May-June 2024_DA | Page 22

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आरक्षण पर डा . आंबेडकर का जबाब

कुशाल चन्द्र रैगर

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रतीय संविधान में एक धारा-10 है , जिसमें अनुसूचित जाति , जनजाति को नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है । आरक्षण की इस लडाई में जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था , तब सभा में एक वोर् की कमी से आरक्षण प्रसिाव पारित नही हो सका , तब डा . अमबेिकर के सामने एक गंभीर समसया उतपन्न हो गई कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को आरक्षण कैसे दिया जाए । इस कानूनी लडाई को जीतने के लिए उनहोने नये ढंग से इसकी शुरूआत की ।
इसके लिए उनहोंने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति शबद के सथान पर पिछडा वर्ग शबद का उपयोग किया , जिसका अनेक सदस्‍यों ने विरोध किया । इस आरक्षण का प्रावधान करने में कई उप समितियां बनाई गई , जिसमें एक सलाहकार समिति भी थी । संविधान सभा में आरक्षण पर बहस में शामिल होते हुए प्रोफेसर के . र्ी . शाह ने कहा कि नौकरियों में यदि आरक्षण नही होगा , तो भिटी करने वाले अफसर अपने इचछानुसार पक्षपात करेगा , ऐसी ससथति में अफसर योगयिा नही देखता है । वह केवल सवाथ्ण देखता है । श्री चसनद्रकाराम ने कहा कि सदसयगण आप सभी जानते है कि आरक्षण का मुदा सलाहकार कमेर्ी में विचार किया गया था , किनिु वह एक वोर् की कमी के कारण िद् हो गया अनयथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कानूनी बाधयिा के अनिग्णि आ जाता , सेठ दामोदर सवरूप के विरोध पर उनहोंने कहा कि वह चाहते है कि जनसंखया के सभी समुदायों का प्रतिनिधितव होना चाहिए , वही इस धारा में पिछडा वर्ग की
भलाई के प्रावधान पर कयों आपतत् कर रहे है । श्री मुन्नीसवामी पिछले ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोगों का मामला सामप्रदायिकता के आधार पर नही देखा जाना चाहिए ।
श्री सानिनू कुमार दास ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग परीक्षा में बैठते है , उनका नाम सूची में आ जाता है , लेकिन जब पदों पर नियुसकि का समय आता है , तो उनकी नियुसकि नहीं होती
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