सौनदयना-श्सत् को अपर्यापि मानते हुए साहितय की नई कसौटी की खोज में जुट गये हैं । दूसरी ओर ये लोग अफ्ीका और अमेरिका की अशिेि जातियों के साहितय से भी प्रेरणा ले रहे हैं , जिससे दलितों का कावय-श्सत् केवल मनोरंजन के लिए नहीं , बसलक समाज को झकझोड़ने और जगाने के लिए भी हो । मलेचछ , अछूत , दास तथा न जाने और कितने गाली-वाचक शबदों से पुकारे
जाने दलितों द््रा रचित ” दलित विषयक चेतना साहितय ” में अपने अनुभव को उच्िणना के साहितयकारों के अनुमान की तुलना में अधिक मार्मिक अभिवयसकि प्रदान करने में सक्षम हो रहा है , लेकिन इसे आतमकथातमक साहितय ही कहा जा सकता है ।
हिंदी में 1980 , बाद दलितों द््रा रचित अनेक आतम-कथानक साहितय आईं , जिनके
कुछ नाम इस प्रकार हैं _ ----- मोहनदास , नैमिशराय , ओमप्रकाश , बालमीवक , सूरजपाल , चौहान आदि । 1999 में दलित विषयक पवत्का का प्रकाशन हुआ , इसके बाद दलित विषयक उपनय्सों की रचना हुई । इतना ही नहीं , हिंदी साहितय का दलित विषयक विमर्ष की दृसषट से पुनर्ना्ठ भी आरमभ हुआ , जिसके परिणाम सिरूप , भसकि-साहितय को नई दॄसषट से
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