मंथन होता था । इस मंथन में देश को , समाज को नए दिशा-हन्वेश मिलते थे ।
उनिोंने लिखा कि इसके बाद हर छह वर्ष में अर्धकुं्भ में पररकस्हतयों और दिशा-हन्वेशों की समीक्ा होती थी । 12 रदूण्मकुं्भ होते-होते , यानि 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-हन्वेश , जो परंपराएं पुरानी रड़ चुकी होती थीं , उनिें तयाग दिया जाता था , आधुनिकता को सवीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढा जाता था । 144 वरषों के बाद होने वाले महाकु ं्भ में ऋषियों-मुनियों द्ारा , उस समय-काल और पररकस्हतयों को देखते हुए नए संदेश ्भी दिए जाते थे । अब इस बार 144 वरषों के बाद रड़े इस तरह के रदूण्म महाकु ं्भ ने ्भी हमें ्भारत की विकासयारिा के नए अधयाय का संदेश दिया है । ये संदेश है- विकसित ्भारत का ।
उनिोंने लिखा कि आज मुझे वह प्संग ्भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीककृषण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रहांड के दर्शन कराए थे । वैसे ही इस महाकु ं्भ में ्भारतवासियों
ने और हव्व ने ्भारत के सामरय्म के विराट सवरूप के दर्शन किए हैं । हमें अब इसी आतरहव्वास से एक निष्ठ होकर , विकसित ्भारत के संक्र को रदूरा करने के लिए आगे बढना है । ्भारत की यह एक ऐसी शक्त है , जिसके बारे में ्भक्त आंदोलन में हमारे संतों ने राषट्र के हर कोने में अलख जगाई थी । विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों , हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था । इसकी अनु्भदूहत गांधी जी ने ्भी आजादी के आंदोलन के समय की थी । आजादी के बाद ्भारत की इस शक्त के विराट सवरूप को यदि हमने जाना होता , और इस शक्त को सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता , तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते ्भारत की बहुत बड़ी शक्त बन जाती । लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए । अब मुझे संतोष है , खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्त , विकसित ्भारत के लिए एकजुट हो रही है ।
उनिोंने लिखा कि वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उरग्ि तक , ्भारत की महान परंपराओं ने इस राषट्र को गढा है । मेरी कामना है , एक नागरिक के नाते , अननय ्भक्त ्भाव से , अपने रदूव्मजों का , हमारे ऋषियों-मुनियों का पुणय सररण करते हुए , एकता के महाकु ं्भ से हम नई प्ेरणा लेते हुए , नए संक्रों को साथ लेकर चलें । हम एकता के महामंरि को जीवन मंरि बनाएं , देश सेवा में ही देव सेवा , जीव सेवा में ही शिव सेवा के ्भाव से सवयं को समर्पित करें ।
प्धानमंरिी मोदी ने लिखा कि जब वह काशी चुनाव के लिए गए थे , तो उनके अंतरमन के ्भाव शब्ों में प्कट हुए थे , और लिखा था- मां गंगा ने मुझे बुलाया है । इसमें एक दायितव बोध ्भी था , हमारी मां सवरूपा नदियों की रहवरिता को लेकर , सवचछता को लेकर । प्यागराज में ्भी गंगा-यमुना-सरसवती के संगम पर यह संक्र और दृढ हुआ है । गंगा जी , यमुना जी , हमारी नदियों की सवचछता हमारी जीवन यारिा से जुड़ी है । हमारी जिमरे्ारी बनती है कि नदी चाहे छोटी हो या बड़ी , हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्हतरूप मानते हुए हम अपने यहां सुविधा के अनुसार , नदी उतसव जरूर मनाएं । ये एकता का
महाकु ं्भ हमें इस बात की प्ेरणा देकर गया है कि हम अपनी नदियों को निरंतर सवचछ रखें , इस अह्भयान को निरंतर मजबदूत करते रहें ।
उनिोंने लिखा कि मैं जानता िदूं , इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था । मैं प्ा््मना करता िदूं मां गंगा से , मां यमुना से , मां सरसवती से-हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्रा करिएगा । जनता जनार्दन , जो मेरे लिए ई्वर का ही सवरूप है , श्रद्ालुओं की सेवा में ्भी अगर हमसे कुछ कमी रह गई हो , तो मैं जनता जनार्दन का ्भी क्राप्ा्जी िदूं । श्रद्ा से ्भरे जो करोड़ों लोग प्याग पहुंचकर इस एकता के महाकु ं्भ का हिससा बने , उनकी सेवा का दायितव ्भी श्रद्ा के सामरय्म से ही रदूरा हुआ है । उतिर प््ेश का सांसद होने के नाते गर्व से कह सकता िदूं कि योगी जी के नेतृतव में शासन , प्शासन और जनता ने मिलकर , इस एकता के महाकु ं्भ को सफल बनाया । केंद्र हो या राजय हो , यहां ना कोई शासक था , ना कोई प्शासक था , हर कोई श्रद्ा ्भाव से ्भरा सेवक था । हमारे सफाईकरजी , पुलिसकरजी , नाविक साथी , वाहन चालक , ्भोजन बनाने वाले , स्भी ने रदूरी श्रद्ा और सेवा ्भाव से निरंतर काम करके इस महाकु ं्भ को सफल बनाया ।
उनिोंने लिखा कि प्यागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उ्ठाकर ्भी जिस तरह श्रद्ालुओं की सेवा की है , वह अतुलनीय है । प्यागराज के स्भी निवासियों का , उतिर प््ेश की जनता का आ्भार वय्त करते हुए अह्भनंदन करता िदूं । महाकुं्भ के दृ्यों को देखकर , बहुत प्ारं्भ से ही मेरे मन में जो ्भाव जगे , जो पिछले 45 दिनों में और अधिक पुषट हुए हैं , राषट्र के उज्वल ्भहवषय को लेकर मेरी आस्ा , अनेक गुना मजबदूत हुई है । 140 करोड़ देशवासियों ने जिस तरह प्यागराज में एकता के महाकु ं्भ को आज के हव्व की एक महान पहचान बना दिया , वह अद्भुत है । महाकु ं्भ का स्थूल सवरूप महाशिवराहरि को रदूण्मता प्ापत कर गया है । लेकिन मुझे हव्वास है , मां गंगा की अविरल धारा की तरह , महाकु ं्भ की आधयाकतरक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी ।
( लेखक भारत के प्धानमंत्ी हैं )
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