May-June 2024_DA | Page 23

हैI ऐसा इसलिए होता है कि उच्चवर्ग के लोग जो नियुकि होते है , उनकी जबर्दसि सिफारिश होती है , जो उनकी नियुसकि में सहायक होती है , ऐसी ससथति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का हमारे लिए अर्थ नही है । सेठ दामोदर सवरूप जो कि समाजवादी थे , उनहोंने आरक्षण
का बहुत विरोध किया और कहा है कि पिछडे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्षण का अर्थ दक्षता और अचछी सरकार को नकारना है । इसे लोक सेवा आयोग के फैसले पर छोड देना चाहिए ।
श्री एच . जे . खाणिेकर ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग अचछी योगयिा होने के बावजूद नियुसकि के अचछे अवसर नहीं पाते है और उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता है ।
अनि मे बहस पर जवाब देते हुए डा . आंबेडकर ने कहा कि मेरे तमत् श्री र्ी . र्ी . ककृष्णामाचारी ने प्रारूप समिति पर ताना मारा है कि समभवतः प्रारूप समिति अपने कुछ सदसयों का सवाथ्ण देखती रही है , इसलिए संविधान बनाने के बजाए , वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी है । वासिव में , श्री र्ी . र्ी . ककृष्णामाचारी से पूछना चाहूंगा कि कया वे उदाहरण देकर बता सकते है कि दुनिया के संविधानों में से कौन सा संविधान वकीलों के लिए वैभव की बात नहीं रहा है , विशेर् रूप से मैं उनसे पूछता हूं कि अमेरिका , कनाडा और अनय देशों के संविधान की रखी विशाल रिपोर््ट में से मुझको कोई उदाहरण दे ।
डा . आंबेडकर ने धारा 10 की उपधारा ( 3 ) में बैकवर्ड शबद का प्रयोग पर कहा कि इसके आयात , महतव व अनिवार्यता को समझने के लिए , मै इसे कुछ सामानय बातों से शुरूआत करूंगा , ताकि सदसयगण समझ सके । प्रथम सभी नागरिको के लिए सेवा के समान अवसर होने चाहिए , प्रतयेक वयसकि जो तनसशचि पद के योगय है , उसको आवेदन पत् देने की सविंत्िा होनी चाहिए , जिससे यह तय हो कि वह किसी पद के योगय है या नहीं । जहां तक सरकारी नौकरियों का समबनध है , सभी नागरिक यदि वे योगय है , तो उनको समानता के सिि पर रखा जाना चाहिए ।
मै जोर देकर कहता हूं कि यह एक अचछा तसदानि है कि अवसर की समानता होनी चाहिए । उसी समय यह भी प्रावधान होना चाहिए कि कुछ समुदायों को शासन मे सथान देना है , जिनको अब तक प्रशासन से बाहर रखा गया है । जैसा मैंने प्रारूप समिति के तीनों विचारों को सामने रखकर सूत् तैयार किया है । प्रथम सबको अवसर उपलबध होंगे , इसका उन तनसशचि समुदायों के लिए आरक्षण होगा जिनको प्रशासन
मे अब तक उचित सथान नहीं मिला है । उदाहरण के लिए किसी समुदाय का आरक्षण कुछ पदों का 70 प्रतिशत कर दिया जाए और 30 प्रतिशत गैर आरक्षित छोड दिया जाए कया कोई कह सकता है कि सामानय प्रतियोगिता के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण है । ऐसी ससथति में यह पहले तसदानि समान अवसर होंगे , के दृसष्र्कोण से उचित नहीं है । इसलिए जो पद आरक्षित होने है , यदि धारा 10 उपधारा ( 1 ) के साथ आरक्षण को मजबूत रखना है तो उसकी सीमा अलपसंखयक होनी चाहिए । यदि आदरणीय सदसय यह समझते है कि , दो बातों को सुरक्षित रखना , सबको अवसर की समानता का तसदानि और साथ ही उन समुदायो की मांग , की राजय मे भी उचित प्रतिनिधितव देना , पूरी करने के लिए , मुझे विशवास है कि , जब तक आप बैकवर्ड की तरह उचित शबद प्रयोग नही करते , तब आरक्षण का प्रावधान , नियम को खा जाएगा । नियम में से कुछ नही बचेगा । डॉ आंबेडकर ने कहा कि वह यह कह सकते हैं कि यह नयाय पक्ष का समर्थन है , कि प्रारूप समिति ने बैकवर्ड शबद को रखने की जिममेदारी , मैंने अपने कंधों पर ली थी , मै सवीकार करता हूँ कि , संविधान सभा ने मूलरूप में जो मौलिक अधिकार पारित किए है , उनमें यह नही है , मैं समझता हॅूं कि , बैकवर्ड शबद रखने का समर्थन नयाय पक्ष से काफी है ।
धारा 10 संशोधन पारित होकर संविधान का भाग बन गया , जिसका नतीजा आज सरकारी नौकरियो में दलित , आदिवासियों , पिछड़ों का प्रतिनिधितव तवद्मान है और देश विकास की और अग्सर है , यह है डॉं . अमबेिकर की महानता । इतनी सारी विभिन्नता जाति , रंग , वेशभूर्ा , भार्ा , खान-पान , होने के बावजूद भी आज , भारत का अससितव इस दुनिया में अखणि रूप से तवद्मान है , तो मूल से भारतीय संविधान की लोकतांतत्क , सेकुलरिजम , प्रतिनिधितव के भावना के कारण , जो इस देश को एक जुर् बनाये रखती है । यह किसी चमतकाि से कम नहीं है , जो डा . आंबेडकरकी इस देश को अनमोल भेर् है और यही उनकी विरासत है । �
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