March 2025_DA | Page 22

विचार

बहुजन-दलित आंदोलन , राजनीति और परिवारवाद

डा . प्वेश कुमार

साहब आंबेडकर के बाद देश ्भर में और विशेषकर हिन्ीरट्ी बाबा

की प्ांतों में तेज़ी से दलित बहुजन आंदोलन चला । उतिर प््ेश में कस्त बनारस में जहां 60 के दशक में बाबा साहब आंबेडकर की रदूहत्म लगा दी गई तो वही राम मनोहर लोहिया आदि ने 80 के दशक तक बाबा साहब आंबेडकर और उनके विचारों को समाजवादी चासनी में डुबो कर बिदूजन दलितों के आगे परोसा । 50 के दशक में देश की राजनीति में पिछड़ों की सदूचीकरण की मांग उ्ठी और इसी को धयान रखते हुए राषट्रपति की संसतुहत पर 29 जनवरी 1953 को काका कलेकार की अधयक्ता में एक समिति बना दी गई , जिसका कार्य हवह्भन्न पिछड़ी जातियों को सदूचीबद् करना था । इससे पहले अंग्ेजों द्ारा दलित असरृ्य समाज एवं जनजातीय समाज को पहले ही सदूचीबद् किया जा चुका था । इसी तरह 70 के दशक में दलित पेंथर आंदोलन और रररकबलकन पाटजी के आंदोलन और उनकी मांगों ने उतिर ्भारत और महाराषट्र प्ांत में बिदूजनो विशेषकर दलितों के मधय चेतना जागरण का बड़ा कार्य किया ।
उतिर पट्ी में फैले समाजवादी आंदोलन ने
जहां दलितों-पिछड़ो के बीच एक नेतृतव पैदा किया , वही उनमें समाज बदलाव की तीव्र इचछा ्भी जागृत करने का काम किया । समाजवादी आंदोलन का जनर उसी समता के रदूल चिंतन पर आधारित था , जिसकी बात ्भारत के देशिक चिंतन और गांधी , डा . हेडगेवार , डा . आंबेडकर ने की थी और इसीलिए नारा लगाया कि “ सबको
शिक्ा , सवासरय एक समान , हो राजा या हो मेहतर की संतान ” ,” धन-धरती बंट के रहेगी ्भदूखी जनता चुप ना रहेगी ।“ समाजवादी आंदोलन ने समाज की बड़ी आबादी पिछड़ी जातियों- दलित असरृ्या जातियों को संगह्ठत करने की बात की थी और देश की आम ग़रीब जनता को देश के शासन सतिा में हिससे्ारी
22 ekpZ 2025