May-June 2024_DA | Page 34

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आंबेडकर जानते थे कि यह समसया कानून की समसया नहीं है । यह हिंदू समाज के भीतर की समसया है और इसे हिंदुओं को ही सुलझाना होगा । वे समाज के विभिन्न वगयो को आपस में जोड़ने का कार्य कर रहे थे । डा . आंबेडकर ने भले ही हिंदू न रहने की घोर्णा कर दी थी । ईसाइयत या इसलाम से खुला निमंत्ण मिलने के बावजूद उनहोंने इन विदेशी धमषों में जाना उचित नहीं माना । डा . आंबेडकर इसलाम और ईसाइयत ग्हण करने वाले दलितों की दुर्दशा को जानते थे । उनका मत था कि धमायंििण से राष्ट् को नुकसान उठाना पड़िा है । विदेशी धमषों को अपनाने से वयसकि अपने देश की परंपरा से र्ूर्िा है ।
वर्तमान समय में देश ओर दुनियां में ऐसी धारणा बनाई जा रही है कि डा . आंबेडकर केवल दलितों के नेता थे । उनहोंने केवल दलित उतथान के लिए कार्य किया यह सही नहीं होगा । मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उनहोंने भारत की आतमा हिंदूतव के लिए कार्य किया । जब हिंदूओं के लिए एक विधि संहिता बनाने का प्रंसग आया तो सबसे बड़ा सवाल हिंदू को पारिभातर्ि करने का था । डा . आंबेडकर ने अपनी दूरदृसष्र् से इसे ऐसे पारिभातर्ि किया कि मुसलमान , ईसाई , यहूदी और पारसी को छोड़कर इस देश के सब नागरिक हिंदू हैं अर्थात विदेशी उदगम के धमषों को मानने वाले अहिंदू हैं , बाकी सब हिंदू है । उनहोंने इस परिभार्ा से देश की आधारभूत एकता का अद्भूत उदाहरण पेश किया है ।
डा . आंबेडकर का सपना भारत को महान , सशकि और सवावलंबी बनाने का था । उनकी दृसष्र् में प्रजातंत् वयवसथा सवयोिम वयवसथा है , जिसमें एक मानव एक मूलय का विचार है । सामाजिक वयवसथा में हर वयसकि का अपना अपना योगदान है , पर राजनीतिक दृसष्र् से यह योगदान तभी संभव है जब समाज और विचार दोनों प्रजातांतत्क हों । आर्थिक कलयाण के लिए आर्थिक दृसष्र् से भी प्रजातंत् जरुरी है । आज लोकतांतत्क और आधुनिक दिखाई देने वाला देश , डा . आंबेडकर के संविधान सभा में किए
गए सत् वैचारिक संघर््ण और उनके वयापक दृसष्र्कोण का नतीजा है , जो उनकी देख-रेख में बनाए गए संविधान में तरियासनवि हुआ है , लेकिन फिर भी संविधान वैसा नहीं बन पाया जैसा डा . आंबेडकर चाहते थे , इसलिए वह इस संविधान से खुश नहीं थे । आखिर डा . आंबेडकर सविनत् भारत के लिए कैसा संविधान चाहते थे ?
डा . आंबेडकर चाहते थे कि देश के हर बच्चे को एक समान , अनिवार्य और मुफि शिक्षा मिलनी चाहिए , चाहे व किसी भी जाति , धर्म या वर्ग का कयों न हो । वह संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनवाना चाहते थे । देश की आधी से जयादा आबादी बदहाली , गरीबी और भूखमरी की रेखा पर अमानवीय और असांस्कृतिक जीवन जीने को अभिशपि है । इस आबादी की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्रित करने के लिए ही डा . आंबेडकर ने रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत की थी । संविधान में मौलिक अधिकार न बन पाने के कारण 20 करोड़ से भी जयादा लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे है । बाबा साहब ने दलित वगयो के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दिए
जाने की वकालत की थी ताकि उनहें दूसरों की तरह बराबर के मौके मिल सकें । अगर शिक्षा , रोजगार और आवास को मौलिक अधिकार बना दिया जाता तो उनहें आरक्षण की वकालत की शायद जरूरत ही न होती ।
डा . आंबेडकर प्रजातांतत्क सरकारों की कमी से परिचित थे , इसलिए उनहोंने सधारण कानून की बजाय संवैधानिक कानून को महतव दिया । मजदूर अधिकारों पर डॉ आंबेडकर का मानना था कि वर्ण वयवसथा केवल श्रम का ही विभाजन नहीं है , यह श्रमिकों का भी विभाजन है । दलितों को भी मजदूर वर्ग के रूप में एकतत्ि होना चाहिए । मगर यह एकता मजदूरों के बीच जाति की खाई को तमर्ा कर ही हो सकती है । डा . आंबेडकर की यह सोच बेहद रिांतिकारी है , कयोंकि यह भारतीय समाज की सामाजिक संरचना की सही और वासितवक समझ की ओर ले जाने वाली कोशिश है ।
डा . आंबेडकर भारतीय दलितों का राजनीतिक सशकिीकरण चाहते थे । उसी का नतीजा है कि आज लोकसभा की 79 सीर्ें अनुसूचित जातियों के लिए और 41 सीर्ें अनुसूचित जनजातियों
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