May-June 2024_DA | Page 15

कोई ठोस उपाय नहीं किये गए और न ही विकास समबनधी ऐसे कदम उठाये गए , जो पूरे देश की जनसँखया और देश का संतुलित विकास करने की दिशा में योगदान करते । एक तरफ जहां केवल नगरीय विकास को प्राथमिकता दी गयी , वही ग्ामीण से लेकर नगरीय क्षेत्ों में रहने वाली दलित जनता को विकास के नाम पर मात् उतना ही उपलबध कराया गया , जितने से उनकी साँसे चलती रहे और चुनाव के समय वह वोर् के रूप में केवल सत्ा प्रासपि के माधयम बने रहें ।
जाति के नाम पर भ्रमित किया जनता को
सविंत् भारत में दलित कलयाण एवं सशसकिकरण के नाम पर सामने वाले नेताओं में जगजीवन राम , कांशी राम , इरोड वेंकर् नायकर रामासामी उर्फ़ पेरियार से लेकर मायावती , मुलायम सिंह , लालू प्रसाद सहित अनय अनेकों नेताओं को देखा जा सकता है । इन नेताओं में एक समानता यह भी है कि दलितों
के कलयाण के नाम पर यह सभी किसी न किसी रूप में बस उनका वोर् और अपनी राजनीति एवं सत्ा प्रापि करने की दिशा में ही वयसि रहे और दलित कलयाण केवल भार्णों में क़ैद होकर रह गया । देखा जाये दलितों के उतथान के नाम पर ऐसे दलित नेताओं ने सिर्फ अपने परिजनों और अपने लोगों के कलयाण की तरफ धयान दिया । समाजवादी भारत की कलपना करने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया ने भारत की पिछड़ी , दलित , गरीब और वंचित जनता के लिए भारत का सपना देखा था । लेकिन उनके तथाकथित शिष्यों ने भी दलितों को सिर्फ वोर् बैंक बनाकर रख दिया । खेद की तवर्य यह भी है कि दलित समाज को कलयाण और विकास के सबजबाग दिखा कर मायावती जब तक सत्ा पर हावी रही , पर दलित समाज का न तो वह कोई कलयाण कर सकी और न ही दलितों का विकास । उनहोंने और उनकी पार्टी के तमाम नेताओं ने कमाई के सारे रेकार्ड तोड़ दिए । दलित कलयाण और विकास के नाम पर सिर्फ पाकयो का निर्माण
कराया गया और उन पाकयो में दलित नेता कांसी राम और अपनी मूर्ति लगवा कर , पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का दावा किया गया । लेकिन दलित समाज के आधे से अधिक समर्थक जनता बाद में भाजपा से जुड़ कर आतमसममान का अनुभव कर रही है ।
सत्ता प्राप्ति के लिए जाति की राजनीति
भारत में सविंत् आंदोलन शुरू होने से पहले ही बहुसंखयक हिनदू समाज में एक नया वर्ग पैदा कर दिया गया था । इस वर्ग को असवचछ कायषों को करने के कारण अशपृशय समझा जाता था । हिनदू समाज का यह वह वर्ग था जिसकी उतपतत् में विदेशी मुससलम आरिांिा आरिमणकारियों एवं शासकों का हाथ था और अंग्ेजी शासनकाल इनहें हिनदू विरोधी शसकियों ने अपना मोहरा बनाया । अशपृशय समझे जानी वाली हिनदू जनसंखया बहुत ही जतर्ल एवं दयनीय हालात में अपना जीवनयापन कर रही
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