May-June 2024_DA | Page 16

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थी । अंग्ेज सत्ा ने इस वर्ग को दलित का नाम दे दिया । दलित चेतना को अपूर्व धार देनेवाले और दलित समाज के बौतदक गुरु बाबासाहब डॉ भीम राव अंबेडकर ने भी सबसे पहले अंग्ेजों को समझाने का प्रयास किया , साथ ही दलित हितों की चिंता भी की । परनिु भारत में मौजूद दलित जनसंखया राजनीतिक रूप से शासन एवं सत्ा के जनमत की दृसष्र् से बहुत ही सक्षम मानी जाती थी और यही कारण रहा कि अंग्ेजी शासकों के साथ ही कांग्ेस , मुससलम लीग सहित अनय दलों के लिए दलित समाज को सामानय हिनदू समाज से अलग करके अपने साथ मिलाने की होड़ मच गई । परिणामसवरूप अंग्ेजी शासन
में दलितों को कुछ अधिकार मिले , शिक्षा का प्रकाश उन तक पहुंचा और उनहें सरकार के सामने प्रतिनिधितव करने का अवसर भी मिला । चतुर अंग्ेज शासकों ने एक ओर हिनदू समाज के सामानय लोगों को साधा तो दूसरी ओर तथाकथित निचली जातियों को अपनी और करने के लिए प्रयास कियेI
राजनीतिक समर्थन लेने के लिए दलितों को साथ जरूर रखा गया , उनकी कुछ सहायता भी की गई , लेकिन उनके अंदर नेतृतव को उभरने नहीं दिया गया । अंग्ेजों ने दलितों का अपने हितों के लिए भरपूर उपयोग किया और यही दशा मुससलम लीग एवं अनय भाजपा विरोधी
दलों के भी रहे । देश की दलित जनसंखया को सभी ने अपने अपने ढंग से उपयोग ही किया । सविंत्िा के बाद भी दलितों की ससथति में कोई खास परिवर्तन तो नहीं हुआ और दलित समाज के वोर् हासिल करने के लिए हर राजनीतिक दलों के लिए आंख में धूल झोंकने की दृसष्र् से तथाकथित दलित एजेंडा उनकी पहली प्राथमिकता बन गया ।
कांग्ेस ने पोषित की जाति-वर्ग की राजनीति
सविंत्िा के उपरांत सत्ा कांग्ेस को मिली और फिर कांग्ेस ने देश की राजनीति को जाति ,
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