May-June 2024_DA | Page 30

jk " V ª fparu

ने कहा था , अनूठे हैं भारत के राष्ट्वादी और देशभकि भारत एक अनूठा देश है । इसके राष्ट्वादी एवं देशभकि भी अनूठे हैं । भारत में एक देशभकि और राष्ट्भकि वह वयसकि है जो अपने समान अनय लोगों के साथ मनुष्य से कमतर वयवहार होते हुए अपनी खुली आंखों से देखता है , लेकिन उसकी मानवता विरोध नहीं करती । उसे मालूम है कि उन लोगों के अधिकार अकारण ही छीने जा रहे हैं , लेकिन उसमें मदद करने की सभय संवेदना नहीं जगती ।
उसे पता है कि लोगों के एक समूह को सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया गया है , लेकिन उसके भीतर नयाय और समानता का बोध नहीं होता । मनुष्य और समाज को चोतर्ल करनेवाले सैकड़ों निंदनीय रिवाजों के प्रचलन की उसे जानकारी है , लेकिन वे उसके भीतर घृणा का भाव पैदा नहीं करते हैं । देशभकि सिर्फ अपने और अपने वर्ग के लिए सत्ा का आकांक्षी होता है । मुझे प्रसन्नता है कि मैं देशभकिों के उस वर्ग में शामिल नहीं हूं । मैं उस वर्ग में हूं , जो लोकतंत् के पक्ष में खड़ा होता है और जो हर तरह के एकाधिकार को धवसि करने का आकांक्षी है । हमारा लक्य जीवन के हर क्षेत्- राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक- में एक वयसकि-एक मूलय के सिदांि को वयवहार में उतारना है ।
19वीं सदी और 20वीं सदी के पहले दो दशकों तक हुए सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में बाबासाहब का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश भारतीय समाज में सामाजिक रिांति के मार्ग को निर्णायक मोड़ देनेवाला महतवपूर्ण ऊर्जा स्ोि रहा है । डा । आंबेडकर प्रखर चिंतक , कानूनविद और सामाजिक नयाय की लड़ाई के योदा मात् नहीं रहे , अपितु उनकी वैचारिक दृसष्र् में अनयाय का प्रतिकार करने के साहस के साथ-साथ नैतिक पथ पर अविचल चलने की प्रतिबदिा भी दिखाई देती है , जो मूलयों की पहचान ढूंढ़िे समाज को दिशा दिखाती है । भारतीय समाज में विविधता भी है और तवर्मता भी । विविधता सवाभाविक होती है , परंतु तवर्मता नैसर्गिक नहीं है , इसलिए इस पर विचार आवशयक है ।
राष्ट्र जब लोगों की सामूहिक चेतना में है , तभी राष्ट्र है । बाबासाहब चाहते थे कि भारत के लोग , तमाम अन्य पहचानों से ऊपर , खुद को सिर्फ भारतीय मानें । राष्ट्रीय एकता ऐसे स्ावपत होगी । वर्तमान विवादों के आलोक में , बाबासाहब के राष्ट्र संबंधी विचारों को दोबारा पढे जाने और आत्मसात किये जाने की जरूरत है । बाबासाहब ने कहा था , अनूठे हैं भारत के राष्ट्रवादरी और देशभक्त भारत एक अनूठा देश है । इसके राष्ट्रवादरी एवं देशभक्त भी अनूठे हैं ।
बाबासाहेब के नैतिक साहस ने अपने समाज की तवर्मतामूलक वयवसथा का मात् विरोध ही नहीं किया , उनहोंने इसके कारण , समाज और राष्ट्ीय एकता पर इसके दुष्प्रभाव और सतय , अहिंसा तथा मानवता के विरुद इसके सवरूप को भी उजागर किया । आधुनिक भारत के निर्माणकर्ताओं में डाIआंबेडकर की समाज पुनर्रचना की दृसष्र् को मात् वर्ण आधारित जाति वयवसथा के विरोध एवं अछूतोदाि तक ही सीमित करके देखा जाता है , जो उनके साथ अनयाय है । जाति वयवसथा का विरोध एवं जाति आधारित वैमनसय , छूआछूत का प्रतिकार
मधयकालीन संतों से लेकर आधुनिक विचारकों तक द्ािा किया गया , परंतु अधिकतर संतों , राष्ट्नायकों ने वेद एवं उपतनर्द की द‍ृसष्र् से सामाजिक पुनर्रचना के कार्य में सहयोग दिया , जबकि बाबासाहब ने महातमा बुद के संघवाद एवं धमम के पथ से सवयं को तनददेशित किया ।
गौतम बुद का कथन ‘ आतमदीपोभव ’ को बोधिसतव डा . आंबेडकर ने अपने जीवन में न सिर्फ उतारा , बसलक इससे पूरे समाज के लिए नैतिकता , नयाय व उदारता का पथ आलोकित किया । भगवान बुद का धमम बुतदसंगत विचार एवं सदाचार परायण जीवन का पथ है , जो
30 ebZ & twu 2024