छूआछूत का प्रतिकार मध्यकालीन संतों से लेकर आधुनिक मवचिारकों तक द्ारा मक्या ग्या, परंतु अधिकतर संतों, रा्ट्रना्यकों ने वेद एवं उपनिषद की दृन््ट से सामाजिक पुनरताचिना के का्यता में सह्योग मद्या, जबकि बाबा साहब ने महातमा बुद्ध के संघवाद एवं धमम के पथ से स्वयं को मनदवेमशत मक्या ।
गौतम बुद्ध का कथन‘ आतमदीपोभव’ को बोधिसतव डा. आंबेडकर ने अपने जीवन में न सिर्फ उतारा, बल्कि इससे पदूरे समाज के लिए नैतिकता, त््या्य एवं उदारता का पथ आलोकित मक्या । बाबा साहब का मानना है कि जब हम किसी समुदा्य ्या समाज में रहते हैं, तो जीवन के मापदंड एवं आदशषों में समानता होनी चिाहिए । ्यमद ्यह समानता नहीं हो, तो नैतिकता में पृथकता की भावना होती है और समदूह जीवन खतरे में पड़ जाता है । ्यही मचिंतन है, जिसके आधार पर उनका मन्कर्ष था कि हिंददू धर्म ने
दलित वर्ग को ्यमद शसरि धारण करने की सवतंरिता दी होती, तो ्यह देश कभी परतंरि न हुआ होता ।
बात शसरि की ही नहीं, शासरिों की भी है, जिनके ज्ान से वंमचित कर हमने एक बड़े हिससे को अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक संपदाओं से वंमचित कर मद्या और आज ्यह सामाजिक तनाव का एक प्रमुख कारण बन ग्या है । डा. आंबेडकर जाति व्यवस्ा का जड़ से उत्मदूलन चिाहते थे, क्योंकि उनकी तीक्ण बुद्धि देख पा रही थी कि हमने कर्म सिद्धांत को, जो व्यक्ति के मदूल्यांकन एवं प्रगति का मार्गदर्शक है, भाग्यवाद, अकर्मण्यता और शोषणकारी समाज का पोषक बना मद्या है । उनकी सामाजिक त््या्य की दृन््ट ्यह मांग करती है कि मनुष्य के रूप में जीवन जीने का गरिमापदूणता अधिकार समाज के हर वर्ग को समान रूप से मिलना चिाहिए और ्यह सिर्फ राजनीतिक सवतंरिता एवं
लोकतंरि से प्रापत नहीं हो सकता । इसके लिए आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंरि भी चिाहिए । एक व्यक्ति एक वोट की राजनीतिक बराबरी होने पर भी सामाजिक एवं आर्थिक विषमता लोकतंरि की प्रमक्या को ददूमरत करती है, इसलिए आर्थिक समानता एवं सामाजिक भेदभाव विहीन जनतांमरिक मदूल्यों के प्रति वह प्रतिबद्धता का आग्ह करते हैं । डा. आंबेडकर की लोकतांमरिक मदूल्यों में अटूट आस्ा थी । वह कहते थे‘ जिस शासन प्रणाली से रकतपात किए बिना लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में कांमतकारी परिवर्तन ला्या जाता है, वह लोकतंरि है.’ वह मनुष्य के दुखों की समाप्ति सिर्फ भौतिक एवं आर्थिक शन्कत्यों के आधिपत्य से नहीं सवीकारते थे । डा. आंबेडकर ज्ान आधारित समाज का निर्माण चिाहते थे, इसलिए उनका आग्ह था- ' मशमक्त बनो, संगठित हो और संघर्ष करो '। �
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