nfyr vfLerk
दलितों के विकरास के लिए क्ों नहीं कराम करते दलित नेतरा ?
कंवल भारती
इस सवाल पर विचार करने से पहले कि दलित राजनेता दलितों के विकास के लिए काम कयों नहीं करते , यह देख लिया जाए कि दलित राजनेताओं को चुनता कौन है ? आप कहेंगे- राजनीतिक दल । लेकिन यह जवाब पूर्ण सतय नहीं है , कयोंकि राजनीतिक दल केवल टिकट देते हैं । उनहें विधायक और सांसद चुनने का काम जनता करती है । मैं अगर सवाल करूं कि यह जनता कौन है ? तो आप कहेंगे , कय् बचकाना सवाल है ? और आप जवाब देंगे कि वह भारतीय जनता है । लेकिन नहीं , यह जवाब भी गलत है , कयोंकि अभी भी भारत एक र्षट् नहीं बना है । इसलिए वह किसी भी तरह से भारतीय जनता नहीं है । अब आप पूछेंगे कि फिर वह कय् है ? बस इसी तथय को आपको समझना है । इसे समझे बगैर आप दलित अससमि् को नहीं समझ सकते ।
भारत की जनता हिंदू , मुसलमान , सिख , ईसाई , और उसके बाद सवर्ण और अवर्ण है । अब मैं बात सिर्फ हिंदू जनता की करूंगा , कयोंकि दलित राजनेताओं का संबंध न मुसलमानों से है , न ईसाईयों से और न सिखों से है । उनका संबंध सीधे हिंदुओं से है । और हिंदू अपने आप में कोई चेतना नहीं है । चेतना है रि्ह्मण की , भूमिहार की , ्ठ्कुर की , वैशय की , कायसथ की , जाट की , गुज्जर की , चमार की , भंगी की , नाई की , धोबी की , यादव की , सैनी की , लोधी की , और तमाम जातियों की । इनमें रि्ह्मण , भूमिहार , ्ठ्कुर , वैशय , वद्ज जातियां मानी जाती हैं I इनमें कायसथ , जाट , गुज्जर और यहां तक कि पिछड़ी जातियों में , जो अहीर , सैनी , नाई और लोध आदि भी , जो शूद्र जातियां हैं , भंगी , चमार , पासी ,
खटीक आदि दलित जातियों को पसंद नहीं करतीं । अब यही जनता कांग्ेस , भाजपा और अनय दलों में भी है । इनमें से कोई भी दल अगर दलित प्रतय्शी को खड़ा करता है , तो उसे वोट देना उन लोगों की नैतिक जिममेदारी हो जाती है , जो उस दल के समर्थक या प्रशंसक होते
हैं । वे दलित को वोट नहीं देते , बसलक प्टटी को वोट देते हैं । जैसे पिछले आ्ठ सालों से ये लोग विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में प्रतय्शी को नहीं , बसलक मोदी के नाम पर भाजपा को वोट देते आ रहे हैं । लेकिन , अगर कोई प्टटी , मान लें कि भाजपा ही किसी दलित को टिकट
20 ebZ 2023