बसने वाले ईसाईयों में 90 प्रतिशत ईसाई दलित समाज से धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने थे । इसलिए भारत के दलित को ईसाई बनाने के लिए रणनीति बनाई गई । यह कार्य अनेक चरणों में आरमभ किया गया ।
ईसाई पादरियों ने सोचा कि सबसे पहले दलितों के मन से उनके इष्ट देवता विशेष रूप से श्रीराम और रामायण को दूर किया जाए क्ोंकि जब तक राम भारत की जनता के दिलों में जीवित रहेंगे , तब तक ईसा मसीह अपना घर नहीं बना पाएंगे । इसके लिए उनिोंने सुनियोजित तरीके से शैलक्क प्रदूषण का सहारा लिया । विदेश में अनेक विशवलवद्याि्ों में शोध के नाम पर श्रीराम और रामायण को दलित और नारी विरोधी
सिद्ध करने का शोध आरमभ किया गया । विदेशी विशवलवद्याि्ों में उन भारतीय छात्ों को प्रवेश दिया गया जो इस कार्य में उनका साथ दे । रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब , कांचा इलैयह आदि इसी रणनीति के पात् हैं । शमबूक वध की कालपलनक और मिलावटी घटना को उछाला गया और श्रीराम जी के शबरी भीलनी और निषाद राजा केवट से समबनध को अनदेखी जानकर की गई । श्रीराम को नारी विरोधी सिद्ध करने के लिए सीता की अलनिपरीक्ा और अहिल्ा उद्धार जैसे कालपलनक प्रसंगों को उछाला गया जबकि दासी मंथरा और महारानी कैकयी के साथ वनवास के पशिात लौटने पर किए गए सदव्वहार और प्रेम की अनदेखी
करी गई । वीर हनुमान और जामवंत को बनदर और भालू कहकर उनका उपहास किया गया , जबकि वह दोनों महान विद्ान् , रणनीतिकार और मनुष्य थे । रावण को अपनी बहन शूर्पनखा के लिए प्राण देने वाला भाई कहकर महिमामंडित किया गया और श्रीराम और उनके भाइयों को राजगद्ी से बढ़कर परसपर प्रेम को वरीयता देने की अनदेखी करी गई । श्री कृष्ण जी के महान चररत् के साथ भी इसी प्रकार से बेईमानी की गई । उनिें भी चररत्िीन , कामुक आदि कहकर उपहास का पात् बनाया गया । इस प्रकार से नकारातमक खेल खेलकर भारतीय विशेष रूप से दलितों के मन से श्री राम की छवि को बिगाड़ा गया ।
वेदों के समबनध में भ्रामक प्रचार का आरमभ तो बहुत पहले यूरोप में ही हो गया था । इस चरण में वेदों के प्रति भारतीयों के मन में बसी आसथा और विशवास को भ्रासनत में बदलकर उसके सथान पर बाइबिल को बसाना था । इस चरण में मुख् लक्् दलितों को रखकर निर्धारित किया गया । ईसाई मिशनरी भली प्रकार से जानते है कि गोरक्ा एक ऐसा विषय है जिस से हर भारतीय एकमत है । इस एक विषय को समपूण्ग भारत ने एक सूत् में उग् रूप से पिरोया हुआ हैं । इसलिए गोरक्ा को विशेष रूप से लक्् बनाया गया । हर भारतीय गोरक्ा के लिए अपने आपको बलिदान तक करने के तैयार रहता है । उसकी इसी भावना को मिटाने के लिए वेद मनत्ों के भ्रामक अर्थ किये गए । वेदों में मनुष्य से लेकर हर प्राणिमात् को लमत् के रूप में देखने का सनदेश मिलता है । इस महान सनदेश के विपरीत वेदों में पशुबलि , मांसाहार आदि जबरदसती शोध के नाम पर प्रचारित किये गए । इस प्रचार का नतीजा यह हुआ कि अनेक भारतीय आज गो के प्रति ऐसी भावना नहीं रखते जैसी पहले उनके पूर्वज रखते थे । दलितों के मन में भी यह जहर घोला गया । पुरुष सूकत को लेकर भी इसी प्रकार से वेदों को जातिवादी घोषित किया गया । जिससे दलितों को यह प्रतीत हो की वेदों में शुद् को नीचा दिखाया गया है । इसी वेदों के प्रति अनासथा को बढ़ाने के लिए
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