May 2025_DA | Page 42

चिंतन

एवं पिछड़ों की शिक्ा के लिए सतत प्र्यास मक्याI
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का मानना था कि ्यमद समाज को एक वृक् मान मल्या जा्ये तो अर्थनीति उसकी जड़ है, राजनीति आधार, विज्ान आदि उसके फकूल हैं । इसलिए न्ये समाज की अर्थनीति ्या राजनीति पर दृन््टपात करने से पदूवता उसकी संस्कृति की ओर सबसे अधिक ध्यान देना होगा, क्योंकि मदूल और तने की सार्थकता तो उसके फकूल में है । इसी श्रृंखला में उन्होंने‘ बहिष्कृत हितकारी’ सभा का गठन कर तेरह मशक्ण संस्ाओं की स्ापना की । उन्होंने समाज की नींव, नारी को, पुरुष के समान सशकत बनाने का बीड़ा भी उठा्या । इसी कम में थोड़ा और अतीत में जा्यें तो हमारे बीचि एक ऐसे ्युगपुरुष ज्योतिबा फुले का नाम आता है जो सामाजिक कांमत के अग्ददूत के रूप में जाने जाते हैं । ऐसे सम्य में जब भारती्य समाज अनेकों सामाजिक और धार्मिक कुरीमत्यों के मकड़जाल में फंसा था और न्सरि्यों के लिए शिक्ा सर्वथा वर्जित थी, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन कुरीमत्यों से मुकत करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चिला्या । उन्होंने‘ सत्य शोधक समाज’ नामक संगठन की स्ापना कर देश में जगह-जगह शिक्ा की अलख जगाकर भारती्य जनमानस को शिक्ा के महतव से पररचि्य करा्या ।
उन्होंने महारा्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्ा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ मक्या तथा पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला विद्ाल्य खोला । ज्योतिबा फुले कांमतकारी समाज सुधारक थे । उन्होंने धार्मिक पाखंड, सामाजिक कुरीमत्यों एवं अंधमव्वास का पुरजोर विरोध मक्या । भेदभाव रहित, समानतावादी, सत्यशोधक समाज की स्ापना करने वाले तथा नारी शिक्ा को प्रोतसामहत करने वाले ज्योतिबा फकूले का भारती्य समाज सदैव ऋणी रहेगा । बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर महातमा ज्योतिबा फुले के आदशषों से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने ज्योतिबा फुले को अपना गुरु माना था ।
वर्तमान सम्य में अगर दलित समाज के
बीचि शिक्ा व्यवस्ा पर अध्य्यन करें तो पाते हैं कि आजादी के 70 साल के बाद कुछ सुधार के बावजदूद भी बृहत् सतर पर स्थिति द्यनी्य बनी हुई है । भारती्य जनगणना 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्यास में लगभग 16.6 प्रतिशत ्या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है । अगर इनकी शैक्मणक सतर की बात करें तो 35 % दलित आज भी निरक्रता की स्थिति में जीवन जीने को अभिशपत हैं ।
मव्वमवद्ाल्य अनुदान आ्योग के पदूवता अध्यक् प्रोफ़ेसर सुखदेव थोराट लिखते हैं कि-“ आजादी से पहले की सामाजिक स्थिति ऐसी थी कि दलित समाज के लोगों को शिक्ा का अधिकार नहीं था । इसके बाद अंग्ेजों के शासनकाल में न्स्मत्याँ कुछ बदलीं और एक मुकत शिक्ा व्यवस्ा लागदू हुई । इससे कुछ लोगों को लाभ मिला था । आजादी के बाद इस बात को सवीकार मक्या ग्या और इस दिशा में नीति बनाने की जरूरत भी महसदूस की गई । दो तरह की शिक्ा नीति बनाई गई । एक तो इस बात पर आधारित थी कि इतिहास में जो वर्ग शिक्ा से वंमचित रहे हैं उन्हें आरक्ण के माध्यम से
मुख्यधारा में आने का अवसर मद्या जाए । इसे उनकी जनसंख्या के आधार पर त्य मक्या ग्या । ददूसरी तरह की नीति के तहत ग़रीब और पीछे छूटे हुए लोगों के लिए छारिवृमत्, किताबें और अत््य रूपों में आर्थिक मदद जैसी व्यवस्ा की गईI”
भारती्य संविधान के अनुचछेद-46 के अनुसार- ' राज्य विशेष सावधानी के साथ समाज के कमजोर वगषों, विशेषकर अनुसदूमचित जाति / जनजामत्यों के शैमक्क एवं आर्थिक हितों के उन्नयन को बढ़ावा देगा और सामाजिक अत््या्य और सभी प्रकार के सामाजिक शोषण से उनकी रक्ा करेगा '। अनुचछेद 330, 332, 335, 338 से 342 तथा संविधान के 5वीं और 6ठी अनुसदूचिी अनुचछेद 46 में दिए गए लक््य हेतु विशेष प्रावधानों के संबंध में का्यता करते हैं । मेरा ्यह मानना है कि दलित एवं पिछड़े वगषों के लिए शिक्ा, आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन का एक महतवपदूणता कारक है । शिक्ा ही एक ऐसा मदूलमंरि है जिससे हम अपने अतीत के साथ-साथ वर्तमान सामाजिक स्थिति का सहज आंकलन कर सकते हैं ।
42 ebZ 2025