May 2025_DA | Page 49

दृन््टकोण और समझ-बदूझ की का्यल हुई । यद्यपि वह दृढ़ मन्चि्य वाले व्यक्ति थे, तथापि उन्होंने सभी मवमभन् मतों में समझौता कराने के मामले में एक महतवपदूणता भदूमिका निभाई । और इस रूप में वह जवाहरलाल नेहरू के सहा्यक बने जो कुछ विकट पररन्स्मत्यों में भी समझौता कराने में सूत्रधार सिद्ध हुए । आखिरकार हमें ्याद रखना चिाहिए कि जिन व्यन्कत्यों ने संविधान सभा का गठन मक्या था, वह मभन्-मभन् मवचिारधारा रखने वाले व्यक्ति थे ।
भारती्य संविधान की उ‌द्ेमशका में उन उ‌द्े््यों का उललेख मक्या ग्या है, जिनके अनुसार संविधान में मवमभन् अध्या्यों को तै्यार मक्या ग्या है । मवमभन् ततवों के बीचि मतभेद होने के कारण कुछ अत्यन्त आवश्यक मदों को राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों में शामिल मक्या ग्या और उनमें से अनेक अत्यावश्यक मदों पर वरषों बाद भी अभी तक कानदून नहीं बना्या ग्या है । डा. आंबेडकर और बहुत से अत््य वकीलों का मवचिार था कि दंड संहिता तो पहले से ही स्ामपत थी, लेकिन सिविल संहिता को लागदू करने से पहले इसे तै्यार करने में सम्य लगेगा ।
इसका अर्थ था कि संविधान को कानदूनी रूप देने में कुछ सीमा तक विलमब होगा । लेकिन बहुत से सदस्य संविधान के शीघ्ामतशीघ् तै्यार करने के लिए बैचिेन थे, वह अधिक सम्य नहीं गंवाना चिाहते थे । ्यहां मैं ्यह वर्णन करना चिाहती हदूं कि संविधान तो वासतव में अक्तूबर ' 1949 में ही तै्यार हो ग्या, परंतु क्योंकि हिन्दी विशेषज्ों के दो वगषों के बीचि हुए वाद-विवाद के कारण हिन्दी अनुवाद भली भांति तै्यार नहीं था, इसलिए इसे अन्ततः 26 नवमबर, 1949 को सवीकार मक्या ग्या ।
डा. आंबेडकर द्ारा दिए गए अपने उत्कृ्ट भाषण में, उन्होंने बता्या कि ग्ाम पंचिा्यतों की जैसा कि गांधीजी और अत््य नेताओं ने व्यकत मक्या है, इन वरषों के दौरान स्थिति इतनी अधिक बिगड़ गई है कि आज ्यह कुछ विशेष वगषों की भद्ी तसवीर बन गई है, जहां कतिप्य व्यक्ति, अधिकांशतः रिाह्मण और ऊपरी जाति के व्यन्कत्यों ने अपना प्रभुतव जमा रखा है । उन्होंने बता्या कि पंचिा्यतों द्ारा लिए गए कुछ मनणता्य न केवल विशेषाधिकार प्रापत जामत्यों के नीचिे के वगषों के प्रति ही अत््या्यपदूणता थे, बल्कि( विशेष
रूप से) महिलाओं के प्रति भी अत््या्यपदूणता थे । हमने इस मवर्य का विसतार से अध्य्यन मक्या और संविधान सभा की सभी महिला सदस्यों और ्यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू और अत््य प्रगतिशील व्यन्कत्यों ने ्यह महसदूस मक्या कि डा. आंबेडकर ने बहुत ही उमचित प्रश्न उठा्या था । ग्ाम पंचिा्यत संबंधी प्रश्न कुछ सम्य के लिए छोड़ मद्या ग्या ।
मुझे गांधी जी के साथ इस मवर्य पर हुई एक चिचिाता ्याद है, जिसमें उनका सुझाव था कि हमें पंचिा्यत राज को सभी व्यन्कत्यों के उमचित प्रतिनिधितव का द्ोतक बनाना चिाहिए तथा इसे समदूचिे समाज के हित के लिए गंभीर मनणता्य लेने में सक्म होना चिाहिए, न कि अनुसदूमचित जामत्यों अथवा महिलाओं की उन्मत रोकने के लिए मनमानी थोपनी चिाहिए । लेकिन चिदूंकि ्यह एकदम नहीं मक्या जा सकता था, संविधान सभा ने शीघ् का्यतावाही न करने का मनणता्य मल्या । काफी लमबी चिचिाता के पश्चात् इसे राज्य के नीति निदेशक ततवों में धारा-40 के रूप में निम्नलिखित रूप में रखा ग्या । " राज्य ग्ाम पंचिा्यतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शन्कत्यां और प्राधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें सवशासन की इकाई्यों के रूप में का्यता करने ्योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों "।
निःसंदेह उस सम्य संविधान सभा के सदस्यों ने ्यह कभी नहीं महसदूस मक्या था कि मुख्य मुद्ों के मामलों में भी राज्य के नीति निदेशक ततवों पर मवचिार मक्या जाएगा । तथापि, इस बीचि कांग्ेस के शासन के दौरान और राजीव गांधी के सम्य में तथा उसके बाद ग्ाम पंचिा्यत पद्धति को शुरू करने का मवचिार आ्या और कुछ परिवर्तनों के बाद इसके प्रचिलन में आने की संभावना हुई । पिछड़े हुए तथा विशेषाधिकार प्रापत वर्ग के नीचिे के वगषों को स्वयं अपनी रक्ा करने के लिए, ्यमद पंचिा्यत राज पद्धति को सफल बनाना है, तो ्यह पदूणताता आवश्यक है । ्यह महिलाओं को कंधे से कंधा मिलाकर उत्रदाम्यतव निभाने में सक्म बनाने के लिए आवश्यक हो ग्या है, क्योंकि देश में
ebZ 2025 49