May 2023_DA | Page 36

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आंबेडकर यदि चाहते तो इसल्म या इसाईयत को ग्हण कर अंतर्नाषट्ीय नायक बन सकते थे । उनको हैदराबाद के निज़ाम ने धन का प्रलोभन दिया तथा पोप ने भी सीधा संपर्क किया । यहां तक कि वामपंथी भी आजीवन उनको प्रभावित करने का प्रयास करते रहे । उनहोंने सबको नकार दिया तो इसका सबसे बड़ा कारण इन धमयों तथा विचारों की जड़ो का विदेश मे होना था ।
धर्म परिवर्तन के विषय में उनके निकट सहयोगी तथा संघ विचारक दत्तोपंत ्ठेंगड़ी से उनका संवाद दिलचसप है जिसे उनहोरे अपने लेख ‘ समरसता के मंत्दृषट् डॉ बाबा साहब आंबेडकर ’ मे वर्णित किया है । इस संवाद मे डॉ आंबेडकर हिनदू समाज में सुधारों की धीमी गति और चेतनासंपन्न हो रहे दलित समाज को मिल रहे प्रलोभनों की चेतावनी देते हैं तथा अपने जीते जी अनुयायियों को बेहतर विकलप प्रदान करने की इचछ् प्रकट करते हैं ।
डॉ आंबेडकर की र्षट्ीय चेतना उपलबध विकलपों को भारतीय परंपरा के ढांचे मे ही रखने को बाधय कर रही थी । इसलिए उनहोरे नाससिकता की तुलना में धार्मिकता को चुना और बौद्ध धर्म ग्हण करने से पहले म्त् एक विकलप सिख धर्म पर विचार किया । अपने तार्किक विशलेरण के बल पर ही डॉ आंबेडकर ने संविधान सभा में संस्कृत को र्षट्ीय भाषा बनाने की पैरवी की । उनका तर्क था कि संस्कृत भारतीय भाषाओं की जननी है तथा सबको शबद समपदा प्रदान करने वाली है , इसलिए वह र्षट्ीय भाषा बनने की सबसे प्रबल अधिकारिणी है । इसके अतिरिकि जब तिलक जैसे प्रखर र्षट्ि्दी अंग्ेजों के मनोवैज््वरक दुषप्रचार मे फंसकर आययों को विदेशी मानने लगे थे , तब डॉ आंबेडकर ने अपने विद्ि्पूर्ण िकयों से इस धारणा को खंडित कर दिया । इस संदर्भ मे उनहोरे जो अकाट्य तर्क प्रसिुि किए उनमें प्रमुखतः भाषा वैज््वरक हैं । जैसे- आर्य शबद की गुणवाचक अभिवयसकि । उनका मानना है कि वेदों मे 33-34 बार जब- जब आर्य शबद आया है , तब-तब रिेष्ठ जन के ही संदर्भ मे आया है । वेदों मे गंगा नदी का बार-बार उललेख भी विदेशी आक्रमणकारी नहीं
कर सकते थे ।
डॉ आंबेडकर भारतीय र्षट् के विकास में बंधुता भाव के विकास को आवशयक मानते थे । इसके लिए राजनीतिक समानता के साथ आर्थिक तथा सामाजिक समानता भी आवशयक थी । संविधान के प्रारूप समिति के अधयक्ष के रूप मे उनहोरे इस कार्य को बखूबी अंजाम दिया । साथ ही सििंत् भारत के प्रथम विधि मंत्ी के रूप में हिनदू कोड बिल के रूप मे राजा राम मोहन राय से प्रारमभ सामाजिक सुधार को एक पड़ाव तक पहुंचाया ।
कुछ आलोचक डॉ आंबेडकर के योगदान को कमतर करने के लिए संविधान में निरंतरता के अभाव का आरोप लगाते हैं । इसका उत्तर बाबा साहब के शबद देते हैं- “ यदि मसौदा समिति ने विषयांतर किया तो उसने ऐसा परिससथवियों का पूर्ण ज््र प्रापि किए बिना नहीं किया । उसने अकसम्ि मछली पकड़ने के लिए बंसी नहीं डाली । वह जिस मछली के पीछे थी , उसे प्रापि करने के लिए परिचित जलाशयों की खोज की ’। इसके साथ ही गांधी और आंबेडकर के द्ंद् को भाव और तर्क के द्ंद् के रूप में देखना चाहिए । दोनों समानता की कलपर् करते हैं लेकिन गांधी जी का समाधान भाव आधारित है तो आंबेडकर का तर्क आधारित ।
गांधी ग््म विकास की बात करते हैं तो आंबेडकर गांवों को “ कूपमंडूकता का परनाला ” बताते हैं । उस समय के इतिहास तथा गोदान जैसे साहितय आंबेडकर को सही बताते हैं तो कोरोना महामारी में शहरी पलायन गांधी को सही साबित करता है । आज का नदी संकट भले पुनर्मूलय्ंकन की मांग करे लेकिन तातक्वलक रूप से आंबेडकर समर्थित बड़ी नदी घाटी परियोजनाएं भारत के सि्िलंबन में सहायक रही ।
र्षट्ीय आंदोलन के आखिरी चरण की सबसे खास बात है कि उस समय के तीन सबसे लोकप्रिय संग्ठरकर्ता गांधी , आंबेडकर और गोलवलकर भारतीयता को बचाने तथा भारत में वामपंथ के उभार को रोकने मे प्रयासरत थे । गांधी का हिंसक विचारधारा से टकराव तो
सि्भाविक है , डॉ आंबेडकर का वकिवय , “ अनुसूचित जतियों और कमयुवरजम के आंबेडकर अवरोध हैं तो सवर्ण हिंदुओं और कमयुवरजम के बीच गोलवलकर अवरोध हैं ।“ अनय धाराओं के विरोध को पुषट करता है । जब सििनत्ि् उपरांत कमयुवरजम भारत की आज़ादी को झू्ठी बताने के साथ विखंडन के सिप्न देखने लगा
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