संवैधानिक गणतंत्
सार्ाजिक न्ाय की खोज र्ें
प्ो . सिद्ेशवर प्साद
बर्मा के प्धानमंरिी श्री कन्नदू ने डा . ्भीमराव आंबेडकर मबेडकर का सररण करते हुए कहा था कि वह उन लोगों में अग्णी थे , जिनिोंने सामाजिक परिवर्तन की प्हरिया को तेज करने में ऐतिहासिक ्भदूहरका हन्भाई । यह टिपरणी डा . आंबेडकर के प्हत सच्ची श्रद्ांजलि ही नहीं , बल्क उनके वयक्ततव और ककृहततव का सही मूल्यांकन ्भी है । उनका सम्पूर्ण जीवन ( 1891-1956 ) संघर्ष तथा सामाजिक अनयाय के विरु द् सामाजिक नयाय की खोज की एक जीवनत गाथा है और अपने इस संघर्ष में उनिें जैसी सफलता मिली , वैसी विरलों को ही मिलती है । वह संविधान स्भा की प्ारुप समिति के अधयक् और ्भारत के विधि मंरिी थे । संसार के इतिहास में ऐसे ्भागयशाली वयक्त बहुत कम हुए है , जिनिें अपने सपने को रदूत्म रूप देने का अवसर प्ापत हुआ हो । डा . आंबेडकर की मानयता थी कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंरि के बिना राजनीतिक लोकतंरि अधदूरा है । संविधान स्भा में 29 अप्ैल 1947 को सरदार वल्लभ ्भाई पटेल के प्सताव को सवीकार कर , संविधान स्भा ने न केवल असरृ्यता को समापत ही किया , बल्क इसको दंडनीय अपराध ्भी करार दिया । यह एक ऐसा मुद्ा था , जिस पर महातरा गांधी और डा . आंबेडकर ही नहीं , बल्क सरदूचा देश एकमत था । इस निर्णय को ्भारतीय इतिहास का
गौरवशाली अधयाय बताते हुए सारे संसार में इसकी मु्त कं्ठ से प्शंसा की गई । न्यूयार्क टाइमस ने असरृ्यता की समाकपत की तुलना अमेरिका में की गई दासता की समाकपत से की थी ।
25 नवमबर 1949 को संविधान स्भा में दिए गए उनके ्भाषण की प्ासंगिकता और सार्थकता आज तब से और अधिक है , ्योंकि चार दशकों के इस अंतराल ने , उस ्भाषण में वय्त की गई उनकी स्भी आशंकाओं को , दु्भा्मगयवश , सही हसद् कर दिया । बाद के घटनारिर में , न केवल उनिें दो वरषों के ्भीतर ही मंहरिपरिषद् से तयागररि देना रड़ा , बल्क उनका राजनीतिक प्रभाव ्भी क्ीण हो गया । पर इससे सामाजिक नयाय की खोज के उनके काम में कोई बाधा नहीं रड़ी ।
इतिहास इस बात का साक्ी है कि जो वयक्त नयाय की खोज करता है , अनयाय करने वाले उससे बदला लिए बिना नहीं रहते । अब्राहम लिंकन और महातरा गांधी की तो इस कारण हतया तक करवा दी गई ।
डा . आंबेडकर ने अपने इस ऐतिहासिक ्भाषण में कहा था-
“ केवल राजनीतिक लोकतनरि से ही हमें सनतुषट नहीं हो जाना चाहिए । अपने राजनीतिक लोकतनरि को हमें सामाजिक लोकतंरि का रूप ्भी देना चाहिए । सामाजिक लोकतंरि का ्या अर्थ है ? इसका अर्थ जीवन के उस मार्ग से है जो सवातनत्र , समता और बनधुतव को जीवन के सिद्ानतों के रूप में अह्भज्ञात करता है । सवातनत्र , समता और बनधुतव के इन सिद्ानतों
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