द्ारा ्भारी विरोध , अंग्ेजों द्ारा प्सताहवत कसटर रेखा का उ्लंघन , सवतंरिता के प््र संग्ार मेर्ठ-1857 की रिांहत के बाद असली नायक खटिक वंश के तितोरिया , सवतंरिता सेनानियों की तरह खटिक जाति अंग्ेजी शासन में अपराधी घोषित , खटिक सवतंरिता सेनानी देश्भर में , गांधी आंदोलन और खटिक समाज , धर्म- संस्कृति एवं मातृ्भदूहर पर खटिक जाति नयोछावर और मातृ्भदूहर के असली सरदूत खटिक को बताया गया है । इस अधयाय में डा . सोनकर शासरिी ने लिखा है कि मातृ्भदूहर की रक्ा में अपना सर्वसव सवािा कर देने का अदमय सहस खटिक जाति के लोग मुखय रूप से रखते थे । इसलिए इनको मातृ्भदूहर का असली सरदूत कहा जाना रदूण्मरूपेण सतय होगा ।
पुसतक के सातवां अधयाय हिं्दू संस्कृति एवं राषट्रीयता की पहचान खटिक पर केंद्रित है । इस अधयाय में हिन्ुस्ान के प्तयेक ्भाग में खटिक जाति , हिं्दू धर्म और संस्कृति की वाहक खटिक जाति , ्भारतीय अर्थवयवस्ा की मेरुदंड हिं्दू खटिक जाति , खटिक जाति की पहचान हिं्दू धर्म रक्क , हव्ववयारी उग्वाद की पर्याय इसलामिक ताकत को खटिक जाति प्तयोतिर देने में सक्र , राजनीतिक ढांचे में खटिक जाति महत्वपूर्ण , खटिक जाति की सांस्कृतिक राषट्रवादी मानसिकता एवं हिं्दू खटिक जाति का उज्वल ्भहवषय पर प्काश डाला गया है ।
जबकि पुसतक का आ्ठवां एवं अंतिम अधयाय खटिक जाति का पुनरुत्ान एवं सशक्तकरण पर है । इस अधयाय में दलित
जातियों की दयनीय पररकस्हत , खटिक जाति दलित जाति की श्रेणी में , दलित जातियों के पुनरुत्ान में ही राषट्र हित , खटिक जाति का सामाजिक उत्ान आव्यक , खटिक जाति का आर्थिक विकास आव्यक , खटिक जाति का शैक्हणक एवं राजनीतिक सशक्तकरण , खटिक जाति को सम्पूर्ण हिन्ुस्ान में अनुसदूहचत जाति में सकमरहलत करना आव्यक एवं हिं्दू हितरक्ण की पर्याय खटिक जाति पर विसतार से चर्चा की गई है । डा . सोनकर शासरिी के अनुसार वर्तमान समय में खटिक जाति का पुनरुत्ान एवं सशक्तकरण आव्यक एवं अपरिहार्य है । यह एक धरा्मह्भरानी , स्वाभिमानी एवं राष्ट्राभिमानी जाति एवं लोगों का सरदूि है जो विदेशी आरिांताओं के प्चंड उतरीड़न , दमन एवं दलन के कारण बलरदूव्मक बनाई गई दलित जाति है । दुख का विषय है कि अ्भी तक इस जाति को अनेकों प्ांतों में अनुसदूहचत जाति की श्रेणी में नहीं रखा गया है ।
344 पृष्ठों में समाहित पुसतक का आमुख राषट्रीय सवयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा . ककृषण गोपाल ने लिखा है । अपने आमुख में उनिोंने सरषट लिखा है कि संस्कृति एवं धर्म के रक्क के साथ ही आर्थिक वयवस्ा की मेरुदंड के रूप में खटिक जाति का स्ान इस जाति के महतव को हसद् करती है । पुसतक में खटिक जाति के सशक्तकरण एवं पुनरुत्ान का विधिवत विवेचन एवं उनकी संसतुहत विशेष रूप से इनिें , जो कुछ स्ानों पर अनुसदूहचत जाति में रखा गया , उसे बढाकर इनिें सम्पूर्ण देश में अनुसदूहचत जाति में शामिल किया जाए- इस विषय पर समाज एवं सरकार को चिंतन करने की आव्यकता है । इस प्कार सम्पूर्ण पुसतक हिं्दू खटिक जाति के सम्पूर्ण गौरवशाली इतिहास , वीरता , समरान एवं उनके सामाजिक- आर्थिक-राजनीतिक दशाओं को तरयों के साथ पा्ठकों के सामने रखती है और हर पा्ठक पुसतक का अधययन करके खटिक जाति के अतीत एवं वर्तमान को आसानी से जान और समझ सकता है ।
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