May 2023_DA | Page 22

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थे कि हिंदू समाज के लिए दलित वर्ग पहले से ही अछूत और विभाजित था ।
रि्ह्मण तो रि्ह्मण , पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए भी अछूत की छाया अमंगल थी और उसे छू जाने पर वे सीधे स््र करके ही शुद्ध होते थे । लेकिन उन सबका दलित-प्रेम आंबेडकर की मांग से अचानक जाग गया था । यह उनका दलित-प्रेम नहीं जागा था , बसलक राजनीतिक सि्थना जागा था , कयोंकि दलितों के पृथक निर्वाचन से उनके सिराज में बाधा आ रही थी । अगर दलितों का उतथ्र हो जाता , दलित प्रतिनिधि दलितों के हित योजनाएं बनाते , उनहें लागू करवाते , और उनके द््रा उनका तेजी से विकास होता , तो रि्ह्मण तंत् राज किस पर करता ? उनके खेत-खलिहानों और हवेलियों में काम कौन करता ? दलित उनके बराबर में खड़े होते और बै्ठिे , तो उनकी जाति-वयिसथ् का कय् होता ? इसलिए हिंदू रि्ह्मण-िनत् के संरक्षक गांधी ने कहा कि मर जाऊंगा , पर दलितों को हिंदू समाज से अलग नहीं होने दूंगा । गांधी ने हिंदू-हित में प्राणों की बाजी लगाई थी , कयोंकि वह जानते थे कि यह वह अचूक असत् है , जो सही निशाने पर लगता है ।
एक महातम् को कौन मरने देता ? और वह भी उस ससथवि में , जब आंबेडकर को देश-भर से जान से मारने की धमकी-भरे पत् भेजे जा रहे थे । शुरू में आंबेडकर ने भी दृढ़ता से काम लिया था कि वह लाखों दलितों के हितों से समझौता नहीं करेंगे , लेकिन जो हिंदू हिंसा पर उतर आए थे , वे कय् गांधी के मरने पर दलितों को जिनद् छोड़ देते ? लाचार होकर दलितों की सुरक्षा के हित में आरक्षित सीटों के साथ सयुंकि निर्वाचन की शर्त पर समझौता हुआ और गांधी के प्राण बचाए गए । उसी समझौते की वजह से आज दलित प्रतय्शी संयुकि निर्वाचन में आरक्षित सीटों पर भी अपनी जीत के लिए गैर-दलितों के वोटों पर निर्भर करता है ।
इस समझौते के तहत रि्ह्मण तंत् ने एक काम और किया । उसने आरक्षित सीटों पर सबसे अयोगय , अशिक्षित या मामूली शिक्षित और दलित-चेतना , खासकर आंबेडकर-विचार से
अप्रभावित दलित को अपना प्रतय्शी बनाया और उसे हिंदू वोटों के बल से जिताया । वे जीते हुए दलित नेता आजीवन सिणयों के यसमैन बनकर रहे , और दलितों के हित में कोई काम नहीं कर सके । अगर किसी ने दलितों की समसय्ओं में रूचि भी ली , तो अगली बार प्टटी ने उससे भी अयोगय दलित को टिकट देकर , उसका पत्ता साफ़ कर दिया । इसके उदाहरण भाजपा से ही दिया जा सकता है । उदित राज को भाजपा ने टिकट देकर संसद में भेजा , पर जब सांसद के रूप में उदित राज ने विशिविद््लयों में दलितों-पिछड़ों के आरक्षण को कम करने के लिए बनाई गईं नीतियों के खिलाफ आवाज
उ्ठ्ई , और प्रदर्शनों में भागीदारी की , तो अगली बार दलित गायक हंसराज को टिकट देकर उदित राज का पत्ता साफ़ कर दिया गया । दूसरा उदाहरण उत्तरप्रदेश में हाथरस जिले की इगलास सुरक्षित सीट से 2017 में निर्वाचित विधायक राजवीर दिलेर का है । उसके पिता किशन लाल भी पांच बार के विधायक और एक बार के सांसद थे । पढ़ाई-लिखाई इनकी जय्दा नहीं है । इनके बारे में एक रिपोर्ट एक अंग्ेजी के समाचारपत् में प्रकाशित हुई थी , जिसके अनुसार ये सिणयों के यहां जमीन पर बै्ठिे हैं , चाय के लिए अपना कप अपने साथ रखते हैं और कहते हैं कि “ मेरे बाप भी जातिवाद मानते थे , और मैं
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