मिले , इसके लिए समाजवादियों ने नारा दिया था -संसोपा ने बंधी गां्ठ पिछड़े पावे सो में सा्ठ । जाति-पांति नहीं चलेगी । परिवारवाद ना जातिवाद सबसे आगे समाजवाद । इन हवह्भन्न नारों को गढ़ा गया और इन नारों को लगाने वाले कोई और कोई नहीं आज के बड़े नेता मुलायम सिंह यादव , लालदू यादव , नीतीश कुमार , शरद यादव जैसे नेता सबसे आगे थे ।
80 के दशक में कांशीराम जी के नेतृतव में दलित बहुजन आंदोलन ने ्भारत की राजनीति और विशेषकर उतिर ्भारत की राजनीति में ज़बरदसत दसतक दी , जिसने लोहिया के समाजवाद और बाबा साहब आंबेडकर के समता के विचार दोनों को समाहित कर आगे बढने का रासता अपनाया । इसका सफल परिणाम ्भी 1993 के चुनाव में देखने को मिला , जिसमें
समाजवादी पाटजी और बहुजन समाज पाटजी की युती ने देश के सबसे बड़े सदूबे में सरकार बनाई । यह वही दौर था जिसने बिहार में लालदू प्साद यादव को मुखयरंरिी बनाया और देश में जनता पाटजी की सरकार ्भी बनी । यह दलित बहुजन आंदोलन के सुखद क्ण थे । लेकिन सतिा सुख और परिवारवादी विचारों ने इस आंदोलन को
्भी धीरे-धीरे खोखला कर दिया है । इसी का परिणाम है कि क्भी कांशीराम ने राजीव गांधी को कहा था कि आपने हमसे उतिरप््ेश में समझौता करके ला्भ ले लिया , लेकिन जब हम आपसे पंजाब में हिससे्ारी चाहते है तो आप मुकर रहे है लेकिन हमारी शक्त आपको पंजाब के चुनाव में सतिा से बेदख़ल करने को काफ़ी है । यह ताक़त बहुजन दलित आंदोलन की रही है ।
आज दलित बहुजन आंदोलन बड़ी पार्टियों की बेसाखी के सहारे आगे बढने की मानस लेकर ही काम कर रही है । इसके पीछे यह वंशवाद परिवारवाद के विचार में फंस जाना है । इस परिवारवाद का डर क्भी राम मनोहर लोहिया को था । इसीलिए वह जयप्काश जी को लिखे अपने ररि में लिखते हैं कि जयप्काश , आप में बहुत शक्त है । आप देश में हलचल पैदा कर उसमें परिवर्तन ला सकते है लेकिन बस आप मज़बदूती से टिके रहना ्योंकि आप पारिवारिक हैं और मैं आवारा िदूं । आपके सामने ्भावना , समबंध आड़े आ सकते है लेकिन आप अडिग रहे तो बदलाव तय है ।
80 के दशक में तेज़ी से उ्भरी बहुजन समाज पाटजी के प्रुख मानयवर कांशीराम ने अपने जीवन में क्भी अपने परिवार से कोई वासता नहीं रखा और अपने बाद मायावती के हाथ में पाटजी की बागडोर सौंप दी लेकिन आज मायावती जी ्या उस नियम पर टिकी है , जिसमें कार्यकर्ता को महतव , ना कि परिवार को । गत लोकस्भा चुनाव में मायावती ने अपने ्भतीजे को सीधा मंच पर लाकर एवं अपने ्भाई को पाटजी का उपाधयक् बना ्या संदेश दिया ? ्या वह वंशवाद की बीमारी को बहुजन दलित राजनीति से उ्भरे जन आंदोलन को परिवार विकास , उन्नति के साथ नहीं जोड़ रही हैं ? वही लोक जनशक्त पाटजी प्रुख रामविलास पासवान ने जब पाटजी प्रुख की गद्ी छोड़ी तो अपने बेटे के हाथ सब सौंप दी । उनके ्भाई , ्भतीजे , दामाद आदि ही रदूरी पाटजी के अहम पदों पर हैं । ्या स्भी अवसरों को एक परिवार तक सीमित कर देना ही बहुजन दलित आंदोलन से उपजे दलो
का धयेय था ? यह विचार ्या आंबेडकर , लोहिया , जयप्काश आदि के थे ? परिवारवाद , वंशवाद को लेकर अगर देखे तो चौधरी चरण सिंह ने अपने जीवन में कर दिखाया था , जब उनिोंने अपने पुरि को पाटजी का मुखिया ना बनाकर मुलायम सिंह यादव को आगे किया था । लेकिन आज यह सुचिता कहां रह गई है ? मुलायम सिंह ने ्भी अपने बेटे को ही आगे किया । लालदू यादव जिनिें सामाजिक नयाय की लड़ाई में अग्णी माना जाता है , जब वह जेल गए तो उनकी पत्ी मुखयरंरिी बन गई और पाटजी के प्रुख ्भी उनके बेटे ही बने ।
राषट्रीय जनता दल के नेता और मनरेगा जैसी योजना के सूत्रधार रघुवंश प्साद सिंह ने ्भी अपने जीवन के अंतिम समय में इसी वंशवाद और परिवारवाद पर ही अपनी टीस निकाली । लालदू यादव को लिखे अपने ररि में उनिोंने इसी परिवारवाद की ही आलोचना की । समाजवादी आन्ोलनों से उ्भरे मुलायम और लालदू यादव ने ्या परिवार से बाहर सतिा का विकेंद्रीकरण किया ? ऐसा नहीं किया , यह तो दलित बहुजन दलो का प्श्न है । देश की सबसे पुरानी पाटजी कांग्ेस में ्भी पुरि मोह ने रदूरी ही पाटजी को ख़सतािाल में ला खड़ा किया है । पंडित दीनदयाल के विचार को मानने वाले ्भी इस परिवारवाद से ्या मु्त हुए ? शायद ऐसा नहीं है । अनय छोटी पाटजी उतिर से ्हक्ण तक अरदूरन एक परिवार की पार्टियां बन कर रह गई हैं । उतिरप््ेश की निषाद पाटजी पिता-पुरि की ही पाटजी है । ्भारतीय सदूिेलदेव पाटजी , अपना दल , मुंबई में शिवसेना ्या इससे अछूती है ? जातियों पर दलों के निर्माण ने परिवारवाद को बढाया ही है । बहुजन आंदोलन के बड़े-बड़े नेता परिवरवाद के इस मोह में अपने अकसततव को खोते जा रहे हैं । जो जनता नेताओ के नारे के आकर्षण में उनके साथ आती है वो केवल समर्थक बन कर ही रह जाती है और कुछ नहीं । बहुजन दलित आंदोलन को कम से कम इस परिवारवाद से बचाना होगा अनय्ा बाबा साहब द्ारा खड़ा सारा आंदोलन धीरे-धीरे समापत हो जाएगा ।
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