May 2025_DA | Page 14

डा. आंबेडकर जयंती

प्र्यास कभी सफल न हों । इन कुचिकों को समझने के लिए और रोकने के लिए हमें डा. आंबेडकर को और अधिक पढ़ना चिाहिए । उदाहरण के लिए, बाबा साहब आ्यतान-द्मवड़ विभाजन की असत्य कलपना का लाभ उठा सकते थे लेकिन उन्होंनेआ्यतान-द्मवड़ विभाजन और‘ आ्यतान इन्वेजन थ्योरी’ को सिरे से नकार मद्या था । बाबासाहब ने 1918 में प्रकाशित एक शोधपरि में लिखा था कि आ्यतान ्या द्मवड़ विभाजन जैसी कोई बात होती है, इस बात से ही भारत के लोगअनमभज् थे । जब विदेशी स्कॉलर्स ने भारत में आकर इस प्रकार की विभाजन रेखाएं खींचिी, तब ्यह विभाजन बना । अत््यरि, उन्होंने कई उदाहरणों का हवाला मद्या, जहां ्यजुववेद और अथर्ववेद के ऋमर्यों ने शदूद्ों के लिए मंगल बातें कही हैं और दिखा्या है कि कई अवसरों पर‘ शूद्र’ परिवार में जन्में व्यक्ति भी राजा बने । उन्होंने इस सिद्धांत को भी सप्ट रूप से खारिज कर मद्या था कि तथाकथित‘ असपृ््य’ लोग‘ आर्यों’ और‘ द्मवड़ों’ से नस्लीय रूप से मभन् हैं ।
इस सबके साथ ही जो लोग अपने संकीर्ण और सांप्रदाम्यक हितों को आगे बढ़ाने के लिए भाषा के मुद्े का दुरुप्योग करने का प्र्यास करते हैं, उन्हें रा्ट्र की एकता और इसमें एक भाषा की भदूमिका पर डा. आंबेडकर के मवचिारों को पढ़ना चिाहिए । 10 सितंबर, 1949 को उन्होंने संविधान सभा में एक संशोधन पेश मक्या जिसमें संस्कृत को संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में समर्थन मद्या ग्या था ।‘ भाषावार राज्यों के संबंध में मवचिार‘ में, बाबासाहब ने कहा कि भाषा, संस्कृति की संजीवनी होती है । चिदूंकि भारतवासी एकता चिाहते हैं और एक समान संस्कृति विकसित करने के इचछुक हैं, इसलिए सभी भारती्यों का ्यह भारी कर्तव्य है कि वह हिन्दी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएं । ्यमद मेरा सुझाव सवीकार नहीं मक्या जाता तो भारत, भारत कहलाने का पारि नहीं रहेगा । वह मवमभन् जामत्यों का एक समदूह बन जाएगा, जो एक-ददूसरे के विरुद्ध लड़ाई-झगड़े और प्रतिसपधाता में रत रहेगा । ्यह ध्यान देने ्योग्य है कि बाबासाहब मदूल रूप से हिंदी भाषी नहीं थे,
फिर भी उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने सदैव रा्ट्र को सबसे पहले रखा ।
22 दिसंबर 1952 को पुणे में दिए अपने एक भाषण में डा. आंबेडकर ने कहा था कि लोकतंरि का सवरूप और उद्े््य सम्य के साथ बदलते रहते हैं और‘ आधुनिक लोकतंरि’ का उद्े््य लोगों का कल्याण करना है । इसी मदूलमंरि के साथ, पिछले 10 वरषों में हमारी सरकार लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने में सफल रही है । हमने लगभग 16 करोड़ घरों में जल पहुंचिाने का काम मक्या है । हमने गरीब
परिवारों के लिए लगभग 5 करोड़ घर बनवाए हैं । 2023 में प्रधानमंरिी नरेत्द् मोदी द्ारा पीएम – जनमन अमभ्यान की शुरुआत की गई, जिसके माध्यम से विशेष रूप से कमजोर जनजाती्य समदूह( पीवीटीजी) के लोगों का व्यापक विकास मक्या जा रहा है और अनेक मदूलभदूत सुविधाओं को लोगों तक पहुंचिा्या जा रहा है । हमारी सरकार द्ारा 2018 में‘ आ्यु्मान भारत’ ्योजना की शुरुआत भी की गई है जिसके माध्यम से जन-जन तक सवासथ्य सेवाओं की पहुंचि बढ़ी है । प्रधानमंरिी नरेत्द् मोदी के नेतृतव और मार्गदर्शन में सरकार द्ारा किए गए कल्याणकारी का्यता संविधान औरलोकतंरि के प्रति हमारी समर्पण भावना और बाबासाहब के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाते हैं ।
डा. आंबेडकर ने सामाजिक और आर्थिक लोकतंरि के साथ राजनीतिक लोकतंरि की कलपना
की थी । प्रधानमंरिी नरेत्द् मोदी ने 2047 तक‘ विकसित भारत’ बनाने का लक््य रखा है । ्यह लक््य बाबासाहब के विजन के अनुरूप है । साथ ही ्यह सुमनन््चित करने के लिए कि आने वाली पीढ़ियां बाबासाहब की महान विरासत और ्योगदान के बारे में अधिक से अधिक जानें, इसलिए लिए सरकार द्ारा डा. आंबेडकर से जुड़े पांचि स्ानों ्यानी‘ पंचि तीर्थ’ को विकसित मक्या ग्या है ।
गत माह जब प्रधानमंरिी नरेत्द् मोदी ने नागपुर में दीक्ाभदूमि का दौरा मक्या था, तो उन्होंने बाबासाहब आंबेडकर के सपनों के भारत को साकार करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहरा्या था । बाबासाहब की ज्यंती हम सभी भारती्यों द्ारा उनके द्ारा दिए गए मदूल्यों और आदशषों के प्रति अपनी प्रतिज्ा को दोहराने का अवसर है । बाबासाहब की विरासत को उमचित सममान देने के लिए हमें उनके मवचिारों को आतमसात करना चिाहिए और उन्हें एक समुदा्य मारि के नेता के रूप में नहीं बल्कि अग्णी रा्ट्र – निर्माता और उत्कृ्ट बुद्धिजीवी के रूप में भी देखना चिाहिए । बाबासाहब ने कहा था कि आज की सर्वाधिक महतवपदूणता आवश्यकता सर्वसाधारण में साझा राष्ट्रीयता की भावना सृजित करना है, ्यह भावना नहीं कि वह पहले भारती्य हैं और बाद में महत्ददू मुसलमान अथवा सिंधी हैं, परंतु ्यह कि पहले और अंततः भारती्य ही हैं । उनको सच्ी श्रद्धांजलि ्यह होगी कि हम सभी अपनी जाति, धर्म, क्ेरि, और पंथ से ऊपर उठकर‘ भारती्य’ बनें ।
बाबासाहब मां भारती के सच्े सपदूत और रा्ट्र-गौरव हैं । हम सभी धत््य हैं कि मां भारती ने हमें अपनी कोख में जन्म मद्या लेकिन मां रती धत््य हैं कि बाबासाहब जी जैसे व्यक्ति ने उनकी कोख से जन्म मल्या । आइए आज, 135 वर्ष बाद, हम उन्हें वह स्ान दें जिसके वह हकदार हैं और जिसे मरिटिश भारत और नव-सवतंरि भारत ने नहीं मद्या । सर्वप्रथम और अंत तक भारती्य, रा्ट्र प्रथम और रा्ट्र सववोपरि की भावना के अग्ददूत और हमारे लिए वंदनी्य: बाबासाहब डा. भीमराव आंबेडकर । �
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