May 2023_DA | Page 40

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करांग्ेस ने नहीं कियरा दलित वर्ग के सरा् न्याय

डॉ . राकेश कुमार आर्य

दलितों की राजनीति करने वाले बहुत से दल देश में हैं । इनमें से देश की सबसे पुरानी राजनीतिक प्टटी कांग्ेस ने दलितों के नाम पर राजनीति तो की , पर उनके लिए सामाजिक सुरक्षा उपलबध नहीं कराई , जो एक देश के नागरिकों को उपलबध होनी चाहिए । कांग्ेस के शासनकाल में देश के दलित समाज के साथ वही कुछ होता रहा जो आजादी से पहले होता रहा था । बसपा जैसी प्टटी तो केवल दलितों की राजनीति के नाम पर ही सत्ता का सि्द ले चुकी है । यह बहुत ही दुर्भागयपूर्ण है कि दलितों के लिए राजनीति करने वालों ने भी उनके कलय्ण की योजनाओं को बनाने का काम नहीं किया । बसपा के शासनकाल में दूसरी जातियों के लोगों के साथ कई प्रकार के अतय्चार हुए और दलित समाज के लोगों ने गलत ढंग से प्राथमिकी दर्ज करा कराकर समम्वरि लोगों को अपमानित करने की प्रक्रिया को तेजी से चलाया । जिस पर बसपा की नेता मायावती का भी खुला समर्थन उनहें मिलता रहा । प्रतिशोध की इस भावना से समाज में लोगों में जातिगत दूरियां बढ़ीं और एक नई विसंगति ने जनम लिया , जिसके परिणामसिरूप बसपा को लोगों ने सत्ता से चलता कर दिया ।

बसपा ने भी केवल सत्ता सि्थना ही देखा और दलितों के कंधों को प्रयोग करके अपनी राजनीतिक सि्थनापूर्त्ति की । बसपा की नेता मायावती ने भी अपने दलित भाइयों को केवल अपने सि्थना के लिए प्रयोग किया । कहने का अभिप्राय है कि वह भी वोट की राजनीति से ऊपर उ्ठ नहीं पाई । वासिि में देश में दलित कौन है और दलित होने का लाभ किसको किस
आधार पर दिए जा सकता है या दिया जाना चाहिए ? - इस बात पर कभी सिसथ चर्चा नहीं हुई । यहां पर जातियों या िगयों को थोक के भाव दलित शोषित मान लिया गया । यह तब हुआ जब जाति , धर्म , लिंग से आधार पर नागरिकों के मधय किसी प्रकार का भेदभाव ना करने की बात देश का संविधान करता है । किसी दूसरी जाति के अधिकारों को छीनकर किसी एक को देना भी राजनीतिक जातिवाद है । इस राजनीतिक जातिवाद को हमारे देश में आरक्षण के नाम पर खुललमखुलल् अपनाया गया । देश में जिस प्रकार जातिवाद राजनीतिक सिर पर दिखाई देता
है उसके लिए देश की राजनीति और राजनीतिक दल उत्तरदायी हैं ।
जहां तक दलित कौन है ? का प्रश्न है तो प्रतयेक वह वयसकि जो किसी ना किसी प्रकार से दलन , दमन और अतय्चार का शिकार हो रहा है उसे दलित कहा जाना चाहिए । ऐसा वयसकि किसी जाति विशेष का नहीं हो सकता । वह कोई भी हो सकता है । इसलिए दलित किसी जाति विशेष के साथ जोड़् जाना उचित नहीं है । प्रतयेक ऐसे वयसकि को दलित माना जाना चाहिए जो किसी ना किसी सक्षम , समर्थ और शसकिशाली वयसकि के शोषण और दलन का शिकार है ।
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