May 2025_DA | Page 13

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विधान निर्माता एवं अग्णी रा्ट्र – निर्माताओं में से एक विभदूमत बाबासाहब भीमराव रामजी आंबेडकर की 135वीं ज्यंती है । बाबासाहब ने दलितों और हाशिए पर खड़े लोगों के उत्ान के लिए आजीवन का्यता मक्या । बाबासाहब समाज के कमजोर वगषों के जनमप्र्य ना्यकऔर संघर्ष के प्रतीक पुरुष हैं और हमेशा रहेंगे । लेकिन बाबासाहब के ्योगदान और विरासत के साथ सबसे बड़ा अत््या्य ्यह हुआ है कि उनको सिर्फ एक दलित नेता के रूप में सीमित कर मद्या ग्या है । बहुआ्यामी प्रतिभा के धनी बाबासाहब को आधुनिक भारत के एक सबसे अग्णी मवचिारक के रूप में भी देखा जाना चिाहिए ।
्यह सर्व – विदित है कि स्कूल के दिनों में बाबासाहब को उस नल से पानी पीने की अनुमति भी नहीं थी, जिससे नल से बाकी सब बच्े पीते थे । ऐसे में अकसर वह जितने वकत स्कूल में रहते, प्यासे रहते थे । एक दिन, जब असहनी्य प्यास के कारण उन्होंने इस अमानवी्य प्रथा का उललंघन मक्या तो उन्हें न केवल अपमानित मक्या ग्या, बल्कि कठोर दंड भी मद्या ग्या ।
जीवन पर्यंत ऐसे अनेक हृद्य विदारक अनुभवों के बाद कोई भी सामात््य व्यक्ति ्या तो अपने भाग्य को कोसकर रह जाता ्या हिंसा का रासता चिुनता । लेकिन बाबा साहब आंबेडकर ने अपने भीतर के गुससे को सकारातमक रूप देते हुए शिक्ा का मार्ग चिुना । जिस सम्य उनके समाज के लोगों को शिक्ा लेने के अनुमति भी नहीं थी, उस सम्य बाबासाहब ने एमए, एमएससी, पीएचिडी, डीएससी, डीलिट और बार-एट – ललॉकी उपामध्यां हासिल की ।
उन्होंने कोलंमब्या और लंदन स्कूल ऑफ इकोनलॉमिकस जैसे प्रमतन््ठत विदेशी संस्ानों से शिक्ा प्रापत की । डा. आंबेडकर महान समाज सुधारक तो थे ही, वह उत्कृ्ट बुद्धिजीवी, प्रकाणड विद्ान, कानदूनविद, अर्थशासरिी भी थे । उन्होंने राजनीति, नैतिकता, समाजशासरि, अर्थशासरि, कानदून और धर्मशासरि आदि व्यापक मवर्यों पर विसतार से लिखा है । डा. आंबेडकर के मवचिार, लेख और दर्शन पढ़कर उनकी मवद्ता की विशालता का पता चिलता है । उनके लेखन में जो नवीनता, गहन अध्य्यन एवं मचिंतन मिलता है, वह विपुल है । वह अगर चिाहते तो विदेश में आकर्षक वेतन प्रापत करके अपना जीवन सुख और प्रमत्ठा के साथ व्यतीत कर सकते थे । लेकिन उन्होंने अपनी मातृभदूमि को अपनी कर्म भदूमि बना्या । उनका ्यह भी मानना ​था कि चिरररि, शिक्ा से भी ज्यादा महतवपदूणता है । वह मानते थे कि एक ऐसा मशमक्त व्यक्ति जिसमें चिरररि और विनम्रता की कमी हो, हिंसक जीव से भी अधिक खतरनाक होता है । और उसकी शिक्ा से ्यमद गरीबों की हानि हो तो वह व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप है ।
बाबासाहब के चिरररि का एक और पहलदू जो बहुत कम लोग जानते हैं । वह ्यह है कि वह एक महान संस्ान निर्माता भी थे । आज भारत में आरबीआई और केंद्रीय जल आ्योग जैसी कई संस्ाएं बाबासाहब की ददूरदर्शिता का ही परिणाम हैं । अर्थशासरि पर अपनी महारत के आधार पर उन्होंने भारत के सामने आने वाली मौमद्क समस्याओं का मव्लेरण मक्या था । अपनी थीसिस
में उन्होंने विसतार से बता्या था कि कैसे अंग्ेजों द्ारा बना्या ग्या फिकसड एक्सचेंज सिसटम भारत में केवल अंग्ेजों के ही हितों की पदूमतता करता है । उनकी ्यही थीसिस भारती्य रिजर्व बैंक के निर्माण का आधार बनी ।
बाबासाहब का लोकतंरि में अटूट मव्वास था । उनका मानना ​था कि कोई भी राज्य तब तक लोकतांमरिक नहीं हो सकता है, जब तक समाज लोकतांमरिक न हो । उनका ्यह भी मानना ​था कि जब तक समाज में एक नैतिक व्यवस्ा न हो, लोकतंरि का मवचिार कलपना ही रहेगा । ्यह भी कहा जा सकता है कि जैसे सवतंरिता, समानता और बंधुतव के मदूल्य एक साथ सम्पूर्ण होते हैं उसी प्रकार लोकतंरि, राजनीति और नैतिकता एक ददूसरे के बिना अधदूरे हैं ।
बाबासाहब मानते थे कि जहां भी सामाजिक व्यवस्ा नैतिक और समतामदूलक नहीं होंगी, उस समाज में लोकतंरि जीवित ही नहीं रह पाएगा । गांधी जी की तरह, बाबासाहब सामाजिक सुधार के लिए प्रतिबद्ध थे क्योंकि वह भारत के भविष्य, इसके लोकतंरि और अर्जित सवतंरिता के बारे में बहुत मचिंतित थे । उनकी आशंकाएं संविधान सभा में उनके अंतिम भाषण में व्यकत हुईं हैं । इसमें बाबा साहब ने कहा कि हमें अपने खदून की आखिरी बदूंद तक अपनी सवतंरिता की रक्ा के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा । उन्होंने चिेतावनी दी थी कि हमारी अकर्मण्यता के कारण भारत एक बार फिर से अपना लोकतंरि और सवतंरिता खो सकता है । पदूना में अपने एक संबोधन में उन्होंने कहा था कि हमें एक लोकतान्त्रिक संविधान मिला है लेकिन संविधान बनाकर हमारा काम पदूरा नहीं हुआ, बल्कि बस शुरू हुआ है ।
संविधान के मुख्य निर्माता के तौर पर उनकी ्यह बात उनकी ददूरदशमी सोचि की प्रमाण है । भारत लगभग आठ दशकों से बाबासाहब द्ारा दिखाए गए लोकतंरि के मार्ग पर अनवरत आगे बढ़ रहा है । लेकिन आज कुछ लोगों द्ारा जाति, धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर सामाजिक विभाजन का कुप्र्यास मक्या जाता है । हमें ्यह सुमनन््चित करना होगा कि ्यह विभाजनकारी
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