जन्म जयंती
दलित एवं वंचित वर्ग के लिए जीवनभर समरपंत रहे महात्मा फु ले
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हातमा ज्योतिराव फुले की जन्म ज्यंती( 11अप्रैल) के अवसर पर प्रधानमंरिी नरेत्द् मोदी ने उन्हें अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए । प्रधानमंरिी मोदी ने उन्हें मानवता का सच्ा सेवक बताते हुए कहा कि मानवता के सच् चिे सेवक महातमा फुले को उनकी ज्यंती पर सादर नमन । उन्होंने समाज के शोषित और वंमचित वगषों के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर मद्या । देश के लिए उनका अमदूल्य ्योगदान हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा ।
जानकारी हो कि महातमा ज्योतिराव फुले( ज्योतिराव गोविंदराव फुले) का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था । उनके पिता का नाम
गोविंदराव और माता का नाम मचिमनाबाई था । उनके दादा, शेरिबा गोरे, माधवराव पेशवा के दरबार में सज्ाकार के रूप में काम करते थे । बाद में पेशवाओं ने उन्हें फकूलों के कारोबार के लिए 35 एकड़ जमीन दी । इसके बाद, अपने फकूलों के व्यवसा्य के कारण गोरहे परिवार को फुले के नाम से जाना जाने लगा । अपने दादा की मृत्यु के बाद ज्योतिबा के पिता गोविंदराव ने सबजी का व्यवसा्य करना शुरू कर मद्या । उनका पैतृक गांव कटगुन तालुका, खटाव जिला, सतारा था ।
महातमा फुले एक लेखक, मवचिारक और समाज सुधारक थे । उन्होंने सत्यशोधक समाज नामक संगठन की स्ापना की । उन्होंने किसानों और बहुजन समुदा्यों की समस्याओं पर ध्यान
केंमद्त करते हुए प्रगतिशील मवचिार प्रसतुत किए और महारा्ट्र में महिला शिक्ा की नींव रखी । 1888 में मुंबई में एक बैठक में लोगों ने उन्हें महातमा की उपाधि प्रदान की । महातमा फुले ्लॉमस पेन की पुसतकों द राइट ऑफ मैन, जस्टिस एंड ह्यूमैनिटी, कलॉमन सेंस, द एज ऑफ रीजन से प्रभावित थे । उनका बारह वर्ष की आ्यु में उनका विवाह सामवरिीबाई से हुआ था । महातमा ज्योतिबा फुले मराठी, अंग्ेजी, उददू, ता कन्ड़, तमिल, गुजराती आदि भाषा जानते थे ।
महातमा फुले का निधन 28 नवमबर 1890 को प्रातः 2 बजे पुणे में 63 वर्ष की आ्यु में हुआ । चिदूंकि तीर्थ ्यारिा के दौरान जो गद्ी संभालता है, उसे उत्राधिकार का अधिकार मिलता है, इसलिए ज्योतिराव के भतीजे बीचि में आ गए और ज्योतिराव के दत्क पुरि ्यशवंतराव का विरोध करने लगे । उस सम्य सामवरिीबाई ने साहसपदूवताक आगे आकर अपने लिए आवाज उठाई । वह अंतिम संसकार जुलदूस में सबसे आगे चिलीं और अपने हाथों से ज्योतिराव के पार्थिव शरीर को अमनि दी । चिदूंकि ्यशवंतराव एक विधवा के पुरि थे, इसलिए कोई भी उन्हें पुरिी देने को तै्यार नहीं था । लेकिन 4 फरवरी 1889 को ्यशवंत का विवाह का्यताकर्ता ज्ानोबा कृष्णजी सासने की बेटी राधा से हुआ । ्यशवंत और राधा का ्यह विवाह महारा्ट्र में पहला अंतरजाती्य विवाह है ।
शैतषिक कार्य
उन्होंने 3 अगसत 1948 को पुणे के बुधवार पेठ में तात्यासाहब मभड़े की हवेली में भारत का पहला बालिका विद्ाल्य शुरू मक्या । पहले दिन इस स्कूल में 8 लड़कियां उपस्थित रही । महातमा ज्योतिबा ने सामवरिीबाई को मशमक्त मक्या और उन्हें भारत की पहली महिला मशमक्का और पहली
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