May 2023_DA | Page 21

न दे , और कोई दलित-भंगी या चमार-निर्दलीय खड़ा हो जाए , तो कय् तब भी वद्ज और शूद्र जातियां उसे वोट देंगी ? जवाब है , नहीं देंगी ।
कोई भी वद्ज और शूद्र कभी भी ससथवि में किसी भी भंगी-चमार या खटिक को , चाहे वह कितना ही योगय हो , अपना प्रतिनिधि चुनना पसंद नहीं करेंगे । कयों नहीं करेंगे ? वह इसलिए
कि वे यह मानकर चलते हैं , कि जो भी दलित प्रतय्शी निर्दलीय खड़ा है , वह दलित हितों को समर्पित है , और वह दलितों के विकास में रूचि लेगा । अब सवाल है कि राजनीतिक पार्टियां जिन दलितों को टिकट देती हैं , कय् वे दलित- हितों को समर्पित नहीं होते ? जवाब है , वे वासिि
में नहीं होते । कयों नहीं होते , इस पर बात करने से पहले यह जान लेना जरूरी है , कि राजनीतिक पार्टियों द््रा दलितों को टिकट इसलिए नहीं दिया जाता कि वे दलितों से पय्र करती हैं , या दलितों को प्राथमिकता देती हैं , बसलक सच यह है कि दलितों को टिकट देना उनकी लोकतांवत्क मजबूरी है , कयोंकि दलितों के लिए संविधान में
आरक्षित सीटों का प्रावधान है । अगर संविधान में दलितों के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्ों का प्रावधान न होता , और सभी निर्वाचन क्षेत् सामानय होते , तो कोई भी प्टटी किसी भी निर्वाचन क्षेत् में दलित को टिकट देना लोकतांवत्क जिममेदारी नहीं समझती । जैसे मुसलमानों के
लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है , इसलिए भाजपा किसी भी मुसलमान को टिकट देना अपनी लोकतांवत्क मजबूरी या जिममेदारी नहीं समझती है ।
यह तय हो जाने के बाद कि दलित प्रतय्शी केवल आरक्षित सीटों पर ही राजनीतिक दलों द््रा खड़े किए जाते हैं , जो उनकी लोकतांवत्क मजबूरी है । अब इस सवाल पर चर्चा की जा सकती है कि राजनीतिक पार्टियां जिन दलितों को टिकट देती हैं , कय् वे दलित हितों को समर्पित होते हैं ? मेरा उत्तर है कि वे नहीं होते , और वे हो भी नहीं सकते , कयोंकि पार्टियां दलित उममीदवारों को ्ठोंक-बजाकर ही टिकट देती हैं । उनकी प्रोफाइल में अगर थोड़ी भी रेडिकल चेतना या गतिविधि नजर आती है , तो उनहें खारिज कर दिया जाता है । उनहें रेडिकल दलित नहीं , बसलक आलाकमान की हां में हां मिलाने वाले दलित चाहिए , भले ही वे अपना और अपने परिवार का कितना ही विकास कर लें ।
यह ससथवि कयों और कैसे पैदा हुई ? इसका जवाब है पूना-पैकट । जब अंग्ेज भारत छोड़कर जाने वाले थे और भारत के भावी संविधान में सांप्रदायिक प्रतिनिधिति तय किए जाने के लिए लंदन में गोलमेज सभा बुलाई गई थी , तो उसमें डॉ . आंबेडकर ने दलित िगयों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की थी , कयोंकि वह जानते थे कि दलित वर्ग अलपसंखयक में भी अलपसंखयक है , और वह अपने बल पर जीतकर विधायक और सांसद नहीं बन सकता । उनहोंने यह मांग की कि दलित प्रतिनिधियों का चुनाव केवल दलितों के वोटों से ही किया जाएगा , संयुकि वोटों से नहीं । इस मांग के पीछे उनका उद्ेशय दलित प्रतिनिधियों को दलितों के प्रति जिममेदार बनाना था । जब उनकी यह मांग मंजूर कर ली गई , तो हिंदू समाज का उच् तंत् हिल गया और गांधी इसके विरुद्ध अनशन पर बै्ठ गए । पूरे देश का सिराजवादी हिंदू वायु-मंडल गांधी की जयजयकार और आंबेडकर मुर्दाबाद के नारों से गूंज गया । गांधी और तमाम नेता चिलल्रे लगे कि इससे हिंदू समाज विभाजित हो जाएगा । लेकिन वे अपनी अंधी आंखों से देख नहीं पाते
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