अप्ैल , 1947 को संविधान स्भा का तीसरा सरि शुरू हुआ । अधयक् डा . राजेंद्र प्साद ने एटली की घोषणा के बारे में सबको बताया और कहा कि अब संविधान स्भा को अपना काम तुरंत रदूरा करना होगा ।
आंबेडकर पुनः बंबई से संविधान सभा के सदस्य बने
इसके ्ठीक पहले 24 मार्च 1947 को नए गवर्नर-जनरल ललॉड्ट माउंटबेटन ्भारत आ गए थे और चंद दिनों में ही तय कर दिया था कि ्भारत का बंटवारा होगा । ्भारत और पाकिसतान दो देश होंगे । अब इसकी वजह से संविधान
स्भा में फिर बदलाव होना था । जिस सीट जयसुरकुलना से डा . आंबेडकर संविधान स्भा के सदसय चुने गए थे , वह सीट पाकिसतान के हिससे में चली गई । इस तरह से डा . आंबेडकर एक बार फिर से संविधान स्भा से बाहर हो गए , लेकिन तब तक संविधान स्भा के लोगों ने यह तय कर लिया था कि डा . आंबेडकर का संविधान स्भा में रहना जरूरी है । तब बंबई प्ेहसडेंसी के प्धानमंरिी हुआ करते थे बी । जी । खेर । उनिोंने संविधान स्भा के एक और सदसय और कांग्ेस पाटजी के वरिष्ठ नेता एम । आर । जयकर को इसतीफा देने के लिए राजी किया । एम । आर । जयकर ने इसतीफा दिया और उनकी जगह पर डा . आंबेडकर फिर से संविधान स्भा में शामिल हो गए । 14 अगसत , 1947 की रात 12 बजते ही संविधान स्भा के अधयक् डा . राजेंद्र प्साद ने कहा-शासनाधिकार ग्िण कर लिया है ।!
' संविधान सभा ने भारत का प्ारूप समिति के अधयक् बने डा . आंबेडकर
आजादी मिलने के बाद और सतिा का हसतांतरण संविधान स्भा के पास होने के साथ ही संविधान स्भा अपने रदूल लक्य की ओर आगे बढी । इसी कड़ी में 29 अगसत 1947 को संविधान स्भा ने प्ारूप समिति के अधयक् के तौर पर डा . ्भीमराव आंबेडकर का नाम सर्वसमरहत से पास कर दिया , प्ारूप समिति में और ्भी 6 सदसय थे । 30 अगसत 1947 से संविधान स्भा स्हगत कर दी गई ताकि संविधान का मसौदा या कहिए प्ारूप बनाया जा सके । 27 अ्टूबर से प्ारूप समिति ने रोजमर्रा का काम शुरू किया । बात-विचार और बहस- मुबाहिसे के बाद 21 फरवरी 1948 को प्ारूप समिति के अधयक् आंबेडकर ने संविधान स्भा के अधयक् राजेंद्र प्साद के सामने संविधान का प्ारूप रखा । राजेंद्र प्साद ने इस मसौदे को सरकार के मंरिालयों , प््ेश सरकारों , विधानस्भाओं और सुप्ीर कोर्ट और हाई कोर्ट को ्भेजा ताकि सबके सुझावों को शामिल किया जा सके । जो सुझाव आए , उनपर प्ारूप समिति
ने 22 मार्च से 24 मार्च 1948 के बीच विचार विमर्श किया । 3 नवंबर , 1948 से फिर से संविधान स्भा की बै्ठक शुरू हुई । 4 नवंबर , 1948 को डा . राजेंद्र प्साद ने फिर से मसौदे पर बात की और संविधान स्भा को कहा कि ये मसौदा उस समिति ने बनाया है , जिसे इसी संविधान स्भा ने बनाया था , जिसके अधयक् आंबेडकर हैं । 4 नवंबर को उसी दिन अंबेडकर ने मसौदे को संविधान स्भा के पटल पर रखा । आने वाले दिनों में कुछ संशोधन ्भी सुझाए गए । कुछ माने गए । कुछ को खारिज कर दिया गया । फिर 17 नवंबर , 1949 को संविधान स्भा के अधयक् राजेंद्र प्साद ने घोषणा की-
अब हम संविधान के तृतीय पठन को आरंभ करेंगे ।
इसका अर्थ था कि अब संविधान बनकर तैयार हो गया है । इसके बाद राजेंद्र प्साद ने मसौदा समिति के अधयक् आंबेडकर को पुकारा । वह खड़े हुए , और कहा : " मैं यह प्सताव पेश करता िदूं कि संविधान को स्भा ने जिस रूप में निश्चत किया है , उसे पारित किया जाए । ' इस प्सताव पर 17 नवंबर 1949 से 25 नवंबर , 1949 तक बहस हुई । और फिर 26 नवंबर को संविधान स्भा के अधयक् के तौर पर राजेंद्र प्साद ने अपना आखिरी अधयक्ीय ्भाषण दिया । ्भाषण खतर होने के बाद राजेंद्र प्साद ने रदूछा- ' प्श्न यह है कि इस स्भा द्ारा निश्चत किए गए रूप में यह संविधान पारित किया जाए !
वरिष्ठ ररिकार राम बहादुर राय अपनी किताब ्भारतीय संविधान की अनकही कहानी में लिखते हैं कि डा . राजेंद्र प्साद के इस सवाल पर धवहनरत से संविधान सवीककृत किया गया । सदन में देर तक तालियां बजती रहीं । । । और फिर 26 जनवरी , 1950 को देश को अपना वो संविधान मिला , जिसके लिए हम गर्व से कहते हैं कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है , जिसको बनाने में डा . आंबेडकर का वह योगदान है , जिसकी वजह से उनिें ्भारत के संविधान निर्माता की उपाधि मिली हुई है ।
( साभार )
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