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महरात्मा बुद्ध और भीमरराव अम्ेडकर
बुध पूर्णिमा के दिन लोग इसे बुद्ध-पूर्णिमा
बताते हैं और गौतम बुद्ध , जिनका जनम
लुसमबरी में हुआ था , कुशीनगर में निर्वाण हुआ था , उनके जनम-ज््र-निर्वाण के साथ इस दिन को जोड़ कर मनाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं भी देते हैं । इस प्रकार देखें तो शुभकामनाएं देकर परोक्ष में लोग बौद्ध-मत को पोषित कर रहे हैं , जिसका कभी आदि-शंकराचार्य जी ने विरोध-खणडर किया था । सच््ई यह है कि यह दिन बुद्ध-पूर्णिमा नहीं है जबकि बुध-पूर्णिमा है । गौतम बुद्ध ( सिद्धार्थ ) के पूर्वज भी इस पूर्णिमा को मनाते थे जिसका नाम बुध-पूर्णिमा ही था I * बुध अवगमने " धातु से बुध शबद सिद्ध होता है । " यो बुधयिे बोधयिे वा स बुध :" जो सियं बोध सिरूप और सब जीवों के बोध का कारण है , इसलिए परमेशिर का नाम बुध है । ( सतय्थनाप्रकाश , प्रथम समुलल्स , महर्षि दयाननद ककृि )
जिस प्रकार सैनिक की िदटी पहनकर कोई तब तक सैनिक नहीं बन जाता , जब तक कि वह नियमानुसार सैनय प्रशिक्षण प्रापि नहीं कर लेता I ्ठीक उसी प्रकार यह कह देने म्त् से कोई बौद्ध नहीं हो जाता कि ‘ मैं अब हिनदू नहीं बौद्ध हूँ ’ कयोंकि बौद्ध बनने के लिए भगवान बुद्ध के उपदेशों को धारण करना अनिवार्य है | 14 अकटूबर 1956 को भीमराव अमबेडकर ने यह घोषणा की कि मैं अब हिनदू नहीं , बौद्ध हूँ I जबकि वासिविकता यह है कि भीमराव जीवन भर बौद्ध नहीं बन पाए कयोंकि उनकी विचारधारा महातम् बुद्ध से बिलकुल विपरीत रही | केवल यह कह देने म्त् से कि मैं हिनदू नहीं बौद्ध हूँ , भीमराव को बौद्ध नहीं माना जा सकता कयोंकि उनहोंने महातम् बुद्ध के उपदेशों को वयिहारिक जीवन में कभी धारण नहीं किया | भीमराव बौद्ध थे या
नहीं , यह समझने के लिए भीमराव अमबेडकर के विचार और महातम् बुद्ध के उपदेशों का तुलनातमक अधययन करना आवशयक है |
भीमराव अमबेडकर के वेदों पर विचार ( निम्नलिखित उद्धरण अमबेडकर वांगमय से लिए हैं ) –
वेद बेकार की रचनाएं हैं उनहें पवित् या संदेह से परे बताने में कोई तुक नहीं | ( खणड 13 प्र . 111 )
ऐसे वेद श्सत्ों के धर्म को निर् मूल करना अनिवार्य है | ( खणड 1 प्र . 15 )
वेदों और श्सत्ों में डायनामाईट लगाना होगा , आपको रिुवि और समृवि के धर्म को नषट करना ही चाहिए | ( खणड 1 प्र . 99 )
जहां तक नैतिकता का प्रश्न है , ऋगिेद में प्रायः कुछ है ही नहीं , न ही ऋगिेद नैतिकता का आदर्श प्रसिुि करता है | ( खणड 8 प्र . 47,51 )
ऋगिेद आदिम जीवन की प्रतिछाया है , जिनमें जिज््सा अधिक है , भविषय की कलपर् नहीं है | इनमें दुराचार अधिक गुण मुट्ी भर हैं | ( खणड 8 प्र . 51 )
अथर्ववेद म्त् जादू टोनो , इंद्रजाल और जड़ी बूटियों की विद्् है | इसका चौथाई जादू टोनों और इंद्रजाल से युकि है | ( खणड 8 प्र . 60 )
वेदों में ऐसा कुछ नहीं है जिससे आधय्सतमक अथवा नैतिक उतथ्र का मार्ग प्रशसि हो | ( खणड 8 प्र . 62 ) महातम् बुद्ध के वेदों पर उपदेश – विद्् च वेदेहि समेच् धममम | न उच््िच्ं
गचछवि भूरिपज्जो || ( सुत्तनिपात शलोक 292 )
अर्थात महातम् बुद्ध कहते हैं – जो विद््र वेदों से धर्म का ज््र प्रापि करता है , वह कभी विचलित नहीं होता |
विद्् च सो वेदगु नरो इध भवाभावे संगम इमं विसज्जा | सो वीततनहो अनिघो निरासो अतारि सो जाति जर्सनि रिूवमवि || ( सुत्तनिपात , शलोक 1060 )
अर्थात वेद को जानने वाला विद््र इस संसार में जनम या मृतयु में आससकि का परितय्ग करके और तृषण् तथा पापरहित होकर जनम और वृद्धावसथ्वद से पार हो जाता है , ऐसा मैं कहता हूँ |
ने वेदगु वदव्ठया न मुतिया स मानं एति नहि तनमयो सो | न कममुर् नोपि सुतेन नेयो अनुपनीतो सो निवेसनूसू || ( सुत्तनिपात , शलोक 846 )
अर्थात वेद को जानने वाला सांसारिक दृसषट और असतय विचारादि से कभी अहंकार को प्रापि नही होता | केवल कर्म और रििण आदि किसी से भी वह प्रेरित नहीं होता | वह किसी प्रकार के भ्रम में नहीं पड़ता |
यो वेदगु ज््ररतो सतीमा समबोवध पत्तो सरनम बहूनां | कालेन तं हि हवयं पवेचछे यो रि्ह्मणो पुणयपेक्षो यजेथ || ( सुत्तनिपात , शलोक 503 )
अर्थात जो वेद को जानने वाला , धय्रपरायण , उत्तम समृवि वाला , ज््री , बहुतों को शरण देने वाला हो जो पुणय की कामना वाला यगय करे , वह उसी को भोजनादि खिलाये |
उपरोकि विवरण से यह सपषट है कि भीमराव अमबेडकर सियं भगवान बुद्ध के उपदेशों के
30 ebZ 2023