May-June 2024_DA | Page 32

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डा . आंबेडकर और हिन्ू राष्ट्र का सशक्तिकरण

धममेंद्र मिश्ा

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र्तमान समय में राजनीतिक सुविधा के हिसाब से हर कोई डा . आंबेडकर को अपने अपने तरीके से परिभातर्ि करने में लगा हुआ है , कुछ उनहें देवता बनाने में लगे हैं तो कुछ उनहें केवल दलितों की बपौती मानते हैं और कई उनहें हिनदुओं के विरोधी नायक के रूप में रखते हैं । कुछ लोग तो डा . आंबेडकर के धर्म-परिवर्तन के सही मर्म को समझे बिना ही आज दलितों को हिंदुओं से अलग कर उनहें एक धर्म के रूप में रखने की मांग करने लगे हैं ।
कोई इस पर बात ही नहीं करना चाहता कि डॉ . अमबेिकर का पूरा संघर््ण हिंदू समाज ओर राष्ट् के सशसकिकरण का ही था । डा . आंबेडकर के चिनिन और दृसष्र् को समझने के लिए यह धयान रखना जरूरी है कि वह अपने चिनिन में कहीं भी दुराग्ही नहीं है । उनके चिनिन में जड़िा नहीं है । उनका दर्शन समाज को गतिमान बनाए रखने का है । विचारों का नाला बनाकर उसमें समाज को डुबाने-वाला विचार नहीं है । वह मानते थे कि समानता के बिना समाज ऐसा है , जैसे बिना हथियारों के सेना । समानता को समाज के सथाई निर्माण के लिये धार्मिक , सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक एवं शैक्षणिक क्षेत् में तथा अनय क्षेत्ों में लागू करना आवशयक है ।
भारत के सवायंगीण विकास और राष्ट्ीय पुनरुतथान के लिए सबसे अधिक महतवपूर्ण तवर्य हिंदू समाज का सुधार एवं आतम-उदाि है । हिंदू धर्म मानव विकास और ईशवि की प्रासपि का स्ोि है । किसी एक पर अंतिम सतय की
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