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डॉ आंबेडकर की तीन चेतरावनी

सितंत् भारत के इतिहास में 26 नवंबर

का अपना महति है , कयोंकि इसी
दिन वर्ष 1949 में , भारत के संविधान को अपनाया गया था और यह पूर्ण रूप से 26 जनवरी , 1950 को लागू हुआ था । इसलिए इस दिन को भारत के एक नए युग की सुबह को वचवनित करने के रूप में जाना जाता है । संविधान के निर्माताओं के योगदान को सिीकार करने और उनके मूलयों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए , 26 नवंबर को ' संविधान दिवस ' के रूप में मनाया जाता है । गौरतलब है कि , भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को गजट नोटिफिकेशन द््रा 26 नवंबर को ' संविधान दिवस ' के रूप में घोषित किया था । इससे पहले , सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द््रा वर्ष 1979 में एक प्रसि्ि के बाद से इस दिन को ' र्षट्ीय कानून दिवस ' के रूप में जाना जाने लगा था । बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का चर्चित भाषण 25 नवंबर , 1949 को संविधान सभा द््रा अपनी कार्यवाही को समापि करने के एक दिन पहले , संविधान की ड््स्टंग समिति के अधयक्ष , बी . आर . आंबेडकर ने सभा को संबोधित करते हुए एक भाषण दिया , जोकि काफी चर्चित हुआ ।
इस भाषण में उनहोंने नव निर्मित र्षट् के सामने आने वाली चुनौतियों का विसि्र से वर्णन करने के साथ ही बड़े संयमित शबदों में उन चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सुझाए थे । बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की पहली चेतावनी , लोकतंत् में ' विरोध के तरीकों ' के बारे में थी । " वयसकि को सविनय अवज्् , असहयोग और सतय्ग्ह के तरीकों को छोड़र् चाहिए ," उनहोंने कहा था । उनके भाषण में दूसरी चेतावनी ,
किसी राजनीतिक वयसकि या सत्ता के आगे लोगों / नागरिकों के नतमसिक हो जाने की प्रवृति को लेकर थी । " धर्म में भसकि , आतम् के उद्धार का मार्ग हो सकती है । लेकिन राजनीति में , भसकि या नायक की पूजा , पतन और अंततः तानाशाही के लिए एक वरसशचि मार्ग सुवरसशचि करती है ," उनहोंने कहा था ।
उनकी अंतिम और तीसरी चेतावनी थी कि
भारतीयों को केवल राजनीतिक लोकतंत् से संतोष प्रापि नहीं करना चाहिए , कयोंकि राजनीतिक लोकतंत् प्रापि कर लेने भर से भारतीय समाज में अंतर्निहित असमानता खतम नहीं हो जाती है । " अगर हम लंबे समय तक इससे ( समानता ) वंचित रहे , तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत् को संकट में डाल लेंगे ," उनहोंने कहा था । इसके अलावा वह अपने भाषण
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