May-June 2024_DA | Page 33

मुहर लगाए बिना सभी रुपों में सतय को सवीकार करने , मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुंचने की गजब की क्षमता है , इस धर्म में ! श्रीमद्भगवदगीिा में इस विचार पर जोर दिया गया है कि वयसकि की महानता उसके कर्म से सुनिश्रित होती है न कि जनम से । इसके बावजूद अनेक इतिहासिक कारणों से इसमें आई नकारतमक बुराइयों , ऊंच-नीच की अवधारणा , कुछ जातियों को अछूत समझने की आदत
इसका सबसे बड़ा दोर् रहा है । यह अनेक सहस्ासबदयों से हिंदू धर्म के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले आधयासतमक सिंदािों के भी प्रतिकूल है ।
हिंदू समाज ने अपने मूलभूत सिंदािों का पुनः पता लगाकर तथा मानवता के अनय घर्कों से सीखकर समय समय पर आतम सुधार की इचछा एवं क्षमता दर्शाई है । सैकड़ों सालों से वासिव में इस दिशा में प्रगति हुई है । इसका
श्रेय आधुनिक काल के संतों एवं समाज सुधारकों सवामी विवेकानंद , सवामी दयानंद , राजा राममोहन राय , महातमा जयोतिबा फुले एवं उनकी पत्ी सावित्ी बाई फुले , नारायण गुरु , गांधीजी और बाबा साहब आंबेडकर को जाता है । इस संदर्भ में राष्ट्ीय सवयंसेवक संघ तथा इससे प्रेरित अनेक संगठन हिंदू एकता एवं हिंदू समाज के पुनरुतथान के लिए सामाजिक समानता पर जोर दे रहे है । संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवसर कहते थे कि ‘ यदि असपृशयिा पाप नहीं है तो इस संसार में अनय दूसरा कोई पाप हो ही नहीं सकता । वर्तमान दलित समुदाय जो अभी भी हिंदू है अधिकांश उनहीं साहसी ब्ाह्ाणें एवं क्षतत्यों के ही वंशज हैं , जिनहोंने जाति से बाहर होना सवीकार किया , किंतु विदेशी शासकों द्ािा जबरन धर्म परिवर्तन सवीकार नहीं किया । आज के हिंदू समुदाय को उनका शुरिगुजार होना चाहिए कि उनहोंने हिंदुतव को नीचा दिखाने की जगह खुद नीचा होना सवीकार कर लिया ।
हिंदू समाज के इस सशकिीकरण की यात्ा को डा . आंबेडकर ने आगे बढ़ाया , उनका दृसष्र्कोण न तो संकुचित था और न ही वे पक्षपाती थे । दलितों को सशकि करने और उनहें शिक्षित करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदू समाज ओर राष्ट् को सशकि करने का अभियान था । उनके द्ािा उठाए गए सवाल जितने उस समय प्रासंगिक थे , आज भी उतने ही प्रासंगिक है कि अगर समाज का एक बड़ा हिससा शसकिहीन और अशिक्षित रहेगा तो हिंदू समाज ओर राष्ट् सशकि कैसे हो सकता है ? वह बार-बार सवर्ण हिंदुओं से आग्ह कर रहे थे कि तवर्मता की दिवारों को गिराओं , तभी हिंदू समाज शसकिशाली बनेगा । डॉ . अमबेिकर का मत था कि जहां सभी क्षेत्ों में अनयाय , शोर्ण एवं उतपीड़न होगा , वहीं सामाजिक नयाय की धारणा जनम लेगी । आशा के अनुरूप उतर न मिलने पर उनहोंने 1935 में नासिक में यह घोर्णा की , वह हिंदू नहीं रहेंगे ।
अंग्ेजी सरकार ने भले ही दलित समाज को कुछ कानूनी अधिकार दिए थे , लेकिन डा .
ebZ & twu 2024 33