कवर स्टोरी
्भी महाकुं्भ की सांझ को संगीतमय और ्भवय बनाया ।
वासतव में महाकुं्भ न केवल श्रद्ा और आस्ा का महापर्व है , बल्क यह ्भारतीय संस्कृति , संगीत , नृतय और साहितय के वैश्वक मंच के रूप में ्भी अपनी पहचान स्ाहरत करने में रदूण्म रूप से सफल हुआ । गंगा पंडाल में होने वाले आयोजन में ्भारत की समृद् सांस्कृतिक परंपरा का जीवंत सवरूप प्सतुत हुआ , जिससे श्रद्ालुओं ने आधयाकतरक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में इस अद्भुत महापर्व का आनंद उ्ठाया ।
वै्वीकरण के युग में , महाकुं्भ मेला एक वैश्वक तीर्थयारिा में विकसित हो गया है । दुनिया ्भर के तीर्थयारिी और आधयाकतरक साधक ्भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं को पार कर रहवरि स्लों की यारिा करते हैं । महाकुं्भ एक ऐसा केंद्र बन जाता है , जहां विविध दृकषटकोण एकरि होकर विचारों के आदान-प््ान और वैश्वक आधयाकतरक समरसता को बढावा देने वाला वातावरण बनाते हैं । अबकी बार ्भी विशेष से बड़ी संखया में श्रद्ालु स्ान के लिए आए । आधयाकतरकता में खोकर वह ्भी अह्भ्भदूत हो गए । यह इस मानयता का प्तीक है कि पृथक मागषों के अनुयायी होने के बावजदू् लोगों में एक सारदूहिक अह्भलाषा होती है , जो प्तयेक वयक्त की आधयाकतरक यारिा को अग्सर करती है । इस अवसर पर हवह्भन्न राषट्रों के आगंतुकों का संगम इसे आधयाकतरकता के वैश्वक उतसव में बदल देता है ।
अलौकिक नगरी प्याग
प्यास के इतिहास पर दृकषट डाले तो पता चलता है कि ईसा रदूव्म 600 शताब्ी में वर्तमान प्यागराज जनपद के हवह्भन्न ्भागों को आवृति करता हुआ वतस महाजनपद था , जिसकी राजधानी " कौशामबी " थी । इसके अवशेष आज ्भी प्यागराज के ्हक्ण-पश्चर में कस्त हैं । गौतम बुद् ने अपनी तीन यारिाओं से इस शहर को गौरव प््ान किया । इस क्ेरि के मौर्य साम्ाजय के अधीन आने के र्चात् कौशामबी को अशोक के प्ांतों में से एक का मुखयालय बनाया गया
था । उसके अनुदेशों के अधीन दो एका्र सतम्भों का निर्माण कौशामबी में किया गया था , जिनमें से एक को कालांतर में प्यागराज ( इलाहाबाद ) स्ानानतरित कर दिया गया था । मौर्यकाल के र्चात् शुंगों ने वतस या प्यागराज क्ेरि पर राजय किया । यह प्यागराज जिले में पायी गयी शुंगकालीन कलातरक वसतुओं से परिलहक्त होता है । शुंगो के र्चात् कुषाण सतिा में आए । कनिषक की एक मुहर और एक अहद्तीय रदूहत्म लेखन कौशामबी में पायी गयी है , जो उसके राजय के हद्तीय वर्ष के दौरान की है । गुपतों के परा्भव के उपरानत प्यागराज का ्भहवषय विसरृत हो गया । चीनी यारिी हृवेनसांग ने 7वीं शताब्ी में प्यागराज की यारिा की और प्याग को रदूहत्मरदूजकों के एक महान शहर के रूप में वर्णित किया , जिसका तातरय्म है कि ब्राहणवाद की रितिा उनकी यारिा के समय तक स्ाहरत रही । 1540 में शेरशाह हिन्ुसतान का शासक हो गया , इसके कार्यकाल में पुरानी ग्ांड ट्रंक रोड आगरा से कड़ा तक बनायी गई । 1557 में प्याग के अधीन ग्ार मरकनवल में जौनपुर के विद्रोही गवर्नर और अकबर के मधय एक युद् लड़ा गया था । विजय के उपरांत अकबर एक दिन में ही प्याग आया और वाराणसी जाने के रदूव्म दो दिनों तक यहां विश्राम किया । अकबर वर्ष 1575 में पुनः प्याग आया और एक शाही शहर की आधारशिला रखी , जिसे उसने ' इ्लािबास ' या ' अ्लाि का निवास ' कहा । अकबर के शासन के अधीन नवीन शहर तीर्थयारिा का महत्वपूर्ण स्ान हो गया । अकबर के शासन की समाकपत के बाद इसके आकार और महतव में पर्यापत वृहद् हुई ।
महाकु ंभ का अर्थ
महाकुं्भ एक ऐसा रहवरि समागम है जो प्तयेक बारह वरषों में होता है । करोड़ों लोगों की वह आधयाकतरक यारिा है , जो मानव अकसततव के रदूल में उतरती है । प्ाचीन हिं्दू पौराणिक कथाओं में उल्लहखत , महाकुं्भ मेला एक गहन आंतरिक अर्थ रखता है , जो आतरबोध , शुद्ीकरण और आधयाकतरक प्बोधन की शा्वत
खोज की प्तीकातरक यारिा के रूप में अह्भवय्त होता है । महाकुं्भ मेले के केंद्र में एक प्तीक है जो ब्रहांडीय महतव से ्भरा हुआ है —" कुम्भ " या रहवरि कलश । यह कलश , प्तीकातरकता से ्भरा हुआ , अपनी ्भौतिक रूपरेखा से परे जाकर मानव शरीर और आधयाकतरक जागरण की खोज को रदूत्म रूप देता है । हिं्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार , कुम्भ उस दिवय पारि का प्तीक है जो समुद्र मंथन के दौरान निकला था , जिसमें " अमृत " नामक दिवय पेय था । रूपक रूप में , महाकुं्भ मानव रूप का प्हतहनहधतव करता है , और ्भीतर का अमृत प्तयेक वयक्त की आधयाकतरक सार का प्तीक है । महाकुं्भ मेले की यारिा , इसलिए , एक ्भौतिक यारिा से अधिक है ; यह आतर-खोज की प्तीकातरक अनवेरण है , प्तयेक जीव में निहित चैतनयता की मानयता है । कुम्भ मेला अनु्भव के केंद्र में रहवरि नदियों , विशेष रूप से गंगा , यमुना और सरसवती में एक रहवरि डुबकी लेने का अनुष्ठानिक कार्य है । यह कार्य एक परमररा से अधिक है-यह एक आधयाकतरक शुद्ीकरण है , शरीर और आतरा का प्तीकातरक निर्मलीकरण है । तीर्थयारिी मानते हैं कि इन रहवरि जल में स्ान न केवल शारीरिक , बल्क मन को ्भी शुद् करता है और ई्वर के साथ आधयाकतरक संबंध को नवीनीककृत करता
12 ekpZ 2025