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किया गया । फिर 11 दिसंबर को सर्वसमरहत से डा . राजेंद्र प्साद संविधान स्भा के अधयक् नियु्त किए गए ।
संविधान स्भा की बै्ठक के पांचवे दिन 13 दिसंबर को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान स्भा में लक्य संबंधी प्सताव पेश किया । वरिष्ठ कांग्ेसी नेता पुरुषोतिर दास टंडन ने इसका अनुमोदन किया । हर सदसय को इस पर अपनी बात रखनी थी । शुरुआत तो इसी से हुई कि जब तक मुकसलर लीग के सदसय इस स्भा में शामिल नहीं होते , बात होनी ही नहीं चाहिए , लेकिन फिर मुकसलर लीग का अहड़यल रवैया देखकर संविधान स्भा के जया्ातर लोग आगे बढने पर राजी हो गए ।
जब पहली बार संविधान सभा में बोले डा . आंबेडकर
और फिर आई तारीख 17 दिसंबर , 1946 । वह तारीख जब डा . ्भीम राव आंबेडकर पहली बार संविधान स्भा में बोले । हालांकि उस दिन डा . आंबेडकर से पहले 20-22 और ्भी सदसय थे , जिनिें बोलना था । वरिष्ठ ररिकार राम बहादुर राय अपनी किताब ्भारतीय संविधान की अनकही कहानी में लिखते हैं कि आंबेडकर 17 दिसंबर को बोलने के लिए तैयार नहीं थे , ्योंकि उनिें पता था कि और ्भी लोग उनसे पहले बोलने वाले हैं , लिहाजा उनका नाम अगले दिन आ सकता है । तब वह तैयारी करके संविधान स्भा में बोल सकते हैं । लेकिन और लोगों को पीछे छोड़ते हुए 17 दिसंबर को ही संविधान स्भा के अधयक् राजेंद्र प्साद ने आंबेडकर को बोलने के लिए आमंहरित किया । उस दिन आंबेडकर बोले और खुलकर बोले । और ऐसा बोले कि उनका कहा इतिहास हो गया । बकौल राम बहादुर राय की किताब ्भारतीय संविधान की अनकही कहानी , डा . आंबेडकर ने कहा :
कांग्ेस और मुकसलर लीग के झगड़े को सुलझाने की एक और कोशिश करनी चाहिए । मामला इतना संगीन है कि इसका फैसला एक या ्दूसरे दल की प्हतष्ठा के खयाल से ही नहीं किया जा सकता । जहां राषट्र के ्भागय का फैसला
करने का प्श्न हो , वहां नेताओं , दलों , संप््ायों की शान का कोई मूल्य नहीं रहना चाहिए । वहां तो राषट्र के ्भागय को ही सववोपरि रखना चाहिए ' उस दिन डा . आंबेडकर ने अपने ्भाषण का समापन करते हुए कहा :" शक्त देना तो आसान है , पर बुहद् देना कह्ठन है ।
अप्ैि , 1947 को संविधान सभा का तीसरा सत्
लंबे वाद-विवाद के बाद 22 जनवरी , 1947 को संविधान स्भा ने लक्य संबंधी प्सताव को सवीकार कर लिया जो संविधान की प्सतावना का आधार बना । हालांकि उस दिन तक ्भी
मुकसलर लीग का कोई प्हतहनहध संविधान स्भा में नहीं आया । टकराव और बढ गया और तब 13 फरवरी , 1947 को पंडित नेहरू ने मांग की कि अंतरिम सरकार में शामिल मुकसलर लीग के मंरिी इसतीफा दे दें । सरदार पटेल ने ्भी यही दोहराया । इस बीच 20 फरवरी को ब्रिटिश प्धानमंरिी एटली ने घोषणा की कि जदून 1948 से पहले सतिा का हसतांतरण कर दिया जाएगा । लेकिन इसके लिए एटली ने शर्त रखी । और शर्त ये थी कि जदून 1948 से पहले संविधान बन जाना चाहिए , ऐसा नहीं हुआ तो फिर ब्रिटिश हुकूमत को विचार करना होगा कि सतिा किसे सौंपी जाए , ऐसी पररकस्हतयों को देखते हुए 28
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