एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई ।
वरिटिश सैनिकों को मैदान के उस हिससे में आता देख ऊदा ने उन पर निशाना लगाकर फायरिंग करना शुरू कर दिया । पेड़ की डालियों और पत्तों के पीछे छिपकर उसने किसी भी वरिटिश सैनिक को सिकंदरबाग के उस हिससे में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था , जब तक उसका
गोला-बारूद खतम नहीं हो गया । ऊदा ने वरिटिश सेना के दो बड़े अफसरों कूपर और लैमसडन सहित 32 अंग्ेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया । गोलियां ख़तम होने के बाद वरिटिश सैनिकों ने पेड़ को घेरकर उस पर अंधाधुंध फायरिंग की । कोई उपाय न देख जब वह पेड़ से नीचे उतरने लगीं तो उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया । वरिटिश सेना के हाथ पड़रे से पहले ही वह वीरगति को प्रापि हो चुकी थीं ।
लाल रंग की कसी हुई जैकेट और पैंट पहने ऊदा की लाश जब पेड़ से जमीन पर गिरी तो कैंपबेल यह देखकर हैरान रह गया कि वीरगति प्रापि वह बहादुर सैनिक कोई पुरुष नहीं , एक महिला थी । वरिटिश स्जजेंट फॉबसना मिशेल ने अपने एक संसमरण में बिना नाम लिये
सिकंदरबाग में पीपल के बड़े पेड़ के ऊपर बै्ठी एक ऐसी सत्ी का उललेख किया है , जो अंग्ेजी सेना के बत्तीस से अधिक सिपाहियों और अफसरों को मार गिराने के बाद शहीद हुई थी । ऊदा देवी हमारे र्षट्ीय गौरव और सि्वभमान की जीवंत प्रतीक हैं , जिनहोंने सििंत्ि् संग््म में अपने प्राणों की आहुति दी
थी , लेकिन न इतिहास को उनकी याद है और न लोकमानस को ।
झलकारीबाई
झलकारी बाई का जनम 22 नवमबर 1830 को झांसी के पास भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था । बचपन में ही मां की मृतयु हो गई थी । पिता ने उनहें घुड़सवारी और हथियार चलाने में प्रशिक्षित किया । बाद में उनका विवाह रानी लक्मीबाई की सेना में तोपची पूरन सिंह से हो गया ।
लार्ड डलहौजी की राजय हड़पने की नीति के चलते , वरिटिशों ने निःसंतान लक्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी । वरिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी
की सारी सेना , उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उनहोंने आतमसमर्पण करने के बजाए वरिटिशों के खिलाफ हथियार उ्ठ्रे का संकलप लिया । लेकिन रानी के सेनानायकों में से एक दूलहेराव ने उसे धोखा दे दिया और किले का एक संरक्षित द््र वरिटिश सेना के लिए खोल दिया । झांसी के किले को सैनिकों ने घेर लिया था । दीवार टूट जाने के कारण अंग्ेजी सेना के किले में अंदर आने की आशंका बनी हुई थी ।
झांसी किले में आपातकालीन बै्ठक चल रही थी । इतने में झलकारी महारानी लक्मीबाई से मिलने आई , कहा कि युद्ध आमने-सामने का होने वाला है , हम नहीं चाहते कि आप किसी संकट में पड़ें । रानी सियं भी इसी बारे में विचार कर रही थी I उसने झलकारी से इसका उपाय पूछा । उसने कहा कि बाई साहब आपको इस किले से बाहर हो जाना चाहिए । दुशमर को भ्रम में डालने के लिए मैं आपका वेश बनाकर बाहर निकलूंगी ताकि दुशमर मुझे रानी समझ कर मुझे पकड़रे मेरे पीछे आएंगे । इसी बीच आप किले से बाहर चले जाएं । शत्ु भ्रम में पड़् रहेगा और तब तक आप सुरक्षित सथ्र पर पहुंच जाएंगी ।
पूर्ण रूप से सुसज्जित झलकारी रानी के भेष में अंग्ेजों के साथ भयंकर युद्ध कर रही थी , तभी एक सैनिक ने उसे पहचान लिया । झलकारी ने उसे अपनी गोली का निशाना बनाया किंतु गोली किसी अनय अंग्ेज सैनिक को लगी । अंततोगति् झलकारी पकड़ी गई । अंग्ेज अधिकारी ने कहा कि तुमने हमें धोखा दिया है तुमहें मार दिया जाएगा तो झलकारी ने उत्तर दिया " मैं सामने हूं , मार डालो मुझे ।" झलकारी रात में अंग्ेजों के बीच से निकल वापस महल पहुंच गई । जब अंग्ेजों ने वापस झांसी पर आक्रमण किया तो झलकारी तोपची के पास खड़े होकर गोलियों की वर्षा कर रही थी । युद्ध के दौरान तोपची पूरन सिंह को गोली लगी तो संचालन सियं झलकारी ने संभाला और शत्ु की सेना में कोहराम मच गया । उसी समय एक गोला झलकारी को आ लगा और वह " जय भवानी " के उच््र के साथ जमीन पर गिर पड़ी । �
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