May-June 2024_DA | Page 17

धर्म और वर्ग के खांचे में बांर् दिया । कांग्ेस के नेतृतवकर्ताओं के लिए यही सुविधाजनक राजनीति थी और इसके माधयम से कांग्ेस ने भारतीय दलित वर्ग को उसी अंधेरे में रखा , जिस अंधेरे काल में हिनदू समाज विदेशी मुससलम आरिांिाओं के आरिमणों के बाद से रह रहा था । विसमयकारी बात यह भी है कि कई वर्षों तक देश की जनता को अपने एजेंडे के दम पर धोखा देने वाले कांग्ेस नेताओं ने उस आपातकाल से भी सबका नहीं लिया , जिस आपातकाल ने इंदिरा गांधी की सत्ा को हिला कर रख दिया था । कांग्ेस शासनकाल में दलित , पिछड़ा , वनवासी एवं गरीब वर्ग को " गरीबी हर्ाओ "
का नारा देकर भ्रम में रखा गया , वही धार्मिक आधार पर पक्षपात करके उसी " बांर्ो और राज करो " की नीति अपनायी गयी , जो नीति कांग्ेस को विरासत में अंग्ेजों से मिली थीI कांग्ेस नेता के रूप में इंदिरा गांधी की तानाशाही और जनता की आवाज को पुरजोर तरीके से दबाने के कारण देश ने राजनीतिक संकर् एवं अससथििा को भी देखा और फिर इसी राजनीतिक अससथििा का परिणाम सत्ा के लिए मची होड़ के रूप में देखा गया ।
सत्ा की यह होड़ नयी नहीं थी , पर सत्ा हासिल करने के लिए कांग्ेस ने जातिवाद , वंशवाद , पंथवाद , तुसष्र्करण की जिस राजनीति
का प्रचार-प्रसार किया । इसका परिणाम विकास की मुखय धारा से दूर देश के दलित समाज को उतपीड़न और अतयाचार के रूप में उठाने के लिए बाधय होने के रूप में मिला , वही तुसष्र्करण और पंथवाद ने देश में उन कट्ि मुससलमों को भी एक ऐसी नयी राह दिखाई , जिस राह ने देश में सामप्रदायिकता को एवं मुससलम समाज की दुर्दशा के अंधेरे में भर्कने के लिए बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ीI देश के दलित एवं मुससलम समाज में फैला आरिोश और असंतोर् , कांग्ेस और उसके नेताओं की अदूरदर्शिता एवं गलत नीतियों का परिणाम कहा जा सकता है ।
कांग्ेस की नीतियों की वजह से विकास से वंचित दलित समाज और विकास से अलग- थलग पड़े मुससलमों के एकीकरण की नयी राह तब खुली , जब पेरियार , कांशीराम और मायावती सरीखे नेताओं ने इसका लाभ उठाने के लिए राजनीति का सहारा लिया और एक बार फिर दलित-मुससलम राजनीतिक गठजोड़ के नाम पर देश में राजनीति का सिलसिला शुरू हो गयाI ऐसे में पूरे देश के अंदर दलित और मुससलम हितों की रक्षा के लिए कई ऐसे नेता पैदा हो गए या पैदा कर दिए गए , जिनहोंने अपने हितों के लिए दलितों के मसीहा के रूप में डॉ भीम राव आंबेडकर के नाम का सहारा लिया । डॉ आंबेडकर की विचारधारा और उनके नाम का सहारा लेकर अनेकों दलित नेतृतवकर्ता उभर कर सामने आए , लेकिन ऐसे तमाम दलित नेतृतवकर्ताओं का कांग्ेस और उनके सहयोगी दलों ने मानसिक अपहरण कर लिया । ऐसे अनेकों दलित वर्ग के लिए काम करने वाले तमाम दलित नेतृतवकर्ता कांग्ेस और उसके सहयोगी वामदलों के चेहरे बन कर ही रह गए । यह सिलसिला सत्ि के दशक तक चलता रहाI इस दौरान दलित नेता और दलित समाज के कलयाण के नाम पर अससितव में आए राजनीतिक दलों ने दलित हितों की बजाए वयसकिगत लाभ तो उठाये पर वयापक दलित समुदाय को इसका कोई विशेर् लाभ नहीं मिला । देश के सामने जो सामाजिक तवर्मता या शोर्ण का ढांचा रहा और जिसमें महिला , दलित , आदिवासी , मुससलम
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