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कमजोर करना ही है । मुस्लिम कानदूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभदूमि नहीं हो सकती । डा. आंबेडकर ने लिखा कि भारत में महत्ददू-मुस्लिम एकता कभी अस्तितव में ही नहीं थी । मुसलमान शासक के रूप में भारत में आए थे, इसलिए वह इसी मानसिकता में रहते हैं । 1857 का विद्ोह भी महत्ददू-मुस्लिम एकता का प्रतीक नहीं था, वरन मुसलमानों ने अपनी‘ छिनी गई’ शासक की भदूमिका को फिर से वापस लेने के लिए अंग्ेजों से विरुद्ध विद्ोह छेड़ा था ।
अंग्ेजों ने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन के जब मनणता्य मल्या, उस सम्य डा. आंबेडकर को भली प्रकार पता था कि मुस्लिम कभी भी हिन्दुओं के साथ एक गैर मुस्लिम राज्य के अंतर्गत नहीं रहेंगे । एक तरफ जहां अंग्ेजों की पाकिसतान निर्माण समबत्धी कुटिल और विभाजनकारी नीति का कांग्ेस, वामपंथी दल और मुस्लिम संगठन से जुड़े नेता लगातार समर्थन कर रहे थे, वही महत्ददू महासभा, राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ सहित अत््य रा्ट्रवादी दल एवं संगठन लगातार विभाजन के विरोध में खड़े थे । लेकिन अंग्ेजों की चिाल के आगे विरोध के सवरों को अनदेखा कर मद्या ग्या । गैर मुस्लिम नेताओं में सामात््यता डा. आंबेडकर पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने पाकिसतान की मांग को 1940 में ही सवीकार कर मल्या था । उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा कि अब दोनों समुदा्यों का एक रा्ट्र के अंदर शांति के साथ रह पाना संभव नहीं दिखता और इसी कारण डा. आंबेडकर ने जनसंख्या की पदूणता अदला-बदली के मवचिार का समर्थन मक्या ।
डा. आंबेडकर का मानना था कि पाकिसतान बनने पर महत्ददू लोग पाकिसतान के अंदर घिर जाएंगे, इसलिए विभाजन से पहले उन्हें सुरमक्त निकलने की व्यवस्ा होनी चिाहिए । तमाम प्र्यासों के बावजदूद डा. आंबेडकर की ्योजना और प्रसताव को किसी ने भी सवीकार नहीं मक्या । डा. आंबेडकर की चिेतावनी को गंभीरता से न लेते हुए 1947 में बंटवारे के बाद,
पाकिसतान के अंदर बड़ी संख्या में अनुसदूमचित जामत्यों के लोगों के अलावा अत््य महत्ददू जनसंख्या वही रुक गई । और फिर कथित महत्ददू-मुस्लिम एकता की काली असमल्यत सामने आई । हिन्दुओं पर शुरू हुए जानलेवा हमलों और मुस्लिम धर्म सवीकार करने के लिए बनाए जाने वाले हिंसक दबावों ने पाकिसतान में रहने वाले हिन्दुओं की स्थिति को बदतर बना मद्या । प्रतिकार ्या विरोध करने वाले लाखों हिन्दुओं को मार मद्या ग्या और उनकी समपमत््यों पर कबजे कर लिए गए, जबकि जान बचिाने के लिए इसलाम सवीकार करने वाले हिन्दुओं की संख्या भी काफी रही । डा. आंबेडकर का सप्ट मत था कि मुसलमान जब तक भारत में रहेंगे, तब तक केंद् में प्रभावी सरकार का निर्माण संभव नहीं है । डा. आंबेडकर ने बार-बार ्यह दोहरा्या कि मुस्लिमों को आतमसात नहीं मक्या जा सकता । किसी विदेशी ततव को रा्ट्र के शरीर में रखने की अपेक्ा उसे निकल देना ही उमचित है । �
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