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वेदों के उलटे सीधे अर्थ निकाले गए । जिससे वेद धर्मग्ंथ न होकर जादू-टोने की पुसतक , अनधलवशवास को बढ़ावा देने वाली पुसतक लगे । यह सब योजनाबद्ध रूप में किया गया । इसी समबनध में वेदों में आर्य-द्लवड़ युद्ध की कलपना करी गई जिससे यह सिद्ध हो की आर्य लोग विदेशी थे ।
ईसाई मिशनरियों द्ारा श्री राम चंद् के सथान पर सम्ार अशोक को बढ़ावा दिया गया । राजा अशोक को मौर्या वश का सिद्ध कर दलितों का राजा प्रदर्शित किया गया और राजा राम को आ्गों का राजा प्रदर्शित किया गया । इस प्रयास का उद्ेश् भी श्रीराम आ्गों के विदेशी राजा और अशोक को मूलनिवासियों का राजा बताना था । ऐसा भ्रामक प्रचार मुख् लक्् श्री राम से दलितों को दूर कर सम्ार अशोक के खूंटे से जोड़ना था । इस कार्य के लिए अशोक द्ारा कलिंग युद्ध के पशिात बुद्ध मत सवीकार करने को इतिहास बड़ी घटना के रूप में दिखाना था । अशोक को महान समाज सुधारक , जनता का सेवक , कल्ाणकारी प्रदर्शित किया गया ।
इसके साथ ही दलितों को यह बताया गया कि सभी सवर्ण जातिवादी है और दलितों पर हज़ारों वरगों से अत्ािार करते आये है । जातिवाद को सबसे अधिक ब्ाह्मणों ने बढ़ावा दिया है । जातिवाद कि इस विष लता को खाद देने के लिए ब्ाह्मणवाद का जुमला प्रचलित किया गया । हमारे देश के इतिहास में मध् काल का एक अंधकारमय युग भी था । जब वर्णव्वसथा का सथान जातिवाद ने ले लिया था । कोई व्सकत ब्ाह्मण गुण , कर्म और सवाभाव के सथान पर नहीं अपितु जनम के सथान पर प्रचलित किया गया । इससे पूर्व वैदिक काल में किसी भी व्सकत का वर्ण , उसकी शिक्ा प्रासपत के उपरांत उसके गुणों के आधार पर निर्धारित होता था । इसी रिम में सृष्टि के आदि में प्रथम संविधानकर्ता मनु द्ारा निर्धारित मनुसमृलत में जातिवादी लोगों द्ारा जातिवाद के समर्थन में मिलावट कर दी गई । इस मिलावट का मुख् उद्ेश् मनुसमृलत से जातिवाद को सवीकृत करवाना था । इससे न केवल समाज में विधवंश का दौर प्रारमभ हो गया
अपितु सामाजिक एकता भी भंग हो गई । सवामी दयानंद द्ारा आधुनिक इतिहास में इस घोटाले को उजागर किया गया ।
बुद्ध मत का नाम लेकर ईसाई मिशनरियों द्ारा दलितों को बरगलाया गया । भारतीय इतिहास में बुद्ध मत के असत काल में तीन व्सकत्ों का नाम बेहद प्रलसद् रहा है । आदि शंकराचार्य , कुमारिल भट्ट और पुष््लमत् शुंग । इन तीनों का कार्य उस काल में देश , धर्म और जाति की परिससथलत के अनुसार महान तप वाला था । जहां एक ओर आदि शंकराचार्य ने पाखंड , अनधलवशवास , तंत्-मंत् , व्लभिार की दीमक से जर्जर हुए बुद्ध मत को प्राचीन शासत्ाथ्ग शैली में परासत कर वैदिक धर्म की सथापना की
गई , वहीं दूसरी ओर कुमारिल भट्ट द्ारा माध्म काल के घनघोर अंधेरे में वैदिक धर्म के पुनरुद्धार का संकलप लिया गया । यह कार्य एक समाज सुधार के समान था । बुद्ध मत सदाचार , संयम , तप और संघ के सनदेश को छोड़कर मांसाहार , व्लभिार , अनधलवशवास का प्रायः बन चुका था । यह दोनों प्रयास शासत्ी् थे तो तीसरा प्रयास राजनीतिक था । पुष््लमत् शुंग मगध राज् का सेनापति था । वह महान राष्ट्रभकत और दूरदृष्टि वाला सेनानी था । उस काल में सम्ार अशोक का नालायक वंशज बृहदथ राजगद्ी पर बैठा था । पुष््लमत् ने उसे अनेक बार आगाह किया था कि देश की सीमा पर बसे बुद्ध विहारों में विदेशी ग्ीक सैनिक बुद्ध भिक्ु बनकर जासूसी
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