May 2025_DA | Page 23

दलित नेताओं की िदुपपी
देश में दलित, पिछड़े, आदिवासी, वंमचित वर्ग की जनता का कथित रूप से कल्याण करने का दावा करने वाले राजनीतिक दल, संगठन, बुद्धिजीवी और उनके समर्थक ्यानी सभी चिुप हैं । पन््चिम बंगाल में दलितों, आदिवामस्यों, वंमचितों एवं पिछड़ों के विरुद्ध होने वाली हिंसा, उतपीड़न, हत्या, लदूट, आगजनी के मामलों में उनकी कोई भी प्रमतमक्या सामने नहीं आती है । राज्य में हिन्दुओं के विरुद्ध जारी हिंसा को मुख्यमंरिी ममता बनजमी के नेतृतव वाली राज्य सरकार की विफलता के स्ान पर, ममता सरकार की हिंसा फैलाने वाली रणनीति की सफलता के रूप में देखा जाना चिाहिए । विडमबना हैं कि संविधान जेब में रखकर घदूमने वाले कांग्ेस अध्यक् मल्लिकार्जुन खड़गे, जो स्वयं दलित हैं, ममता राज्य में हो रही हिंसा
को देखना नहीं चिाहते हैं । डा. आंबेडकर के नाम पर सवमहतों पर केंमद्त दुकान चिलाने वाले किसी भी कथित दलित हितैषी के मुंह से मुर्शिदाबाद में पीड़ित दलितों के लिए आवाज नहीं निकल रही है । राहुल गांधी, अखिलेश ्यादव, मा्यावती से लेकर तथाकथित दलित- मुस्लिम गठजोड़ की पैरवी करने वाले चिंद्शेखर आजाद उर्फ़ रावण भी मौन हैं । केंद्रीय बलों की तैनाती के बाद मुर्शिदाबाद में स्थिति ठीक हो रही है, लेकिन डरे-सहमे दलित, पिछड़े और वंमचित वर्ग की जनता की न्स्मत्यों को जानने के लिए उनके क्ेरिों में उनके चिेहरों को देखना होगा, तभी समझ आएगा कि पन््चिम बंगाल में हो क्या रहा है?
अनदेखी से ब़िता क्ोि
2011 के जनगणना के अनुसार पन््चिम
बंगाल में दलितों की जनसंख्या लगभग 1.85 करोड़ है, जिसमें 80 लाख मतुआ संप्रदा्य के लोग हैं । ममता सरकार ने पदूरे राज्य को आकामक मुस्लिमों के हाथों में सौंप मद्या है, जो दलित जनता का उतपीड़न और दमन कर रहे हैं । इसलामिक कट्टरता के कारण राज्य एक और खदूनी विभाजन की ओर अग्सर हो रहा है और रोजाना होने वाली प्रा्योजित राजनीतिक हिंसा के कारण दलित और गरीब वर्ग की जनता सबसे ज्यादा परेशान है । 1947 में विभाजन के सम्य राज्य में मुस्लिम आबादी 19 प्रतिशत थी, जो साल 2011 में बढ़कर 27 फीसदी हो चिुकी है । राज्य में जिस तरह से मुस्लिम आबादी बढ़ी है, उसका नकारातमक परिणाम राज्य की दलित, आदिवासी और पिछड़ी महत्ददू आबादी को भुगतना पड़ रहा है । ्यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राज्य में दलित, वनवासी और पिछड़ी महत्ददू आबादी सवतंरिता से पहले भी उतपीड़न और दमन को झेलने के लिए अभिशपत थी और ्यही हालात वर्तमान में भी हैं । राज्य में सर्वहारा वर्ग के समग् कल्याण का दावा करने वाले वाममोचिाता शासनकाल के 32 वरषों से लेकर तृणमदूल नेता ममता के शासनकाल में भी न्स्मत्यों में कोई परिवर्तन नहीं आ्या । मुस्लिमों के बढ़ते उतपीडन और मुख्यमंरिी ममता की चिुपपी के कारण मतुआ, नामसुद्ों सहित अत््य दलित और आदिवासी जामत्यां एकजुट हो रही हैं ।
फिलहाल राज्य के भ्यावह हालात पर केंद् सरकार से लेकर उच्तम त््या्याल्य तक की निगाह टिकी है । संवैधानिक व्यवस्ा अनुसार कानदून और व्यवस्ा समबत्धी मवर्य राज्य के अधिकार क्ेरि में आते हैं । ऐसे में केंद् में सत्ारूढ़ मोदी सरकार सीधे कोई भी और किसी भी तरह का हसतक्ेप नहीं कर सकती है । उधर राज्य में हिंसा पीड़ित स्वयं त््या्याल्य तक पहुंचिकर हिंसा को रोकने, दोमर्यों का सजा देने और पीड़ित परिवारों को मुआवजा एवं सुरक्ा देने की मांग कर रहे हैं । देखना ्यह होगा कि आने वाले सम्य में सत्ा प्रा्योजित हिंसा के तांडव को रोकने के लिए क्या और किस तरह के कदम ममता सरकार उठती है । �
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