जातिविहीन , वर्गविहीन , सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , लैंगिक और सांस्कृतिक तवर्मताओं से मुकि समाज । ऐसा समाज बनाने के लिए हिंदू समाज का सशसकिकरण सबसे पहली प्राथमिकता होगी । यही डा . आंबेडकर की सोच और संघर््ण का सार है । आज डा . आंबेडकर इस देश की संघर््णशील और परिवर्तनकारी समूहों के हर महतवपूर्ण सवाल पर प्रासंगिक हो रहे हैं , इसी कारण वह विकास के लिए संघर््ण के प्रेरणा स्ोि भी बन गए है । मेरा मानना है कि हिंदुतव के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है । जिसमें हिंदू अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर सवयं को विराट्-अखंड हिंदुसिानी समाज के रूप में संगठित कर भारत को एक महान राष्ट् बना सकते हैं । �
ebZ & twu 2024 35